पंजाबी कल्चरल कौंसिल द्वारा चंडीगढ़ में पंजाबी भाषा संबंधी कानून लागू करने की मांग

चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़)। पंजाबी कल्चरल कौंसिल ने प्रस्ताव पास करके चंडीगढ़ के प्रशासक और पंजाब के राज्यपाल से मांग की है कि चंडीगढ़ में मातृ भाषा पंजाबी को बनता रुतबा देने के लिए पंजाब द्वारा लागू किये दो कानूनों-‘पंजाबी भाषा और अन्य भाषा सीखने संबंधी कानून-2008’ और ‘पंजाबी भाषा (संशोधन) कानून -2008’ को इस केंद्रीय शासित क्षेत्र में भी लागू किया जाए। जिससे चंडीगढ़ के विकास में योगदान डाल रहे लाखों पंजाबियों की काफी देर की मांग स्वीकृत हो सके। साथ ही उन्होंने पंजाब हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस से मांग की है कि उक्त कानूनों को बिना किसी देरी से यथावत लागू करवा के राज्य की अधीनस्थ अदालतों के अंदर सारा कामकाज पंजाबी भाषा में करने के आदेश जारी किये जाएं।

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इस संबंधी कौंसिल के चेयरमैन हरजीत सिंह ग्रेवाल स्टेट अवार्डी ने बताया यहां पंजाबी कल्चरल कौंसिल की वार्षिक मीटिंग के दौरान पंजाबी भाषा की प्रफुल्लित के लिए विभिन्न प्रस्ताव पास करते हुए कौंसिल के नेताओं ने हैरानी जताई कि जब पंजाब सरकार की तरफ से लागू होते सभी कानूनों को चंडीगढ़ में अपनाया जाता है तो पंजाबी की प्रफुल्लता के लिए उक्त दोनों कानूनों को प्रशासन द्वारा क्यों नहीं लागू किया जा रहा। कौंसिल ने मांग की है कि चंडीगढ़ में पंजाबी भाषा के विकास के लिए और मां-बोली के शाश्वत अस्तित्व को कायम रखने के लिए प्रशासन की तरफ से पंजाबी भाषा विभाग और पंजाबी साहित्य अकादमी कायम करके मां-बोली का सम्मान किया जाये। इसके अलावा चंडीगढ़ के सभी सरकारी स्कूलों और कालेजों में पंजाबी पढ़ाने के लिए जरुरी अध्यापक और लैक्चरर भर्ती किये जाएं। कौंसिल ने 21 फरवरी को अंतर्राष्ट्रीय मातृभाषा दिवस मनाने का निर्णय लिया है।

कौंसिल नेताओं ने चंडीगढ़ नगर निगम के नये चुने सीनियर डिप्टी मेयर हरदीप सिंह बुटरेला और प्रो. पंडित राव धनेशवर की तरफ से पंजाबी भाषा को अपेक्षित दर्जा दिलाने के लिए की गई कोशिशों का जिक्र करते हुए दोनों शख्सियतों को पंजाबी कल्चरल कौंसिल की तरफ से दुशालें, सिरोपे और यादगारी चिन्हों से सम्मानित किया। इस दौरान ग्रेवाल ने कहा कि हरदीप सिंह जैसे मेहनती और काबिल नौजवान को नगर कौंसिल में बड़ा रुतबा प्राप्त होने से केंद्रीय शासित इलाके में पंजाबियों विशेषत: सिखों की छवि उजागर होगी और इसका प्रभाव ‘ट्राईसिटी’ पर भी पड़ेगा। उन्होंने आशा अभिव्यक्त की कि दोनों शख्सियतें अपनी मिट्टी का कर्ज उतारने के लिए मां-बोली पंजाबी को हर क्षेत्र में अग्रणीय रखने और इसकी तरक्की के लिए यत्न जारी रखेंगी। इस अवसर परदोनों शख्सियतों ने चंडीगढ़ में पंजाबी भाषा की प्रफुल्लता के लिए हर संभव कदम उठाने और कौंसिल की हर मदद करने का भरोसा भी दिलाया।

ग्रेवाल ने बोलते हुए कहा है कि बेशक वक्त अनुसार चंडीगढ़ को पंजाब और हरियाणा की सांझी राजधानी के तौर पर स्वीकृत किया हुआ है परंतु इस केंद्रीय शासित प्रदेश पर पंजाब का कानूनन हक है क्योंकि पंजाब के खुशहाल 28 गांवों को उजाड़ कर करीब 30,000 हजार एकड़ क्षेत्रफल पर बसाया यह शहर सिर्फ पंजाब की राजधानी के तौर पर ही बनाया गया था। उन्होंने कहा कि इस समय चंडीगढ़ में मां-बोली की यह दशा है कि किसी भी दफ्तर में पंजाबी का नामो-निशान नहीं, कहीं भी पंजाबी का बोर्ड नहीं बल्कि यहां रहते बहुसंख्यक पंजाबी भाईचारे पर जानबूझ कर हिंदी थोपी जा रही है। उन्होंने कहा कि राज्य पुनर्गठन कानून के अनुसार पूरे देश में पैतृक राज्यों को ही हक अनुसार पहले से स्थापित राजधानी दी गई है परंतु आजाद भारत में पंजाब की यह नई उदाहरण है कि जहां दो राज्यों की एक ही सांझी राजधानी और एक ही सांझी हाईकोर्ट हो।

उन्होंने पंजाब सरकार, समूह राजनीतिक पक्ष, सामाजिक और धार्मिक संस्थाओं सहित लेखकों और बुद्धिजीवियों से अपील की है कि वह राजधानी में मां-बोली को बनता हक और रुतबा दिलाने के लिए तेज स्तर पर हल करें ताकि पिछले समय दौरान पंजाब विधान सभा की तरफ से चंडीगढ़ में पंजाबी भाषा को पूर्ण रूप में लागू करवाने के लिए सर्वसम्मति से पास किये प्रस्तावों को लागू करवाया जा सके। 

इस मौके पर पंजाबी कल्चरल कौंसिल के सीनियर वित्त सचिव बलजीत सिंह सैनी, प्रैस सचिव हरजिंदर कुमार, जोगिंदरपाल, गतका ऐसोसिएशन मोहाली के अध्यक्ष कंवर हरबीर सिंह ढींढसा, सचिव हरप्रीत सिंह सराओ, वित्त सचिव परमजीत सिंह, पूर्व सरपंच सरबजीत सिंह ढींढसा, कंवलजीत सिंह मान पीर सौहाणा, गुरप्रीत सिंह ढींढसा, परविंदर सिंह खरड़ और भूपिंदर सिंह मुंडी खरड़ उपस्थित थे।

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