अध्यात्म व धर्म का अर्थ है दीन-दुनिया को बिसारकर अपने आप में लीन रहना: साध्वी कृष्णप्रीता भारती

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान द्वारा स्थानीय आश्रम गौतम नगर में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी के शिष्या साध्वी कृष्णप्रीता भारती ने कहा कि अध्यात्म, भक्ति, धर्म, साधना ये वे शब्द हैं, जिन्हें सुनते ही हमारे मानस पटल पर गेरुआ वेशधारी संन्यासियों ,तन पर भस्म व शीश पर लंबी-लंबी जटाओं को धारण किए हुए साधुओं या कोसों दूर हिमालय की बर्फिली चोटियों पर ध्यान-मग्न योगियों की एक धुंधली सी छवि उतार कर आ जाती है। क्योंकि हमारे लिए अध्यात्म व धर्म का अर्थ है दीन -दुनिया की बिसारकर अपने आप में लीन रहना। समाज से किनारा कर स्व में डूबे रहना। अच्छा-बुरा सब छोडकर आंखे बंद करके बैठे रहना।

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जहाँ न हो समाज की चिंता और न ही संसार का चिंतन। आत्मोत्थान के अतिरिक्त किसी से काई लेना-देना नहीं परन्तु क्या वास्तव में अध्यात्म व्यक्ति को इतना स्वार्थी बना देता है? क्या धर्म अपने धारक की मानसिकता पर संकीर्णता का ऐसा ताला लगा देता है कि वह स्व तक ही सीमित हो जाता है? क्या भक्ति सामाजिक जिम्मेदारियों से भाग जाने का स्वीकृति पत्र है क्या साधना संासारिक बंधनों से मुक्त करते -करते साधक को स्वार्थ की बेडिय़ों मे जकड़ देती है? नि:सन्देह नही अध्यात्म ,भक्ति ,धर्म साधना तो वे विशाल पंसन्देह नही अध्यात्म ,भक्ति ,धर्म साधना तो वे विशाल पंख हैं,जो विराटता के क्षितिज में हमें उड़ान भरवाते हैं। धर्म के मर्म को न जानने वाले कुछ स्वार्थी लोगों ने ही इन गरिमामय शब्दों की इतनी संकीर्ण व छिछली व्याख्या की है। इस अवसर पर भारी संख्या में श्रद्धालूगण मौजूद थे।

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