13 अप्रैल का सूरज लाया था राजौरी में नया उजाला, 1947 को नहीं 1948 को मिली थी आजादी

जम्मू कश्मीर/राजौरी(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: अनिल भारद्वाज। आखिरकार स्वतंत्रता सेनानियों की कुर्बानी रंग लाई। पूरे देश में आजादी का जश्न मनाया जा रहा था। जो हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान को रास नहीं आया। उसने कबाइलियों को भेजकर राज्य पर कब्जा करने का असफल प्रयास किया। सेना ने कबाइलियों को घाटी से खदेड़ा तो वे राजौरी में घुस आए और तीस हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया। 12 अप्रैल 1948 की आधी रात तक राजौरी पर कहर टूटता रहा। लेकिन 13 अप्रैल 1948 का सूरज खुशियां लेकर आया। जी 1947 को नहीं 13 अप्रैल 1948 को मिली थी आजादी। इस दिन भारतीय सेना ने राजौरी को कबाइलियों से मुक्त करवा अपने कब्जे में ले लिया। इसलिए राजौरी के लोग 13 अप्रैल को विजय दिवस के रूप में मनाते हैं और सेना शौर्य के तौर पर इस दिन को मनाती है। 26 अक्टूबर 1947 को महाराजा हरी सिंह ने राज्य का विलय भारत के साथ कर दिया। इसके ठीक एक दिन बाद 27 अक्टूबर 1947 को पाक ने कबाइलियों को जम्मू-कश्मीर में भेजकर कब्जा करने का प्रयास किया।

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कश्मीर घाटी से खदेड़े जाने पर राजौरी में घुस आए थे कबाइली, तीस हजार से अधिक लोगों को सुला दिया था मौत की नींद

कबाइलियों ने राजौरी में आते ही लोगों को मौत के घाट उतारना शुरू कर दिया। महिलाओं की अस्मत लूटी गई। 11 नवंबर 1947 को देश में दीपावली का पर्व मनाया जा रहा था तथा वहां राजौरी में कबाइलियों के जुल्म में जल रहा था। पूरा राजौरी आग की लपटों में घिरा हुआ नजर आ रहा था। इस दौरान तीस हजार से अधिक लोगों को मौत के घाट उतार दिया गया। बड़ी संख्या में महिलाओं ने जहर खाकर आत्महत्या कर ली। कई महिलाओं ने अपनी बेटियों के साथ जहर खा लिया तो कुछ ने कुएं में छलांग लगा दी। उस स्थान पर अब बलिदान भवन बना दिया गया जिसका पहला निर्माण नवम्बर 1969 को हुआ। विशेष दिनों में पाठ पूजा के साथ शहीदों को याद किया जाता है। शुक्रवार दोपहर से ही देश भक्ति का कार्यक्रम आयोजित किया गया। जो प्रत्येक वर्ष आयोजित होता है। आजादी दिवस धूमधाम के साथ मनाया जाता है

भयानक मंजर याद कर कांप जाते हैं

भाजपा वरिष्ठ नेता व पूर्व मंत्री कुलदीप राज गुप्ता निवासी राजौरी कुलदीप राज गुप्ता आज भी उस भयानक मंजर को याद कर कांप उठते हैं। उनका कहना है कि आज भी मुझे बच्चों के रोने की आवाज सुनाई देती है। बच्चे अपनी मां से जुदा होकर रो रहे थे। उस समय मेरी उम्र सिर्फ दस वर्ष थी। मैंने देखा कि कई माताएं जहर खाकर अपनी जान दे रही थीं। उस समय राजौरी के तहसीलदार हरजी लाल थे। जब कबाइलियों ने हमला बोला तो वह हम लोगों की सुरक्षा के लिए तैनात गोरखा राइफल के बीस जवानों को अपने साथ लेकर रियासी भाग गए। आर.एस.एस. व सिंह सभा के सदस्यों का भी गोलाबारूद खत्म हो चुका था। इसका लाभ उठाकर कबाइलियों ने आक्रमण तेज कर दिया। इस लड़ाई में मेरे पिता के साथ परिवार के कई सदस्य मारे गए।

– 13 अप्रैल को भारतीय सेना ने राजौरी पर कब्जा कर लिया, राजौरी निवासी विजय दिवस और सेना शौर्य दिवस के रूप में मनाती है आज का दिन
पूर्व एम.एल.सी. चौधरी गुलजार कहते हैं कि कबाइलियों ने राजौरी पर बहुत कहर बरसाया। जो भी सुंदर महिला मिली उसको अपने साथ ले गए। किसी को भी नहीं छोड़ा जो मिला उसे मौत के घाट उतार दिया। उनका कहना है कि आज भी जब वह मंजर याद आता है तो आंखों से आंसू अपने आप बहने लगते हैं।

कत्लेआम करने पर बजाते थे ढोल

कबाइलियों के साथ रह चुके बेली राम जो कुछ वर्ष पहले दुनियां को अलविदा कह चुके हैं ने कुछ वर्ष पहले बातचीत के दौरान बताया था कि उस समय उनकी उम्र तीस वर्ष थी। उन्होंने बताया था कि वह ढोल बजाकर गुजर-बसर करते थे। कबाइली हमले में उनका दस वर्ष का बेटा मर गया था। कबाइलियों ने उन्हें अपने साथ इसलिए रखा था कि जब वह लोगों को मौत के घाट उतारते थे तो उन्हें ढोल बजाने के लिए कहा जाता था लेकिन बेबसी के मारे अंदर ही अंदर रोते थे। मजबूरी में उन्हें ढोल बजाना पड़ता था। महिलाएं राजौरी नगर में स्थित मोहल्ला नाबन के कुएं में कूद कर अपनी जान दे दी थी। राणे हवाई पट्टी के अंदर भी कई लोगों को मौत की नींद सुला दिया गया था। महिलाओं और पुरुषों की लाइनें अलग-अलग लगी थी और कबाइली कहर मचा रहे थे।

मंडी चौराहे व ए.एल.जी. सेना मैदान पर कार्यक्रम प्रत्येक वर्ष 13 अप्रैल को मंडी चौराहे पर बनाए गए शहीदी स्मारक पर श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। इसमें सैन्य अधिकारी, धर्म गुरु, प्रशासनिक अधिकारी व आम लोग प्रार्थना सभा में भाग लेते हैं। शुक्रवार शाम तक शहीदी स्मारक को सजने संवरने का काम सेना जवानों द्वारा किया जा रहा था। मौलवी गुलाम उल दीन भी किए जाते हैं याद मौलवी गुलाम उल्लदीन ने 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान पाक सेना की हर गतिविधि की सूचना भारतीय सेना को दी और सेना के जवानों ने समय रहते अपनी सभी तैयारियों को पूरा करके दुश्मन का डट कर मुकाबला किया। उस दौरान सेना ने मौलवी को अशोक चक्र से सम्मानित किया था। प्रत्येक वर्ष राजौरी दिवस के दिन मौलवी गुलाम उल्लदीन को भी याद किया जाता है और उनके द्वारा किए गए इस कार्य को लोगों को बताया जाता है।

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