होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। पिछलो कुछ दशकों से राज्य की सरकारों की तरफ से नशा युक्त पंजाब को नशा मुक्त बनाने के लिए जो कार्य किए गए हैं। उनके नतीजे अच्छे न आने का कारण सरकारों की नीयत साफ न होना है और न ही इसके लिए साफ नीयत को बनाना है। नशीले पदार्थों के सेवन से होने वाले दुष्प्रभावों से अज्ञानता के कारण कुछ युवक शौंक के तौर पर नशों का सेवन करते हैं और व फिर इस नशे रूपी जीवन में फंसकर जिन्दगी खराब कर लेते हैं। आज सामाजिक जागरूकता के लिए कार्यरत संस्था सवेरा की तरफ से एक प्रैस कांफ्रैंस के दौरान समज के बुद्धीजीवीयों व माता-पिता को अपील की गई है कि अगर किसी बच्चे में बीमारी नशा खोरी के लक्ष्ण दिखाई दें तो उसको तुरंत डाक्टरी सहायता दिलवानी चाहिए ताकि जो उसको नशाखोरी की बीमारी से बचाया जा सके।
नशे को सामाजिक अभिषाप न समझते हुए एक बीमारी के तौर पर लेने की जरूरत
पत्रकारवार्ता में सवेरा के कनवीनर डा. अजय बग्गा, डा. अविनाश ओहरी, प्रो. जे.एस. बडियाल, हरीश सैनी व सुनील प्रिय आदि मौजूद थे। उन्होंने बताया कि आज से 10 वर्ष पहले जब एच.आई.वी व ऐडज़ की बीमारी का फैलाव बढ़ रहा था तो जागरूकता लहर के द्वारा लोगों को अपील की गई थी की ऐडज़ से बचने के लिए अनैतिक संबंध न बनाए, निरोध का इस्तेमाल करो व एक ही सुई को टीकाकरण करने के लिए इस्तेमाल न करें। इस लहर के प्रति एच.आई.वी व एडज़ की बीमारी के फैलाव में नकेल पड़ी। उन्होंने कहा कि नशाखोरी के लक्ष्णों व नशाखोरी के साथ होने वाले दुष्परिणामों के बारे में जागरुकता लहर चलाए जाने के साथ इस बीमारी पर भी नकेल डाली जा सकती है।
संस्था सवेरा की तरफ से बीमारी नशा खोरी के लक्ष्णों के बारे में जागरूकता अभियान
डा. अजय बग्गा ने बताया कि अफसोस की बात है कि पंजाब के 20 मैंबर लोक सभा व राज्य सभा और 117 विधानकारों में 5 प्रतिशत से भी कम राजनीतिज्ञों द्वारा नशाखोरी के खिलाफ अपने इलाकों में जागरुकता लहर चलाई गई। लोगों की सेवा करने की बातों की वजह से वोटें लेने के लिए तो चुनाव के दौरान बहुत जलसे निकलते हैं परन्तु नशामुक्त पंजाब करने के लिए ऐसे प्रोग्राम क्यों नहीं करवाए जाते।
मौजूदा सरकार की तरफ से नशाखोरी रोकने के लिए नीति को गलत करार देते हुए डा. बग्गा ने कहा कि साफ नीयत न होने की वजह से 15 मई से लेकर 15 जून तक 18 से 35 वर्ष के 60 नौजवानों की मौत पंजाब में हुई है। इनमें ज्यादातर माझे व दोआबा क्षेत्र के थे। माननीय पंजाब व हरियाणा हाईकोर्ट ने भी 13 जुलाई को पंजाब सरकार को निर्देश जारी किए कि नशों को रोकने के लिए स्पष्ट नीति बनाई जाए। सरकार की तरफ से 4 लाख कर्मचारियों का डोप टैस्ट करवाने को ड्रामा बताते हुए सवेरा के मैंबरों ने बताया कि इस में 25 करोड़ रूपए खर्च आएगा व यह टैस्ट करने के लिए एक साल का समय लग जाएगा। क्या यह टैस्ट करने के साथ नशा रुक जाएगा? डोप टेस्ट तो एक स्क्रीनिग टेस्ट है व यह कोई पक्का टेस्ट नहीं है।
डा. बग्गा ने यह भी बताया कि पंजाब के 6 जिलों के डिप्टी कमीश्नरों ने धारा 144 के अधीन सुईयों के बेचने पर पाबंदी लगाई है। दुनिया के 77 देशों में सीरिंज एक्सचैंज प्रोग्राम के अधीन नशा करने वालों को मुफ्त सरिंजे दी जाती हैं ताकि एच.आई.वी व हैप्पेटाइटस-सी से इन मरीजों को बचाया जा सके। आस्ट्रेलिया व न्यूजीलैंड में तो मुफ्त सीरिंज देने के लिए विशेष मशीने लगाई गई हैं। अफसोस की बात है कि नशों को रोकने के लिए चलाए गए पंजाब मैंटल हैल्थ सैल में एक भी साइकेट्रिस नहीं है। यह सैल प्रदेश के डी-एडीकशन व पूर्णवास केन्द्रों के लिए नडोल संस्था है। 15 महीने बीत जाने के बाद भी मौजूदा पंजाब सरकार का ध्यान मनोविज्ञानिक व क्लिनीकल साइकोलाजिस्ट की नियुक्ती में अब गया है। यहां से स्पष्ट होता है कि नीयत खराब है व नीती गलत है।
नशाखोरी के लक्ष्ण इस प्रकार हैं। :
1. मरीज का घर से ज्यादा बाहर रहना व सामाजिक प्रोग्रामों में हिस्सा न लेना।
2. आंखे लाल चढ़ी रहना ।
3. ज्यादा नींद आना या न आना।
4. बाथरूम में ज्यादा समय व्यतीत करना।
5. शरीर पर टीकों के निशान होना ।
6. ज्यादा बोलना या चुप रहना ।
7. पढ़ाई में दिलचस्पी का कम होना, भूख न लगना व शारीरिक तौर पर कमजोर होना।
8. चिड़चिड़ापन, लड़ाई-झगड़ा व बार-बार दुर्घटना का शिकार होना ।
9. नाक, मुंह व आंखों में से पानी का बहना।
10. कपड़ों में से बदबू आना, सफाई न रखना व बहुत कम नहाना।