AAP: कहीं ले न डूबे अपनों का ‘पाप’

Editor’s Opinion: Balram Prashar (The Stellar News)
आम आदमी पार्टी ने राजनीतिक गलियारों में जिसनी तेजी के साथ कदम रखे उससे कहीं अधिक तेजी के साथ पार्टी बैकफुट पर जाती नजर रही है और जनता में बना बनाया विश्वास धूमिल प्रतीत होने लगा है। भले ही अकाली-भाजपा और कांग्रेस के प्रति रोष के चलते लोगों के लिए यह एक विकल्प के तौर पर मानी जा रही थी, परन्तु मौजूद समय में आप की जो हालत है उसके लिए इसकेअपनोंको ही जिम्मेदार के तौर पर देखा जा रहा है। क्योंकि नशों और भ्रष्टाचार को खत्म करने के जिन दावों को लेकर आप जनता के बीच पहुंची, उसकी इस मुहिम को उसके अपनों ने ही इतनी जोर से झटका दिया कि इस मुहिम में लगे कुछ अच्छे लोगों की भावनाएं बुरी तरह से आहत हुई तथा उनके लिए जनता के सवालों का जवाब देना कठिन बना हुआ है। एक तरफ जहां भगवंत मान अन्य पर कथित तौर पर नशे में रहने के आरोप लगे वहीं होशियारपुर में पार्टी द्वारा लगाए गए आबजर्वर अशोक नांगलिया का कथित तौर पर नशे में धुत्त होने टिकटें बांटने का वीडियो सामने आने के बाद अब लोग यह सोचने पर विवश हो गए हैं कि आखिर आप के कितने चेहरे हैं और वह जनता को इन परिस्थितियों में कैसा राज प्रदान करेगी? हालांकि यह वीडियो आप के जिस पूर्व नेता ने बनाया और बाद में टिकट न मिलने के रोष स्वरुप जारी किया उसने पार्टी के लिए काफी काम किया था और उसे आश्वस्त किया गया था कि होशियारपुर से वही उम्मीदवार होगा, जो नहीं हुआ। इसे ऐसा भी कहा जा सकता है कि वीडियो बनाने वाले को यह आभास हो गया था कि पार्टी में कुछ ठीक नहीं चल रहा तथा वे ठगे जाने वाले हैं और उन स्थितियों में यह वीडियो आप में चल रहे पाप को सबके सामने लाने के लिए काफी होगा।
परन्तु दुख की बात तो यह रही कि इतने महत्वपूर्ण पद पर रहते हुए अशोक नांगलिया ने कथित तौर पर नशे की हालत में जो शब्द कहे उससे आप में कहीं कहीं चल रही धांधली का आंदाजा तो सहज ही लगाया जा सकता है। भले ही कोई यह कहे कि आप ईमानदारी की एक जीती जागती मिसाल है, मगर अब यह बात हजम नहीं हो रही। वीडियों से लगता है कि आप के भीतर कथित तौर पर खरीदोफरोख्त करके टिकटों के आवंटन की नांगलिया को पूरी जानकारी थी। यह आरोप कोई और नहीं लगा रहा बल्कि आप में रहे नेता और कार्यकर्ता ही लगाते आए हैं। आप की मौजूदा स्थिति को इसके नेता भले ही बहुत मजबूत समझते हों, मगर नांगलिया की वीडियो सामने आने के बाद आप के लिए जनता के बीच अपना विश्वास बनाए रखना मुश्किल बना हुआ है। जिसका नुकसान उसे चुनाव में होगा इस बात में भी कोई दो राय नहीं रही। नांगलिया की इस वीडियो से उन उम्मीदवारों का अक्स भी जनता के समक्ष धूमिल हुआ है जो ईमानदार स्वच्छ छवि के तौर पर जाने जाते हैं। उनके लिए जनता के बीच जाकर पार्टी की नीतियां और सिद्धांतों का राग अलापना मुश्किल बना हुआ है, क्योंकि नांगलिया का वीडियो जंगल की आग की तरह फैला और फिर क्या था आप एक बार फिर से कटघरे में खड़ी हो गई।
आम आदमी पार्टी में एक बात जो सबसे मजेदार रही, वो यह है कि आप के भीतरी भ्रष्टाचार को लेकर जो भी आरोपप्रत्यारोप का सिलसिला चला वह किसी दूसरी पार्टी द्वारा नहीं चलाया गया बल्कि आप के नेताओं ने ही इसकी पोल खोलते और जनता को आपबीती सुनाई। यह भी कहा जा रहा है कि पार्टी से नाराज चल रहे नेताओं को मनाने के लिए गुप्त तौर पर बैठकें भी हुई, मगर नतीजा जीरो ही रहा। होशियारपुर की बात करें तो यहां पर अधिकतर नेताओं को नांगलिया से आपत्ति थी और वे बार-बार इसकी जांच की मांग करते रहे।
राजनीतिक माहिरों व जनता का यह मानना है कि आप के पूर्व नेताओं द्वारा सार्वजनिक तौर पर नांगलिया व अन्य कई नेताओं पर नशा करने व पैसों का भ्रष्टाचार करने जैसे संगीन आरोप लगाए गए, हैरानी की बात यह रही कि किसी भी बड़े नेता, यहां तक कि केजरीवाल ने भी इन आरोपों की तह तक जाना जरुरी नहीं समझा। राजनीकित माहिरों की माने तो दूसरों पर आरोप लगाकर जांच की मांग करने वाले केजरीवाल अपनी ही पार्टी में चल रहे कथित भ्रष्टाचार व नशाखोरी को रोकने में नाकाम रहे। सुच्चा सिंह छोटेपुर मामले के बाद एक बार तो ऐसा प्रतीत हुआ था कि आप अपने सिद्धांतों पर खड़ी है। परन्तु इतना सबकुछ हो जाने के बाद भी पार्टी नेताओं द्वारा इसे सहज भाव से लेना इस तरफ इशारा करता है व जनता यह सोचने पर विवश है कि कहीं छोटेपुर के साथ धक्का तो नहीं हुआ।
होशियारपुर या पंजाब के अन्य हल्कों में क्या हुआ यह बात भी किसी से छिपी नहीं है। राजनीतिक माहिरों का मानना है कि इतना सबकुछ होने के बाद भी अगर आप यह सोच रही हो कि उसे जनता का भारी समर्थन प्राप्त है तो इसे महज एक मृगतृष्णा से अधिक कुछ नहीं कहा जा सकता। पार्टी सूत्रों की माने तो आप अभी तक यह भी तय नहीं कर पाई कि उसका मुख्यमंत्री का चेहरा कौन सा है और पार्टी में किसका फैसला सर्वोपरि है, केजरीवाल का या जनता का, क्योंकि यह खुद को आम आदमी की पार्टी कहते हैं। परन्तु इतना जरुर है कि खुद को सफेदपोश तथा दूसरों को दागदार दिखाने वाली आप में क्या चल रहा है यह धीरे-धीरे सबके सामने आने लगा है, जिससे पार्टी पर लगे दाग धोने के लिए केजरीवाल को जनता के सवालों का जवाब देने के लिए एक न एक दिन खुले मंच पर जरुर आना पड़ेगा तथा शायद तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और आप में आकर सुधार के सपने देखने वालों के सपने कई वालंटियरों के सपनों की तरह दम तोड़ चुके होंगे और उनका भी पार्टी से विश्वास उठ चुका होगा। यह हम नहीं पार्टी के अपने नेता कहते-कहते आज अन्य पार्टियों के साथ जुडक़र जनता के बीच आप में चल रहे पाप का ढिंढोरा पीट रहे हैं। भले ही राजनीति में इसे ‘चलता है’ कह कर टाल दिया जाता हो, परन्तु उन लोगों की भावनाओं का क्या होगा जो बदलाव की चाहत लेकर इससे जुड़े थे।
दिल्ली में करवाए जा रहे विकास कार्यों को लेकर जनता के बीच पहुंच रहे आप के अधिकतर उम्मीदवारों के पास पार्टी में अपनों द्वारा किए गए पाप का कोई जवाब नहीं है तथा उन्हें जनता के समक्ष नामोशी का सामना करना पड़ रहा है। जिसके चलते कहीं न कहीं पार्टी के वोट प्रतिशत पर असर पडऩा लगभग तय है। मौजूदा समय में भी आप के पंजाब स्तरीय ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय परिषद सदस्यों द्वारा पार्टी को छोडऩा व कुछेक को निकाला जाना कई सवालों को जन्म दे रहा है कि आखिर पार्टी हाईकमान उनके आरोपों की जांत की बजाए उन्हें निकाल कर क्या सिद्ध करना चाहती है, जबकि एक के बाद एक मामले प्रकाश में आ रहे हैं। राजनीतिक माहिरों की माने तो ‘आप में अपनों द्वारा किए गए पाप’ की सजा उन उम्मीदवारों को भुगतनी पड़ेगी जो एक आदर्श सिद्धांत लेकर इसमें शामिल हुए थे।

