होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। मुख्य कृषि अधिकारी दीपइंदर सिंह ने किसानों को एनपीके (12:32:16) का उपयोग करने की सलाह दी है। उन्होंने बताया कि यह उर्वरक डीएपी का बेहतरीन विकल्प बन सकता है। एनपीके (12:32:16) की लगभग डेढ़ बोरी, डीएपी के बराबर नाइट्रोजन और फास्फोरस सामग्री की पूर्ति करती है। इसके अतिरिक्त यह उर्वरक 23 किलोग्राम पोटाश भी प्रदान करता है, जो फसल की अच्छी वृद्धि में सहायक है। मुख्य कृषि अधिकारी ने किसानों को बताया कि अन्य विकल्पों में एनपीके (10:26:26) या अन्य उर्वरकों का भी उपयोग किया जा सकता है। यदि फास्फोरस के लिए सिंगल सुपर फॉस्फेट या ट्रिपल सुपर फॉस्फेट उर्वरकों का प्रयोग किया जाता है, तो फसल बुवाई के समय प्रति एकड़ 20 किलोग्राम यूरिया का उपयोग किया जा सकता है। मुख्य कृषि अधिकारी ने बताया कि कम जैविक कार्बन वाली मिट्टी में उच्च फॉस्फोरस स्तर (9 से 20 किलोग्राम प्रति एकड़) होने पर फॉस्फोरस उर्वरक की मात्रा 25 प्रतिशत तक घटाई जा सकती है। इसी तरह मध्यम जैविक कार्बन (0.4 से 0.75 प्रतिशत) वाली मिट्टी में मध्यम (5 से 9 किलोग्राम प्रति एकड़) और उच्च फॉस्फोरस स्तर वाली मिट्टी के लिए फॉस्फोरस की मात्रा में 50 प्रतिशत तक कटौती की जा सकती है।
उन्होंने बताया कि धान-गेहूं फसल चक्र में यदि धान की फसल के दौरान अंतिम जुताई से पहले प्रति एकड़ 2.5 टन पोल्ट्री खाद या सूखी गोबर गैस प्लांट की स्लरी का उपयोग किया जाता है, तो फॉस्फोरस की मात्रा आधी की जा सकती है। इसी प्रकार अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद का प्रयोग करने पर फॉस्फोरस की मात्रा में भी कमी की जा सकती है (1 किलोग्राम फॉस्फोरस प्रति टन खाद)। दीपइंदर सिंह ने बताया कि धान की बुआई के बाद गेहूं की बुआई से पहले प्रति एकड़ 4 टन धान की पराली या गन्ने के अवशेष का उपयोग करने से फॉस्फोरस की मात्रा में आधा किया जा सकता है। जिन खेतों में धान की पराली को नियमित रूप से जुताई के बाद मिट्टी में मिलाया जाता है और जैविक कार्बन स्तर उच्च श्रेणी में होता है, उन खेतों में फॉस्फोरस उर्वरक की मात्रा में 50 प्रतिशत तक की कमी की जा सकती है। मुख्य कृषि अधिकारी ने किसानों से आग्रह किया कि वे अपनी मिट्टी की जांच कराएं और पोषक तत्वों का संतुलित उपयोग करें ताकि फसल उत्पादन को बढ़ावा मिले और मिट्टी की गुणवत्ता को भी बनाए रखा जा सके।