मामला सेवा दा नहीं पैसे दा है जनाब: “रोण लग पे कई एमसी, कहिंदे इक महीने दी सैलरी मर गी”


14 फरवरी का वो दिन जिस दिन नगर निगम होशियारपुर चुनाव में विजय होने वाले अधिकतर की आंखों में एक नई ही चमक थी। जीतने के बाद कई तो जहां अपने पहले की तरह ही रोजमर्रा के वार्ड के विकास एवं नए कार्य करवाने में व्यस्त हो गए तो कईयों के दिमाग में “मेयर कब बनाया जाएगा और किसे बनाया जाएगा” तथा शपथ ग्रहण समारोह कब होगा। क्योंकि जब शपथ ग्रहण समारोह होगा उसी दिन सभी नवनिर्वाचित पार्षद, संवैधानिक तौर पर पार्षद की जिम्मेदारी संभालेंगे। उससे पहले भले ही पार्षद कहलाएं, पर फिलहाल तो उनके पास किसी के कागजात पर मोहर लगाने का भी अधिकार नहीं है। लोगों को पूर्व पार्षदों की मोहर से ही काम चलाना पड़ रहा है। खैर मेयर जो भी बने या जब भी बने ये तो बहुमत में आई कांग्रेस पार्टी ही जाने या उसके आला नेता।

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लालाजी स्टैलर की राजनीतिक चुटकी

इन दिनों एक चर्चा शहर में इतनी सरगर्म है कि समाज सेवा का दम भरने वाले नवनिर्वाचित कई पार्षदों को एक माह की सैलरी न मिलने का गम सताने लगा है। चर्चा है कि जनसेवा की बड़ी-बड़ी बातें करने वाले कई “पार्षदों का रोणा इसी बात को लेकर है कि पता नहीं जी मेयर कदों बणना, पर साडी तां इक महीने दी सैलरी तां गई महाराज।” अब ये समझ नहीं आ रहा कि सेवा बड़ी या सैलरी। कई पार्षदों ने निगम से मिलने वाली सैलरी वार्ड के विकास कार्यों पर लगाने की घोषणा कर रखी है तो नए-नए बने कई पार्षदों की निगाहें तो सिर्फ और सिर्फ माह बाद मिलने वाली सैलरी और बैठकों के मिलने वाले मान भत्ते पर ही टिकी दिखाई देने लगी हैं। जिसके चलते कई पार्षदों के दिल में क्या है उन्हीं की जुबानी सच बनकर सामने आने लगा है।

चर्चा इस बात की भी है कि जो पार्षद अभी से सैलरी का चिंतन करने लग पड़े वह जन सेवा जैसा पवित्र कार्य कैसे कर पाएंगे। खैर हमें क्या, जिन्होंने ऐसे पार्षदों को जिताया है वे खुद भुगतेंगे या उनकी ऐसी सोच की तपिश उन्हें लगेगी जिनकी बदौलत उन्होंने विजयी श्री का हार पहना है। यह भी पता चला था कि सरकार द्वारा मेयर का पद आरक्षित किए जाने के चलते देरी हो रही थी, अब जबकि सरकार ने इस संबंधी आदेश जारी कर दिए हैं तो जल्द ही होशियारपुर को नया मेयर मिल जाएगा। परंतु तब तक ऐसे पार्षद दिन कैसे काटेंगे यह तो वही जानें।

क्या कौन-कौन से महानुभव हैं जिनकी मीठी जुवान से ऐसे बोल निकल रहे हैं? रहने दो भाई क्यों उन्हें मेरे पीछे लगाते हो, वैसे भी उनकी पहुंच बहुत बड़े-बड़े नेताओं तक है। बात खुल गई तो लेने के देने न पड़ जाएं। अब चर्चा हुई तो सोचा आपसे शेयर कर लूं। अब आप खुद ही तलाश कर लो कि ऐसे महानुभव कौन हैं और किस-किस वार्ड से संबंधित हैं। मैं तो चला। जय राम जी की।

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