मन के भाव बदलने से ही जीवन में आता है बदलाव : माता सुदीक्षा

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। निरंकार प्रभु की जानकारी के बाद ही भक्ति की शुरुआत होती है, शरीर हमारी असली पहचान नहीं है। शरीर में जो आत्मा है वह परमात्मा की अंश है। यह विचार निरंकारी सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने कानपुर में आयोजित निरंकारी संत समागम के दौरान कहे। उन्होंने फरमाया कि संत हमेशा ही सभी में एक ही प्रभु परमात्मा का अंश देखते है। यह होगा कब? जब हमारे मन में समदृष्टि वाले भाव होंगे। उन्होंने जैसी दृष्टि और वैसी सृष्टि का जिक्रकरते हुए फरमाया कि जब हमारे मन में किसी के प्रति कोई भी भाव होता है, हमें दिखाई भी उसी रूप में देता है। संत की नजऱ में कोई खरा नहीं होता और कोई खोटा नहीं होता और न ही उनके अंदर किसी के प्रति उच्च नीच का कोई भाव होता है। संत हमेशा ही समदृष्टि के भाव के साथ संसार में विचरन करते हैं। उन्होंने फरमाया कि हमें अपनी नजऱ में ही बदलाव लेकर आना पड़ेगा।

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जब हमारी नजऱ में बदलाव आऐगा तो अपने आप ही सारी दुनिया बदल जायेगी। जब हमारी नजऱ अच्छी होती है तो हमें सारा कुछ ही अच्छा नजऱ आता है। जब किसी के प्रति हमारे मन में नफऱत का भाव आता है तो दूसरे का नुक्सान कम होता है बल्कि अपना नुक्सान ज़्यादा होता है। उन्होंने फरमाया कि बिना प्यार की जि़ंदगी कुछ भी नहीं है। संत-महात्मा प्यार को संसार में बढ़ाते हुए उपकार के भाव के साथ जीवन जीते हैं। उन्होंने फरमाया कि मनुष्य का जीवन मिला है तो इंसानियत को कायम रखना चाहिए। हरेक को बनाने वाला परमात्मा ही है। इस लिए सभी के प्रति प्यार, नम्रता, सहनशीलता के भाव पैदा हो जाते हैं।

मन के बदलने साथ ही जीवन बदलता है। दिखावे के लिए जीवन में बदलाव नहीं लाना है। परमात्मा हर जगह समाया हुआ है, इस लिए परमात्मा के गुणों को अपने जीवन में अपनाना है। जीवन में कैसा सी भी स्थिति हो हमेशा ही एक ही सी मन की स्थिति बनी रहती है, यह केवल और केवल इस निरंकार प्रभु को जान कर इसकी जानकारी करके ही संभव है।

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