दातारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। शिव की महिमा अनंत है और उनके रूप, रंग और गुण भी अनन्त हैं। समस्त सृष्टि शिव मय है। सृष्टि से पूर्व शिव हैं और सृष्टि के विनाश के बाद केवल शिव ही शेष रहते हैं। शिव जी के अतिप्रिय महीने सावन मंगलवार के अवसर पर गगन जी के टिल्ला स्थित पचास फीट ऊंची और अपनी बनवाई शिव मूर्ति के सामने परम शिव भक्त मुकेश रंजन ने शिव महा पुराण पर प्रवचन करते हुए उक्त शब्द कहे| इस अवसर पर शिव भक्ति में इतने लीन हो गए कि खुद ही ढोल बजा कर मंत्र मुग्ध हो गए और जयकारे लगाते हुए नाचने लगे उन्होंने कहा ऐसा माना जाता है कि ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की, परंतु जब सृष्टि का विस्तार संभव न हुआ तब ब्रह्मा ने शिव का ध्यान किया और घोर तपस्या की। तब शिवजी अर्द्धनारीश्वर रूप में प्रकट हुए।
उन्होंने अपने शरीर के आधे भाग से शिवा (शक्ति या देवी) को अलग कर दिया। शिवा को प्रकृति, गुणमयी माया तथा निर्विकार बुद्धि के नाम से भी जाना जाता है। इसे अंबिका, सर्वलोकेश्वरी,त्रिदेव जननी, नित्य तथा मूल प्रकृति भी कहते हैं। इनकी आठ भुजाएं तथा विचित्र मुख हैं। अचिंत्य तेजोयुक्त यह माया संयोग से अनेक रूपों वाली हो जाती है। इस प्रकार सृष्टि की रचना के लिए शिव दो भागों में विभक्त हो गए, क्योंकि दो के बिना सृष्टि की रचना असंभव है। उन्होंने कहा शिव सिर पर गंगा और ललाट पर चंद्रमा धारण किए हैं। उनके पांच मुख पूर्वा, पश्चिमा, उत्तरा,दक्षिणा तथा ऊध्र्वाजो क्रमश:हरित,रक्त,धूम्र,नील और पीत वर्ण के माने जाते हैं। उनकी दस भुजाएं हैं और दसों हाथों में अभय, शूल, बज्र,टंक, पाश, अंकुश, खड्ग, घंटा, नाद और अग्नि आयुध हैं। उनके तीन नेत्र हैं। वह त्रिशूल धारी, प्रसन्नचित,कर्पूर गौर भस्मासिक्त कालस्वरूप भगवान हैं।
मुकेश रंजन जी ने कहा उनकी भुजाओं में तमोगुण नाशक सर्प लिपटे हैं। शिव पांच तरह के कार्य करते हैं जो ज्ञानमय हैं। सृष्टि की रचना करना, सृष्टि का भरण-पोषण करना, सृष्टि का विनाश करना, सृष्टि में परिवर्तन शीलता रखना और सृष्टि से मुक्ति प्रदान करना।