स्टैलर एक्सक्लूसिवः ईसीएचएस में दवा घोटाले की आशंका, नियमानुसार 180 दिन और जारी कर दी गई 700 से 2000 दिन की दवा

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चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़), संदीप डोगरा। ईसीएचएस यानि एक्स सर्विसमैन कंट्रीब्यूटर हैल्थ स्कीम, यह योजना सरकार की वह योजना है जिसके माध्यम से एक्स सर्विसमैन या उनके आश्रितों को स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाई जाती है। इसके माध्यम से जहां स्वास्थ्य खराब होने पर एक्स सर्विसमैन या उनके परिवार के सदस्य को सैनिक अस्पताल या सेना द्वारा निर्धारित किए गए अस्पतालों में रैफर किया जाता है। ईसीएचएस जहां भी यह सेंटर स्थापित है वहां पर डाक्टरों की एक टीम ओपीडी की सुविधा के लिए भी उपलब्ध रहती है। लेकिन सूत्रों के हवाले से प्राप्त जानकारी अनुसार इस सुविधा की आड़ में मिलीभगत का खेल खेलकर कई लोग खूब मालामाल हो रहे हैं, जिसकी गहनता से जांच हो तो कई चेहरे बेनकाब होने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता।

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जानकारी अनुसार एक्स सर्विसमैन को सेहत खराब होने पर ईसीएचएस आना पड़ता है तथा अगर बीमारी नार्मल हो तो उसे वहीं चैकअप करके दवाई दे दी जाती है तथा बीमारी बड़ी हो तो उसे पंजीकृत किए गए किसी अस्पताल या सेना के अस्पताल में रैफर कर दिया जाता है। एेसी भी खबरें अकसर प्रकाश में आती रहती हैं कि रैफर भी अधिकतर उसी अस्पताल में किया जाता है, जहां से रैफरल को कमिश्न अधिक आता हो या कोई और लाभ मिलता हो।

खैर हम अब इस मुद्दे पर चर्चा न करके उक्त योजना पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। जब किसी मरीज को रैफर कर दिया जाता है तो तय नियमानुसार अस्पताल उसका इलाज करके उसे छुट्टी दे देते हैं। इसके बाद मरीज को ईसीएचएस आकर डाक्टर द्वारा लिखित दवाई लेनी पड़ती है। अगर सेंटर में दवा हो तो मरीज को इशु कर दी जाती है तथा अगर न हो तो मरीज को नाट अवेलेबल का प्रमाणपत्र देकर पंजीकृत दवा विक्रेता के पास भेज दिया जाता है। अब बारी आती है उस खेल कि जो बरसों से मिलीभगत से खेला जा रहा है और पिछले कुछ दिनों से इस बारे में चर्चाओं का बाजार गर्म होने से अब इस खेल से जुड़े पत्ते खामौशी धारण करके खुद को ईमानदारी की मिसाल बनाकर पेश करने में जुट गए हैं। जानकारी अनुसार ईसीएचएस के तहत नियम है कि मरीज को अधिकतर 180 दिन की दवा इशु की जानी होती है (सात दिन या अधिकतर 200 दिन) तथा अगर दवा तीन टाइम लेनी हो तो उसे 180 के हिसाब से गुणा करके 540 दिन की दवा इशु की जानी चाहिए। लेकिन एक ईसीएचएस में नियमों को ताक पर रखकर 700 से लेकर 1600 दिन की दवा इशु करने का मामला प्रकाश में आया है। हो सकता हो कि अधिकतर ईसीएचएस में एेसा खेल खेला जा रहा हो, मगर जिस सेंटर के रिकार्ड के कुछ कागजात हमारे हाथ लगे हैं, उससे मामले की संगीनता और बढ़ती नज़र आने लगी है। क्या एेसा हो सकता है कि किसी मरीज को 20 हजार से अधिक दिन की दवा दे दी गई हो। लेकिन जो रिकार्ड हमारे हाथ लगा है उससे तो यही सिद्ध होता है कि मामला संगीन और संवेदनशील है।

जो दवाएं ज्यादातर मरीजों को नियमों को ताक पर रखकर 600-700 से अधिक दिनों के लिए जारी की जाती हैं, उनमें सेलेटिव्स, नींद, साइकैट्रिक्स तथा कैंसर जैसी गंभीर बीमारी से संबंधित दवाएं शामिल हैं, जिनकी कीमत का अंदाजा आप सहद ही लगा सकते हैं कि इन बीमारियों से जुड़ी दवाओं की कीमत क्या होगी। सूत्रों की मानें तो एेसा करके इस योजना में कार्यरत कुछेक लोग दवाओं का घोटाला कर रहे हैं। इतना ही नहीं इनमें महंगी दवाएं भी शामिल हैं, जिसके चलते अनुमान अनुसार एक माह में औसतन करीब 8 से 12 लाख रुपये की दवाएं खुर्दबुर्द की जा रही हैं और एेसा एकाध साल से नहीं बल्कि लंबे समय से चल रहा है। जिसकी गहनता से जांच जरुरी हो चुकी है। अब खुद ही सोचिए कि 700 से 2000 दिन की दवा आखिर किसी मरीज को कितनी दवा दी जा सकती है, समझ से परे है।

