वातावरण संभाल के लिए जल बचाव को बनाएं जीवन का अभिन्न अंग: संजीव अरोड़ा

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़): जिस प्रकार तेजी के साथ धरती पर वातावरण परिवर्तन हो रहा है, उसके लिए कहीं न कहीं मानव जाति पूरी तरह से जिम्मेदार है। क्योंकि, हम अपने निजी स्वार्थों के चलते प्रकृति के साथ जो खिलवाड़ कर रहे हैं, उसके दुष्प्ररिणाम हम सभी के सामने हैं। अगर, हम अभी न संभले तो आने वाले समय में बहुत देर हो जाएगी। इसलिए सबसे पहले हमें जहां धरती को हरा-भरा रखने के लिए पेड़-पौधे लगाने का कोई भी मौका नहीं छोडऩा चाहिए वहीं जल बचाव को भी जीवन का अभिन्न अंग बनाना होगा ताकि हमारी आने वाली पीढिय़ों के लिए समय सुखद हो सके। यह विचार भारत विकास परिषद के अध्यक्ष एवं प्रमुख समाज सेवी संजीव अरोड़ा ने जल है तो कल है विषय पर आयोजित संगोष्ठि को संबोधित करते हुए व्यक्त किए।

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श्री अरोड़ा ने कहा कि एक तरफ जहां बढ़ते प्रदूषण से धरती का ऊपरी जल दूषित हो रहा है वहीं हमारी लापरवाही के कारण धरती के नीचे का जल भी धीरे-धीरे समाप्ति को बढ़ रहा है। विश्व में कई ऐसे देश एवं प्रदेश हैं, जहां पर धरती के नीचे का जल लगभग पूरी तरह से समाप्त हो चुका है तथा वहां पर पीने वाले साफ पानी के लिए लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए हम सभी का यह फर्ज बनता है कि हम जल बचाव हेतु अपनाए जा सकने वाले प्रत्येक उपाये को जरुर अपनाएं तथा जल को व्यर्थ बहने से बचाएं। सचिव राजिंदर मोदगिल एवं अमित नागपाल ने कहा कि जल बचाव हेतु हम छोटी-छोटी कोशिशों से इसकी बचत कर सकते हैं। जैसे, गाड़ी एवं स्कूटर आदि धोने के लिए बाल्टी में पानी लेकर धोएं, बिना कारण घर-आंगन को बार-बार न धोएं, शेव एवं ब्रश आदि करते समय नल को बंद रखें तथा जरुरत होने पर ही खोलें, सर्विस स्टेशन संचालकों को भी पानी की बचत हेतु आधुनिक मशीनरी का प्रयोग करना चाहिए तथा रसोई घर में बर्तन आदि साफ करते समय भी नल को जरुरत पडऩे पर ही खोलें। इसके अलावा और कई ऐसे उपाये हैं जिन्हें जीवन में धारण करके हम रोजाना लाखों-करोड़ों लीटर पानी की बचत कर सकते हैं। हमारे धर्म ग्रंथों एवं शास्त्रों में भी हमें जल बचाव की शिक्षा मिलती है। इस अवसर पर राजिंदर मोदगिल, अमित नागपाल, जगदीश अग्रवाल, दीपक मेहंदीरत्ता, नरिंदर भाटिया आदि मौजूद थे।

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