शारीरिक तंदरुस्ती का राज, भोजन की सही पसंद, साइंस सिटी की ओर से विश्व भोजन दिवस पर वेबिनार आयोजित

कपूरथला (स्टैलर न्यूज़), गौरव मड़िया: विश्व भोजन दिवस पर पुष्पा गुजराल साइंस सिटी की ओर से “जैविक व हलका भोजन, विज्ञान व स्थिरता’ के विषय पर एक वेबिनार का आयोजन किया गया। इस मौके 100 से अधिक पंजाब के अलग-अलग स्कूलों के विद्यार्थियों व अध्यापकों ने भाग लिया। साइंस सिटी की डायरेक्टर जनरल डा.नीलिमा जेरथ ने वेबिनार में उपस्थित अध्यापकों व विद्यार्थियों का स्वागत करते हुए बताया कि आज का दिन संयुक्त राष्ट्र की भोजन व खेतीबाड़ी संस्था (एफएओ) की वर्षगांठ के तौर पर मनाया जाता है। इस संस्था का उद्देश्य दुनिया से भूख को जड़ से खत्म करने का प्रयत्न करना है। उन्होंने कहा कि आज के दिवस को मनाने का उद्देश्य सेहतमंद व पौष्टिक भोजन यकीनी बनाने की जरुरत पर जोर देते हुए इस प्रति जागरुकता पैदा करना है।

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विश्व भोजन दिवस 2021 का थीम “साडे अमल साडा भविख, चंगा उत्पादन बेहतर भविख’ स्वच्छ वातावरण ते तंदरुस्त जिंदगी है’। उन्होंने कहा कि हमें क्या खाना है अर्थात किस तरह के भोजन का सेवन करना है। इसकी समझ होनी बहुत जरुरी है। क्योंकि एक पौष्टिक व सही भोजन की पसंद ही हमारे शरीर, दिमाग व आत्मा को सेहतमंद रख सकती है। बीते कुछ दशकों से जीवनशैली में आई तबदीलियों कारण हमारी खाने-पीने की आदतों के साथ-साथ भोजन में भी बहुत से परिवर्तन आए है। इसके अलावा विश्वीकरण व शहरीकरण बढ़ने कारण बेमौसमी भोजन की उपलब्धता व फटा फट अर्थात फास्ट फूड भी हमारे पर हावी हो रहा है। इसके विपरीत हलका व सादा भोजन रिवायती रसोई, स्थानीय व सेहतमंद भोजन की गवाही भरता है। ऐसे कुदरती भोजन के सेवन से जहां वातावरण व जलवायु परिवर्तन पर कम से कम प्रभाव पड़ते है, वहीं कुदरती भोजन के सेवन से वातावरण स्थिरता व सामाजिक न्याय को भी उत्साह मिलता है।

वेबिनार में प्रसिद्ध सैफ भोजन सलाहकार गुंझन गोयला मुख्य प्रवक्ता के तौर पर उपस्थित हुई। गुंझन ने संबोधित करते हुए बताया कि स्लो फूड मुहिम 1989 में शुरु हुई और इसका उद्देश्य स्थानीय भोजन सभ्याचार व परम्परागत भोजन को अालोप होने से बचाने के साथ-साथ फास्ट फूड के मुकाबले आगे बढाना है। ताकि विरासती रसोई के लिए गर्व की भावना पैदा हो। भारत में यह कोई नई लहर नहीं है, बल्कि भारतीय लोग सदियों से जरुरतें पूरी करने योग्य सिर्फ वह ही भोजन लेते आ रहे है, जोकि फिर से पर्यावरण में समा जाए। इसके अलावा शाकाहारी भोजन व पर्यावरण प्रति बढ़ रही जागरुकता के साथ सिर्फ कुदरती व सादा भोजन को ही नहीं बल्कि नए खुलने वाले रेस्टोरेंटों को भी बढ़ावा मिला है।
साइंस सिटी के डारेक्टर डा.राजेश ग्रोवर ने कहा कि हलका अर्थात सादा व जैविक भोजन निरोग व असली तत्व से भरपूर होता है। जोकि हमारे शरीर को ऊर्जा प्रदान करता है। यह भोजन कुदरती होने कारण इसे खराब होने से बचाने के लिए कीटनाशकों का छिड़काव भी कम होता है। इस तरह के उत्पाद स्थानीय किसानों व उत्पादकों से आसानी के साथ मिल जाते है और स्थानी लोग इसका लगातार प्रयोग करते है। जिससे पर्यावरण को दूषित करने वाली गैसों जैसे कार्बन फुट प्रिंट भी घटते है।

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