भक्त सदा निरंकार पर ही पूर्ण समर्पण करके अपना हर कर्म करता है: सुदीक्षा जी

होशियारपुर 12 जुलाई : एक भक्त सदा निरंकार पर ही पूर्ण समर्पण करके अपना हर कर्म करता है।  उक्त पावन प्रवचन सत्गुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने ब्रचुअल समागम के दौरान प्रकट किए। उन्होंने फरमाया कि ब्रह्मज्ञान बहुमूल्य है और इस धन की संभाल एवं इस पर विश्वास बढ़ाने के लिए इसका जिक्र करना, इस पर आधारित जीवन जीना तथा अन्य संतों के साथ अपने और उनके अनुभव, भाव को सांझा करना जरूरी हैं।  सत्संग हमेशा हमें परिपक्व बनाती है। बाबा हरदेव सिंह जी महाराज ने एक बार उदाहरण के माध्यम द्वारा बताया कि कोई संतरे बेचने वाला बोल रहा था – अच्छे संतरे इसका संधि विच्छेद करें तो समझ आता है कि अच्छे संग तरे, अर्थात अच्छों का संग ही तारने वाला होता है।

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उन्होंने फरमाया कि हमें उन विचारों से दूर रहना है जो हमें एक आदर्श मानव बनने में बाधा उत्पन्न करती है। अक्सर सुनते हैं कुछ भी बनो मुबारक है, पहले पर इंसान बनो। बस इसी बात का ध्यान रखना है। ओहदे, शोहरत और माया किसी काम के नहीं, यदि हम अच्छे इंसान नहीं बन सके। जैसा कि एक शायर ने कहा -घरों पर नाम थे, नाम के साथ ओहदे थे, बहुत तलाश किया पर इंसान न मिला। उन्होंने आगे फरमाया कि सभी बातों तथा समस्याओं का समाधान निरंकार, निष्काम सेवाभाव एवं सत्संग है।  सत्संग में रुचि किसी के दबाव या प्रभाव में नहीं, अपितु अपने रुझान से होनी चाहिए। सत्संग की महिमा शब्दों में नहीं कही जा सकती। इसका एक क्षणभर भी जीवन परिवर्तित कर सकता है। निरंकार पर अपने जीवन की ड़ोर को छोड़ना या स्वयं पकड़ के रखना, ये चुनाव हमें स्वयं करना होता है। हम दूसरे और अपने बीच दीवार तब खड़ी कर लेते हैं जब हम उस दीवार को पहले अपने मन में बनाते हैं। एक शायर ने भी कहा -मैं अपनी राह में दीवार बन के बैठा हूं, अगर वो आया तो किस रास्ते से आएगा।

हमें सबको निरंकार का रूप मानकर मन में बनी इन दीवारों को गिराना है। संपूर्ण अवतार बाणी में भी भाव आता है कि साध संगत से चेहरे पर नूर आता है और मन का पारा भी कायम रहता है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि संगत में आकर हम निरंकार से जुड़ जाते हैं, इसी पर सब कुछ छोड़कर हर प्रकार के तनाव से मुक्त हो जाते हैं। सत्संग हमें विनम्र रखती है, शांत रखती है और मन को ठहराव भी प्रदान करती है।  हमें कई बार ऐसा प्रतीत है कि सत्संग में आने वाले भाव तो हर बार एक जैसे ही हैं पर सत्य जितना पुराना है, उतना ही ये नया भी है। बातें वही हैं जो युगों युगों से संतों, महात्माओं ने कही। केवल प्रमाण और उदाहरण बदल जाते हैं। उन्होंने सत्संग की महत्ता के बारे में विचार प्रकट करते हुए कहा कि हमें सत्संग शुरू से अंत तक ध्यान से सुनना चाहिए । हमें छोटे-बड़े, अमीर-गरीब आदि के भेदभाव से ऊपर उठकर सब में परमात्मा का दर्शन करते हुए अपने जीवन को सुंदर बनाना है।

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