प्राण शक्ति को आकर्षित करना ही प्राणायाम हैः आचार्य चंद्र मोहन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़): योग साधना आश्रम मॉडल टाउन में रविवार के सत्संग के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए मुख्य आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि केवल योगी गुरु की शरण में जाकर ही हमें कुछ प्राप्ति हो सकती है। योगी गुरु शिष्य पर अपनी कृपा करते हैं। 

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शिष्य आशा करता है कि गुरु उसके अवगुणों को दूर कर दे।  लेकिन अगर हमारा मन ही गुरु को स्वीकार नहीं करेगा तो बात नहीं बनेगी। हम सांस तो लेते हैं चाहे उससे हमें चैन महसूस हो अथवा नहीं। इसी तरह भगवान हर समय कृपा करते रहते हैं।  उन्होंने कहा कि गुरु कृपा के लिए हमें संपूर्ण योग अर्थात राजयोग व हठ योग का सहारा लेना होगा। हठयोग में षटकर्म ,आसन, प्राणायाम आदि आते हैं। जबकि राजयोग में यम, नियम, आसन, प्राणायाम आदि शामिल है। राजयोग में पांच यम और पांच नियम है। षटकर्म तथा आसनों के बारे में हम जानते हैं। 

लेकिन प्राणायाम दोनों में सम्मिलित है। प्राण शक्ति को आकर्षित करना ही प्राणायाम है।  ईश्वरीय ऊर्जा के साथ प्राणों का संबंध है।  संसार के एक-एक कण में प्राण है। अगर हम में से प्राण निकल जाए तो हमारा जीवन समाप्त हो जाता है।  प्राण शक्ति प्राण नाडीयो से आती है। जिनकी संख्या 72 करोड़ है।  जब हम प्राण नाडीयो को आकर्षित करते हैं तो हम ईश्वर के करीब पहुंच जाते हैं। प्राणों का मन से भी संबंध है। 

साधारण लोग प्राण को वायु समझ लेते हैं।  लेकिन दोनों में बहुत फर्क है।  कुछ मुद्राएं प्राण शक्ति से संबंध रखती हैं।  प्राणायाम भी 10 प्रकार के हैं।  नाडी शोधन,सूर्य कुंभक, ऊजाई,शीतली, भसरीका भ्रामरी कुंभक, मूर्छा कुंभक, प्लावनि कुंभक, शीतकारी और केवली प्राणायाम शामिल है।   प्राय हम नाड़ी शोधन को ही अधिक प्रयोग में लाते हैं। इनमें तीन चीज श्वास भरना, श्वास रोकना और श्वास छोड़ना शामिल है। इसे पूरक, कुंभक और रेचक कहते हैं। 

जब श्वास भरते हैं तो तेजी से भरते हैं।  हमने फेफड़ों में हवा को रोकना होता है ताकि उनकी शक्ति को बढ़ाया जा सके और फिर इसे धीरे-धीरे निकलाते हैं।  जितने समय में हमने प्राण भरे होते हैं उससे चार गुना समय रोकना होता है तथा 2 गुणा टाइम में बाहर निकलना होता है।

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