पंजाब में जहरीली शराब मामले में लोगों की जान जाने के बाद मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के कड़े आदेशों पर पुलिस एवं एक्साइज़ विभाग द्वारा तेवर तलख कर लिए गए हों तथा अवैध शराब के कारोबारियों पर एक के बाद एक बड़ी कार्यवाही को अंजाम दिया जा रहा है। जिसके चलते अवैध शराब का कारोबार करने वालों में खलबली सी मची हुई है तथा सूत्रों से पता चला है कि कई लोग जो इस अवैध कारोबार में लिप्त थे, सरकार के इन आदेशों के बाद इधर-उधर छिपते फिर रहे हैं व कई तो कारोबार बंद करके एकांतवास में जा चुके हैं। एक तरफ जहां सरकार अवैध शराब का कारोबार करने वालों पर सख्ती कर रही है वहीं विशेष कृपापात्र कई शराब के ठेकेदार ऐसे हैं, जो सरेआम शराब का अवैध रुप से ठेका खोलकर खूब चांदी बटौर रहे हैं। जिसके चलते सरकार के अवैध कारोबार को रोकने के आदेश बेमाइने से प्रतीत हो रहे हैं। इतना ही नहीं पुलिस एवं एक्साइज़ विभाग की कथित मिलीभगत के चलते चल रहा अवैध ठेकों का कारोबार खूब फल-फूल रहा है तथा आदेशों के बावजूद उसे रोकने की जहमत कोई नहीं उठाई जा रहे। क्योंकि कहीं न कहीं ठेकेदार के साथ-साथ मिलीभगत करने वाले पुलिस एवं एक्साइज़ विभाग के अधिकारी भी खूब मालामाल हो रहे हैं। जिसकी जांच की जानी अति अनिवार्य एवं समय की मांग है ताकि अवैध कारोबारियों पर चल रहा सरकार का डंडा अपनी सफलता को प्राप्त कर सके।
लालाजी स्टैलर की चुटकी
होशियारपुर व आसपास के इलाकों में कई ऐसी जगहें हैं, जहां पर सरकार की मंजूरी के बिना अवैध रुप से ठेके एवं ब्रांचें खोली गई हैं, जिनके माध्यम से सरकार को टैक्स के रुप में जमा होने वाले राजस्व का भी चूना लगाया जा रहा है।
सूचना देने पर कार्यवाही की बात करें तो अगर कोई पत्रकार व आम आदमी एक्साइज़ विभाग या पुलिस को इस बारे में जानकारी भी देता है तो जानकारी हासिल करने वाला अधिकारी व कर्मचारी तुरंत संबंधित ठेकेदार को फोन करके जानकारी देने वाली की सारी जानकारी सांझा कर देता है तथा फिर बात मामला सैटल करने की शुरु हो जाती है या फिर ठेकेदार व उसके करिंदे सूचना देने वाले को देख लेने की धमकियां देकर उसे चुप रहने की नसीहत कर डालते हैं।
कुछ समय पहले ही होशियारपुर-ऊना मार्ग पर एक बड़े नेता के कार्यालय से कुछ दूरी पर ही एक ठेका खुला। उसके बारे में पता करने पर जानकारी मिली कि वहां पर ठेका खोलने संबंधी सरकार द्वारा कोई प्वाइंट निश्चित नहीं किया गया। बल्कि ठेकेदार द्वारा एक्साइज़ एवं पुलिस विभाग की काली भेड़ों के साथ मिलीभगत करके अवैध रुप से ठेका खोला गया है और उस संबंधी बड़े-बड़े बोर्ड भी सडक़ के दोनों तरफ रख दिए गए हैं। हालांकि शहर के कई लोग सुबह एवं शाम को वहां से सैर करते हुए गुजरते हैं, लेकिन सभी आंखें मूंदे निकलने में ही भलाई समझते हैं। क्योंकि, वे जानते हैं कि बिना मिलीभगत के कोई अवैध ठेका या ब्रांच नहीं खुल सकती तथा शिकायत करने पर खतरा खुद को ही होगा। अब भाई खतरा कौन मोल ले।
कुछ समय पहले की एक घटना आपको बताता हूं कि बजवाड़ा के समीप एक गांव में एक अवैध रुप से ठेका खोला गया था। उसके बारे में एक पत्रकार ने विभाग के अधिकारी को बताया। अधिकारी ने कार्यवाही के स्थान पर ठेकेदार के पास चंद ही मिनटों में उलटी कर दी और उसे जानकारी देने वाले का नाम और नंबर संबंधी बता दिया। अधिकारी को जानकारी दिए अभी कुछ देर हुई थी कि ठेकेदार के खास व्यक्ति का फोन पत्रकार को आया और मामला सैटर करने की बात कही जाने लगी। इतना ही नहीं बातों ही बातों में उसने धमकी भरे लफ्ज़ भी प्रयोग किए। इसके बाद पत्रकार ने अधिकारी की जमकर क्लास ली कि अगर आपने जानकारी लेने उपरांत कार्यवाही नहीं करनी होती या ठेकेदार को ही बताना होता है तो फिर लोगों को अवैध कारोबार की जानकारी देने की अपील क्यों की जाती है। ऐसे तो आप लोगों की दुश्मनियां डाल दोगे। खरी-खोटी सुनने के बाद अधिकारी मुंह छिपाता फिरने लगा। हालांकि बाद में एक पुलिस अधिकारी द्वारा कार्यवाही किए जाने पर अवैध तौर से खुला ठेका बंद हो गया। लेकिन पता चला है कि उस स्थान पर पुन: अवैध ठेका खोलने की जुगत भिड़ाई जा रही है तथा हो सकता है कि आने वाले दिनों में उसका शटर फिर से उठा हुआ दिखाई दे जाए।
क्या? यह किसका ठेका खुला है व पहले किसने खोला था बता दूं। अरे भाई क्यों मेरी जान के दुश्मन बने हुए हो। इशारा ही काफी होता है, अब कभी तो बिना कुछ कहे समझा करो। वैसे एक बात है कि अगर सक्षम अधिकारी चाहे तो कार्यवाही के बाद सच सबके सामने आ सकता है। अब देखना तो ये होगा कि गुप्ता सूचना देने वाले का नाम कितना गुप्ता रखा जाता है तथा अवैध ठेकों पर क्या कार्यवाही की जाती है। बाकी हमने जो कहना था कह दिया। अब चाहे किसी को बुरा लगे या खुजली। इसमें हम क्या कर सकते हैं। भाई जब सरकार नहीं चाहती कि कोई गलत काम करे तो फिर सरकारी दरबार से करोड़ों कमाने वालों को ऐसी क्या मजबूरी है कि उन्हें अवैध धंधा करके जेबें भरनी पड़ रही हैं। सोचो-सोचो, सोचने में क्या जाता है। जय श्रीराम।