अधिकांश महिलाएं अनभिज्ञ हैं, घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 से: एडवोकेट सरोच/सिद्धू

दातारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। सामाजिक तौर पर महिलाओं को त्याग, सहनशीलता व शर्मीलेपन का ताज पहनाया गया है, जिस के भार से दबी महिला कई बार जानकारी होते हुए भी इन कानूनों का उपयोग नहीं कर पातीं तो बहुत केसों में महिलाओं को पता ही नहीं होता कि उनके साथ हो रही घटनाएं हिंसा हैं और इस से बचाव के लिए कोई कानून भी है। आमतौर पर शारीरिक प्रताडऩा यानी मारपीट, जान से मारना आदि को ही हिंसा माना जाता है और इसके लिए रिपोर्ट भी दर्ज कराई जाती है। ” उपरोक्त विचार वरिष्ठ अधिवक्ता शुभ सरोच तथा एडवोकेट राजगुलजिंदर सिद्धू ने द स्टैलर न्यूज़ के साथ व्यक्त किए गए। उन्होंने कहा कि इसके लिए भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंर्तगत मारपीट से लेकर कैद में रखना, खाना न देना व दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है, के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सजा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के केस ज्यादा होते हैं।

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एडवोकेट शुभ सरोच तथा एडवोकेट राजगुलजिंदर ने कहा कि मनपसंद कपड़े न पहन ने देना, मनपसंद नौकरीया काम न करने देना, अपनी पसंद से खाना न खाने देना, बालिग व्यक्ति को अपनी पसंद से विवाह न करने देना या ताने देना, मनहूस आदि कहना, शक करना, मायके न जाने देना, किसी खास व्यक्ति से मिलने पर रोक लगाना, पढऩे न देना, काम छोडऩे का दबाव डालना, कहीं आने-जाने पर रोक लगाना आदि मानसिक प्रताडऩा है। उन्होंने कहा यहां तक कि घरेलू हिंसा अधिनियम के बारे में भी महिलाएं अनभिज्ञ हैं। घरेलू हिंसा अधिनियम का निर्माण 2005 में किया गया और 26 अक्टूबर, 2006 से इसे लागू किया गया. यह अधिनियम महिला बाल विकास द्वारा ही संचालित किया जाता है। यह क़ानून ऐसी महिलाओं के लिए है, जो कुटुंब के भीतर होने वाली किसी क़िस्म की हिंसा से पी़डित हैं। इसमें अप शब्द कहने, किसी प्रकार की रोक-टोक करने और मार पीट करना आदि शामिल हैं।

इस अधिनियम के अंतर्गत महिलाओं के हर रूप मां, भाभी, बहन,पत्नी एवं किशोरियों से संबंधित प्रकरणों को शामिल किया जाता है घरेलू हिंसा अधिनियम के अंतर्गत प्रताडित महिला किसी भी व्यस्क पुरुष को अभियोजित कर सकती है अर्थात उसके विरुद्ध प्रकरण दर्ज करा सकती है. भारतीय दंड संहिता की धारा 498 के तहत ससुराल पक्ष के लोगों द्वारा की गई क्रूरता, जिसके अंतर्गत मार पीट से लेकर क़ैदमें रखना, खाना न देना एवं दहेज के लिए प्रताडि़त करना आदि आता है। घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत अपराधियों को 3 वर्ष तक की सज़ा दी जा सकती है, पर शारीरिक प्रताडऩा की तुलना में महिलाओं के साथ मानसिक प्रताडऩा के मामले ज़्यादा होते हैं। यहां हम कुछ ऐसे अपराध और क़ानूनी धाराओं का ज़िक्र कर रहे हैं, जिनकी जानकारी रहने पर महिलाएं अपने खिलाफ़ होने वाले अत्याचारों के खिलाफ़ आवाज़ उठा सकती हैं। अपहरण, भगाना या महिला को शादी के लिए मजबूर करने जैसे अपराध के लिए अभियुक्त के खिलाफ़ धारा-366 लगाई जाती है, जिसमें 10 वर्ष तक की सज़ा का प्रावधान है. पहली पत्नी के जीवित रहते दूसरा विवाह करना धारा-494 के तहत जघन्य जुर्म है और अभियुक्त को 7 वर्ष की सज़ा मिल सकती है। पति या उसके रिश्तेदारों द्वारा क्रूरता बरतने पर धारा-498 के तहत 3 साल की सज़ा दी जा सकती है. अगर कोई व्यक्ति या रिश्तेदार किसी महिला का अपमान करता है और उस पर झूठे आरोप लगाता हैतो उसे धारा-499 के तहत दो साल की सज़ा का भागी बनना पड़ सकता है. दहेज मांगना और उसके लिए प्रताडि़त करना बेहद जघन्य है, जिसके लिए भारतीय क़ानून में आजीवन कारावास की सज़ा का प्रावधान है। जो धारा-304 के तहत सुनाई जाती है।

दहेज मृत्य के लिए भी अभियुक्त पर धारा-304 ही लगाई जाती है. किसी लडक़ी या महिला पर आत्महत्या के लिए दबाव बनाना भी संगीन अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए धारा-306 के तहत 10 वर्ष की सज़ा मिलती है. सार्वजनिक स्थान पर अश्लील कार्य एवं अश्लील गीत गाने के लिए धारा-294 और 3 माह कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। महिला की शालीनता भंग करने की मंशा से की गई अश्लील हरकत के लिए धारा-354 और 2 वर्ष की सज़ा, महिला के साथ अश्लील हरकत करना या अपशब्द कहने पर धारा-509 और1 वर्ष की सज़ा, बलात्कार के लिए धारा-376 लगाई जाती है और10 वर्ष तक की सज़ाया उम्र क़ैद मिलती है। महिला की सहमति के बग़ैर गर्भपात कराना भी उतना ही बड़ा अपराध है, जिसके लिए अभियुक्त को धारा-313 के तहत आजीवन कारावास या10 वर्ष क़ैद और जुर्माने की कड़ी सज़ा का प्रावधान है।

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