अब ये खेल खेला कैसे जा रहा है इसकी जानकारी भी आपसे सांझा करना चाहेंगे, होता यूं है कि जब कोई मरीज दवा लेने आता है तो उसका नंबर कम्प्यूटर में एंटर किया जाता है तथा दवा देने के बाद उसे लागआउट करना होता है तथा एक दिन में नंबर एंटर होने के बाद सायं 4 बजे तक उसे दोबारा खोलकर उसमें बदलाव किए जा सकते हैं। बस इसी आप्शन का फायदा उठाते हुए दवाओं के दिन में बढ़ोतरी कर दी जाती है और उस बढ़ोतरी को बाहर सप्लाई करके जेबें भरे जाने का खेल होता है। नाम न छापने की शर्त पर एक शक्स ने बताया कि ये खेल किसी एकाध कर्मचारी के बस की बात नहीं बल्कि ये सब कथित तौर पर कुछेक अधिकारियों की छत्रछाया से ही संभव हो पा रहा है।

इसीलिए इस प्रकरण की जांच केन्द्र की निष्पक्ष एजेंसी द्वारा की जाए तो ही सच सामने आ सकता है या फिर किसी सेनानिवृत्त न्यायाधीश इसकी जांच करें। अब ये तो सरकार के हाथ में है कि इस मामले को कितनी गंभीरता से लिया जाता है और जांच कितनी गहनता से करवाई जाती है। लेकिन इतना जरुर है कि अगर डाक्टरों की आईडी की जांच की जाए तो सारा रिकार्ड अपने आप सारी कहानी बयान कर देगा। क्योंकि जो रिकार्ड एक बाद सरवर पर चढ़ जाए उसे कोई न तो बदल सकता है और न ही डिलीट कर सकता है।

पता चला है कि अब सरकार चिप सिस्टम लागू करने जा रही है तथा उससे एेसी हेराफेरी की संभावनाएं लगभग समाप्त हो जाएंगी, लेकिन ये जो खेल खेला गया तथा हो सकता है कहीं खेला जाता भी हो तथा इससे सैनिकों को दी जा रही सहूलत के नाम पर सरकार को करोड़ों रुपये का चूना लगाने वालों का पर्दाफाश किया जाना समय की मांग है। ये भी पता चला है कि केन्द्र की एक एजेंसी ने इस संबंधी रिपोर्ट बनाकर भारत सरकार, रक्षा मंत्रालय तथा गृह मंत्रालय को भेजने संबंधी प्रक्रिया शुरु कर दी है ताकि सैनिकों के नाम पर सरकार को चूना लगाने वालों पर कार्यवाही हो सके और भविष्य में एेसा न हो इस संबंधी भी सरकार कोई ठोस कदम उठा सके। एजेंसी के पास भी कुछेक कागजात हाथ लगे हैं तथा अगर वही रिकार्ड चैक हो गया तो सारे खेल से पर्दा उठने में देर नहीं लगेगी।

सैनिक, सिपाही या सेना का नाम सुनते ही जहां जोश से रौंगटे खड़े हो जाते हैं वहीं एक विश्वास का भी एहसास होता है कि जहां हमारे सैनिक व सिपाही हो वहां पर घबराने की जरुरत नहीं। क्योंकि, हमारा एक-एक सैनिक हमारे पर आने वाली हरेक विपत्ति को हम तक पहुंचने से पहले ही खत्म कर देने में पूरी तरह से सक्षम है। लेकिन दुख उस समय होता है जब हमारे वीर सैनिकों एवं उनके आश्रितों के लिए सरकार द्वारा योजना चलाई जाती है और उस योजना को दीमक की तरह अंदर ही अंदर कोई दूसरा नहीं बल्कि कुछ अपने ही सेंध लगाकर सरकार को हर माह करोड़ों रुपये का चूना लगाने से बाज नहीं आ रहे। जिसके चलते सैनिकों व उनके पारिवारिक सदस्यों को सहूलतों की आड़ में कुछेक लोग खूब चांदी बटौरने में लगे हुए हैं। मिलीभगत के खेल के कारण जहां सेना का अक्स धूमिल हो रहा है वहीं भारत सरकार के स्वच्छ शासन एवं सैनिकों के लिए उसके दृढ़ संकल्प को भी धक्का लग रहा है।

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