आम आदमी पार्टी: हाथ न पहुंचे थू कौड़ी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। विधानसभा चुनाव के बाद पंजाब में जो हालात आम आदमी पार्टी के हुए और जो उनके द्वारा आरोप-प्रत्यारोह का सिलसिला चलाया जा रहा है उसे देखते हुए ‘हाथ न पहुंचे थू कौड़ी’ कहावत आप पर एकदम सटीक बैठती है, कि जो चीज हाथ नहीं लगी उसमें नुकस निकालने शुरु कर दिए। मतदान के उपरांत आम आदमी पार्टी को ई.वी.एम. मशीनों के साथ गड़बड़ी की आशंका रही और पार्टी नेता और कार्यकर्ता स्ट्रांग रुमों के बाहर तम्बू लगाकर बैठे रहे, जबकि अन्य पार्टियों के नतीजे भी इन्हीं मशीनों में बंद थे। आप द्वारा दिखाए गए ओवरकानफिडैंस का उस समय घड़ा फूटा जब पंजाब में कांग्रेस 70 पल्स हो गई और आप को मात्र 20 सीटों पर ही संतोष करना पड़ा। आप के ओवरकांफीडैंस को मिली इतनी करारी हार की जिम्मेदारी किसी ने नहीं ली और न ही किसी नेता को इसके लिए जिम्मेदार ठहराया गया जिनके बारे में पंजाब से संबंधित आप नेता व कार्यकर्ता शिकायत करते रहे। ऐसे में यह कहना भी गलत नहीं होगा कि प्रदेश में सरकार बनाने और उसे दिल्ली में बैठकर चलाने का कुछ नेताओं का सपना पूरी तरह से धूमिल हो गया। अगर दिल्ली की बात की जाए तो वहां भी दो-चार विकास कार्यों के बल पर आम आदमी पार्टी जनता को विकास के स्वप्न दिखाती रही, मगर वह अपने कुछेक नेताओं की करनी पर नजर नहीं रख पाई। जिसके चलते जनता ने उन्हें नकार दिया।
राजनीतिक माहिरों का मानना है कि इसमें कोई दो राय नहीं है कि प्रदेश में अकाली-भाजपा से रुष्ट हुए लोगों का झुकाव आम आदमी पार्टी की तरफ था, परन्तु दिल्ली से पंजाब भेजे गए कुछेक नेताओं द्वारा पंजाब में जो गुल खिलाए गए उनकी सच्चाई जनता के समक्ष आते ही जनता का मन अंदर ही अंदर इनके खिलाफ हो गया था। और रही बात कांग्रेस की तो उसके लिए रोजगार देने और नशा मुक्त पंजाब की संरचना करने का वादा उसके लिए तारनहार बना। इतनी बड़ी हार से भी आप नेताओं ने सबक लेना जरुरी नहीं समझा और आज भी ई.वी.एम. में गड़बड़ी की जांच और आगामी चुनाव बैलेट पेपर से करवाने की मांग करके आप नेताओं द्वारा अपनी हार का ठीकरा मशीनों पर फोड़ नाकामियों को छिपाया जा रहा है।

