ये भूख कब मिटेगी? मंत्री के शहर में इंडस्ट्री के “विकास” पर “विकास” का ग्रहण, 2-3 में नहीं 5 में होगा काम

सरकार कह रही है कि प्रदेश में इंडस्ट्री के विकास में कोई कसर नहीं छोड़ी जाएगी। पर, शायद सरकार के सरकारी दफ्तरों में बैठे कई अधिकारियों को सरकार का सपना सच होता रास नहीं आ रहा। कोरोना काल से जूझ रही इंडस्ट्री को पहले से ही सांस नहीं आ रही और इंडस्ट्री के आगे अपने वर्करों को समय पर वेतन तक देने के लाले पड़े हुए हैं। लेकिन दूसरी तरफ सरकार के कई अधिकारी ऐसे हैं जिनकी भूख है कि मिटने का नाम नहीं ले रही। आलम यह है कि इंडस्ट्री विभाग व इससे जुड़े विभाग (लेबर) के जिला स्तर के एक पीसीएस लैवल के अधिकारी का लैवल तो देखिये इनकी भूख है कि शांत ही नहीं होता। इन्हें जहां महंगी शराब का शौक है वहीं बड़े-बड़े होटलों में खाना-खाना और पार्टी करना बहुत पसंद है। यह सब शौक सरकार से झोला भर के मिलने वाली पगार से नहीं बल्कि बगार से पूरे किए जाते हैं तथा जब किसी उद्योगपति को इनसे काम पड़ता है तो बगार अपनी जगह और काम का हरजाना अपनी जगह, वसूल करके ही काम पर मोहर लगाई जाती है। ऐसा नहीं है कि कई उद्योगपति भी अधिकारियों और कर्मियों से मिलीभगत करके अपने कई जायज नाजायज काम करवाने से पीछे नहीं हटते। लेकिन बड़े स्तर के अधिकारी का पेट अपने रुतबे और सरकारी बेतन से न भरे और वे मुंह मांग कर लेता हो तो चर्चा तो होगी ही न।

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ओह! आप भी सोच रहे होंगे कि बात कहनी है तो सीधे कहो, ये जलेबी क्यों बनाई जा रही है। तो सुनिये! पिछले कुछ दिनों से इंडस्ट्री से जुड़े एक विभाग के अधिकारी काफी चर्चा का विषय बने हुए हैं। बताया जा रहा है कि पीसीएस लैवल के इस अधिकारी की भूख इतनी है कि जनाब मुंह मांगा निबाला मांगने में जरा भी संकोच नहीं करते। महंगी शराब और बड़े-बड़े होटलों में कभी लंच तो कभी डिनर की बगार उद्योगपतियों को डालने वाले इस अधिकारी से जब किसी को काम पड़ता है तो जनाब जरा भी शर्म या संकोच नहीं करते कि भाई जिसका खाया है उसके प्रति थोड़ा तो फर्ज निभा दें और बिना कुछ लिए दिए काम कर दें। लेकिन साहिब हैं कि क्या आया की तरफ पहले ध्यान देते हैं और बाद में कागजात पर साइन करने का मन बनाते हैं। ऐसे ही एक उद्योगपति को साहिब से काम पड़ गया। उद्योगपति ने परंपरा अनुसार पहले ही निम्न स्तर के अधिकारी की जेब में यथा-योग्य हरी पत्ती टिका दी। लेकिन जैसे ही फाइल साहिब के पास पहुंची तो उन्होंने पूछा कि क्या आया है। कर्मचारी द्वारा बताए जाने पर साहिब की आंखें लाल हो गईं और उन्होंने कह डाला कि 2-3 में यह काम नहीं होगा। इसके लिए तो 5 लगेगा 5। यानि कि 2-3 हजार में नहीं बल्कि 5-6 हजार लगेगा। इस पर कर्मचारी ने उद्योगपति को सूचना दी कि भाई साहिब को और देना पड़ेगा तो उद्योगपति ने फिर से परंपरा निभाते हुए साहिब को मुंह मांगा निवाला भेज दिया। हालांकि इस बात की चर्चा आम होने पर उद्योग जगत से जुड़े कई लोगों की सांसे रुकी-रुकी सी हैं। क्योंकि अधिकारियों के पास उद्योगों को तंग-परेशान करने की कई घुंडियां होने के चलते वे इस चर्चा में शामिल होने से बच रहे हैं। लेकिन बात जब जगहंसाई की हो जाए तो इस पर चर्चा एवं मंथन होना ही चाहिए कि जिस ईमानदारी एवं कर्मठता के साथ सरकार एवं जनता के प्रति फर्ज निभाने की सौगंध खाकर अधिकारी सेवा में आते हैं और आते ही उनका रवैया कमाई वाला हो जाता है तो ऐसे में ऐसी सोच रखने वाले लोगों को सरकारी नौकरी में नहीं बल्कि कोई व्यवसाय शुरु करने की तरफ ध्यान देना चाहिए। और तो और यह उस शहर में हो रहा है जहां के विधायक पंजाब सरकार में कैबिनेट मंत्री हैं और वो भी वाणिज्य एवं उद्योग मंत्री। यानि कि अधिकारी को उनकी प्रतिष्ठा की भी कोई फिक्र नहीं है। जिसके चलते चर्चा माहौल में और भी गर्माहट भर रही है। लो जी! हम कौन हैं किसी को सलाह देने वाले।

अब भाई जो करेगा वो भुगतेगा। क्या, नाम क्या है अधिकारी का। अरे भाई “विकास” में “विकास” का नाम ढूंढते हो और हमसे पूछते हो। क्या किसी विभाग का है। अरे सब कुछ हम ही बताएंगे कि कुछ खुद का दिमाग भी लगाएंगे। अब चर्चा हुई तो हमने भी आपसे कुछ बातें सांझा कर ली। अब बाकी की बात आप खुद ही पता कर लो। जय राम जी की।

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