योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में रामनवमी के उपलक्ष्य में करवाया गया श्री रामायण जी का पाठ

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में रामनवमी महोत्सव के उपलक्ष्य में रखे गए चार दिवसीय श्री रामायण जी का पाठ आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा के सानिध्य में संपन्न हुआ। सभी सरकारी निर्देशों का पालन करते हुए भक्तों को सोशल मीडिया के माध्यम से संबोधित करते हुए आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा जी ने कहा कि योगीराज चमन लाल जी महाराज कहते थे कि प्रभु रामलाल जी का अवतार योग विद्या के माध्यम से जीवो का कल्याण करने के लिए ,उन्हें निरोग करने, उन्हें पापों से हटाकर धर्म में लगाने, बुद्धि में ज्ञान तथा आत्मा का उद्धार करने हेतु हुआ है। उन्होंने कहा की जीव तीन तरह के होते हैं। देव, मानव तथा असुर। देव सात्विक आचरण के होते हैं। जो धर्म मार्ग पर चलते हैं। मानव राजसिक गुणों से संपन्न होते हैं तथा पाप, पुण्य अभिमान इत्यादि का साधारण जीवन व्यतीत करते हैं तथा असुर तामसिक गुणों में युक्त अन्य जीवो को दुख देते रहते है। उन्हें हानि पहुंचाते हैं।

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उन्होंने कहा कि हमें सात्विक गुण रखते हुए देव बनने का प्रयास करना चाहिए। हमें अपनी आत्मा को ऊपर उठाना चाहिए और नीचे नहीं गिरने देना चाहिए। इसके लिए हमें प्रभु जी की शिक्षाओं पर चलते अपने शरीर ,मन व बुद्धि का आध्यात्मिक विकास करते रहना चाहिए। दवाइयों से शरीर के रोगों के निवारण की अपेक्षा योग के सरल साधनों से हवा और पानी से ठीक रखना चाहिए। योग विद्या प्राचीन है। जो सतयुग में भी वही थी जो आज कलयुग में है। जो लोग योग के साधनों से शरीर में एकत्रित मल को साफ नहीं करते वह अपने जीवन से खिलवाड़ करते हैं। मन को सात्विक व स्थिर करने हेतु अहिंसा के मार्ग पर चलना चाहिए। जो जीव हिंसक है ,असत्य बोलता तथा चोरी करता है, ब्रह्मचर्य का पालन नहीं करता, इंद्रियों को खुली छूट दे देता है तथा सांसारिक वस्तुओं को इक_ा करता रहता है उसका मन कमजोर पड़ जाता है। जिससे इंद्रियां पाप कर्म करवा लेती है। बुद्धि को स्थिर एवं ज्ञानवान करने हेतु ग्रंथों का स्वाध्याय करना चाहिए। ज्ञान मनुष्य के लिए ही बना है। जानवर तो ग्रंथ नहीं पढ़ सकते। जब बुद्धि में ज्ञान ना हो। वह मन को अच्छे रास्ते पर नहीं चला सकती। इस प्रकार का मनुष्य जीवन की विपरीत दिशा पर चलता रहता है तथा प्रभु के धर्म स्थापना कार्य में रुकावट बनकर पाप का भागी बनता है। यह ज्ञान योग आश्रम में सद्गुरु से प्राप्त होता है। कार्यक्रम की इतिश्री श्री दिव्या रामायण सहगान के साथ प्रभु भक्तों ने ग्रंथ पर अपने अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करके की।

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