Advertisements


होशियारपुर में हल्का शाम चौरासी की बात की जाए तो यहां से आप उम्मीदवार डा. रवजोत काफी समय से हल्के में लोगों के संपर्क में बने रहे तथा अपनी टिकट को फाइनल समझ रहे थे, मगर टिकट आबंटन से कुछ समय पहले इनकी टिकट काट कर किसी अन्य उम्मीदवार को दे दी गई, जिसे लेकर पार्टी में काफी द्वंद चला और पार्टी ने पुन: इन्हें टिकट दे डाली। ऐसे भी कयास लगाए जा रहे थे कि पार्टी ने इनकी टिकट काटकर जिसे टिकट दी थी उसके जीतने की चांस अधिक बताए जा रहे थे। मगर पार्टी का हुक्म मानकर कार्यकर्ता और नेताओं ने डा. रवजोत को विजयी बनाने के लिए मेहनत करनी शुरु कर दी। दूसरी तरफ बीबी महिंदर कौर जोश जोकि अकाली-भाजपा प्रत्याशी थी, उनकी हार को लेकर कोई दो राय नहीं रही थी, क्योंकि लोग सरकार की कार्यप्र्रणाली से दुखी हो चुके थे। रही बात कांग्रेस के पवन आदिया की तो वे भी पार्टी की तरफ से टिकट के चाहवान थे और हल्के में जनसंपर्क करने में वे किसी से पीछे नहीं थे। राजनीतिक माहिरों का मानना है कि आदिया का पल्स प्वाइंट यह रहा कि वे कंडी के ऐसे-ऐसे गांवों में गए, जहां चुनाव के बाद तो क्या वोट मांगने के लिए भी शायद किसी अन्य पार्टी का कोई प्रत्याशी पहुंचा हो। कंडी के एक गांव में तो लोगों ने यहां तक कह डाला था कि पहले भी आदिया ही उनके गांव में आए थे और आज भी वे ही आए हैं तथा वे आदिया के साथ हैं। ऐसे में यह समझने में कोई मुश्किल नहीं होनी चाहिए कि कहीं न कहीं डा. रवजोत पूरे इलाके के लोगों के साथ संपर्क बनाने में असफल ही रहे और लोगों के दिल में जगह नहीं बना पाए, जिसके चलते शाम चौरासी में पवन की ऐसी ‘पवन’ चली कि झाड़ू तिनका-तिनका हो गया। ऐसा ही कुछ हाल जिला होशियारपुर से संबंधित होशियारपुर सीट, मुकेरियां सीट, टांडा उड़मुड़ सीट, दसूहा और चब्बेवाल सीट का रहा। जहां तक सवाल गढ़शंकर सीट है उसे आप के लिए लाटरी ही समझा जा रहा है, क्योंकि वहां पर अकाली-भाजपा प्रत्याशी को जनता के रोष और कांग्रेसी उम्मीदवार को उसके अपनों ने भी हार का सेहरा पहना दिया। अधिकतर सीटों पर उम्मीदवार इतने ओवरकानफिडैंस थे कि उन्हें लगता था कि अगर वे हल्के में न भी जाएं तो भी लोग झाड़ू को सर आंखों पर बिठाएंगे। परन्तु जनता ने उनका घमंड ऐसा तोड़ा कि उन्हें सूझ ही नहीं रहा कि आखिर उनके साथ हुआ क्या? वो कहते हैं न कि असफलता को सफलता में बदलना ही सच्चे सिपाही की निशानी होती है, हार की जिम्मेदारी लेने की बजाए उसे कोई न कोई बहाना बनाकर टालना या किसी और पर डालना सही नहीं होता। मगर, आम आदमी पार्टी द्वारा सांप निकल जाने के बाद लकीर पीटने का जो यह हाई प्रोफाइल ड्रामा किया जा रहा है वह राजनीतिक ही नहीं बल्कि चाप-चौपालों पर चर्चा की विषय बना हुआ है। वो कहते हैं न! कि भाई यही तो राजनीति है, इसे समझना आसान नहीं?

100 पल्स तो जीते हैं, कितनी कम हो जाएंगी?

आम आदमी पार्टी से जुड़े सूत्रों की मानें तो पंजाब में आप को 100 पल्स सीटें जीतने का अनुमान था। अगर कोई वालंटियर या नेता आप के किसी बड़े नेता को राजनीतिक गलियारों की हवा के बदलते रुख और जमीनी स्तर पर किसी कमी की जानकारी देता था तो उसे यह कहकर चुप करवा दिया जाता था कि 100 पल्स तो जीते हैं, कितनी कम हो जाएंगी, 10-20 या फिर 30, तुम घबराओ नहीं सरकार हम ही बनाएंगे, तुम फील्ड में काम करो। परन्तु ऐसा सोचने वाले नेताओं ने चुनाव परिणाम के बाद पंजाब का मुंह देखना भी जरुरी नहीं समझा। जिसे लेकर भी राजनीतिक गलियारों में काफी चर्चा होती रहती है और आप के नेता व वालंटियर हार को पचा नहीं पा रहे हैं। पता सभी को है कि हार के मुख्य कारण क्या हैं, मगर खुलकर बोलने को कोई तैयार नहीं, क्योंकि उन्हें डर है कि अगर वे खुलकर बोलते हैं तो उनका हाल भी उन नेताओं जैसा न हो जाए जिन्हें चुनाव से पहले पार्टी ने बाहर का रास्ता दिखा दिया था या वे खुद ही इसे छोडऩे को मजबूर हो गए थे।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here