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आप से मोह भंग, अकालीभाजपा और कांग्रेस की तरफ लौट रही जनता

आप में पाप जैसी खबरें सामने आने के बाद जनता का रुझान एक बार फिर से कांग्रेस तथा अकाली-भाजपा की तरफ होने लगा है। लोगों का कहना है कि पार्टी भले ही अच्छी हो, परन्तु उसे अच्छा कैसे कहा जा सकता है जिसमें सत्ता में आने से पहले ही नशाखोरों और भ्रष्टाचारियों की चांदी हो रही हो। आम लोगों में इस बात को लेकर भी काफी चर्चा है कि केजरीवाल ने आज तक जिस पर भी आरोप लगाए उनमें से अधिकतर पर वे आरोप सिद्ध नहीं कर पाए तथा दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित का उदाहरण सबके सामने है, क्योंकि सत्ता में आने के बाद केजरीवाल ने कांग्रेस के खिलाफ कम और भाजपा व अकालियों को ही अकसर आड़े हाथों लिया। जबकि चुनाव से पहले वह सभी के बारे में आरोप-प्रत्यारोप का सिलसिला चलाते थे। ऐसे में उनकी खुद की कार्यप्रणाली और कथनी व करनी संदिग्धता के घेरे में है। पंजाब की जनता वैसे भी यह सोचती है कि उसे प्रदेश में किस पार्टी की सरकार बनाकर लाभ मिलेगा, क्योंकि किसी भी राज्य की अपनी कमाई से ज्यादा फंड उसे केन्द्र से मिलते हैं। अगर ऐसे में अब जबकि पंजाब की अर्थव्यवस्था काफी कमजोर समझी जा रही है तो आप के दावे जनता के विश्वास पर कितना खरा उतरेंगे और ऊपर से आप का एक के बाद एक मामला आग में घी का काम कर रहा है।

Editor’s Opinion: Balram Prashar (The Stellar News)

 

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