योग साधन आश्रम में संक्रांति पर पाठ का आयोजन

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम होशियापुर में रविवारीय सत्संग के साथ चैत्र मास की संक्रांति का पाठ आयोजित किया गया। इस अवसर पर पहुंचे भक्तों ने हवन यज्ञ में भाग लिया। हिंदू धर्म में जब सूर्य एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करते हैं तो उस दिन नया मास आरंभ होता है। चैत्र मास हिंदू देसी वर्ष का पहला मास होता है। इसी माह से ही वर्ष के प्रथम ऋतु बसंत की शुरू होती है। हवन के उपरांत सदगुरुदेव चमन लाल जी महाराज का संदेश भक्तों के समक्ष रखते हुए आचार्य चंद्र मोहन अरोड़ा जी ने कहा कि प्रभु की कृपा पाने के लिए हमें उनका प्रिय बनना पड़ता है।

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एक मां तो अपने ना काबिल बच्चे को भी गले लगा लेती है परंतु प्रभु एक दोषी बच्चे को प्यार नहीं करते। वह तो एक भगत को प्यार करते हैं। उनके लिए भक्त भी वह होता है जिसका जीवन योगानुकूल हो7 ना कि जो केवल आरती पूजा करता हो। गीता के अनुसार योगानुकूल जीवन प्रमुखत: 4 गुणों की कसौटी पर मापा जाता है। युक्त आहार, युक्त विहार ,युक्त कर्म तथा युक्त चेष्टा। योगी सात्विक आहार करता है ,कम खाता है तथा समय पर खाता है7 उसका खानपान संतुलित होता है। युक्त विहार में उसकी दिनचर्या आती है। वह प्रात: ब्रह्म मुहूर्त में उठता है और रात्रि को समय पर सोता है।

प्रात: उठकर योग साधना करता है ,तामसिक जीवन नहीं व्यतीत करता। अपने कंधे से ऊपर के अंगों को निरोग रखने के लिए नेति करता है तथा कंधों से नीचे के अंगों को रोग मुक्त रखने के लिए बमन से पेट आदि की सफाई करता है। यदि ऐसा ना करें तो उसका जीवन योगानुकूल नहीं कहलाता। इससे उसके अंदर भयानक रोग पैदा हो जाते हैं जैसे दिमाग की नसें कमजोर हो जाना ,माइग्रेन, सर्वाइकल, कलॉट बन जाना, हृदय की नाडिया ब्लॉक हो जाना, टाइफाइड ,अस्थमा, साइनस, कमजोर आंखे कानों का कम सुनना इत्यादि। इन सब रोगों का कारण नाक का बंद रहना या रेशे से बंद रहना होता है। जिसके कारण दिमाग में मल जमा हो जाता है। दिमाग के मल को निकालने का रास्ता नाक है। इसलिए नाक को प्रतिदिन नेति द्वारा साफ रखना जरूरी है।

उन्होंने कहा कि युक्त कर्म का भाव है कि हमें शुभ कर्म, निस्वार्थ कर्म ,फल की इच्छा को त्याग कर धर्म अनुसार कर्म करने चाहिए। अन्यथा पाप तथा अधर्म कर्म करने से तो प्रभु दंड देते हैं तथा जीवन दुखमय बन जाता है। युक्त चेष्टा मे हमारे विचार आते हैं। जो अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह अनुसार होने चाहिए। इस प्रकार योगानुकूल जीवन व्यतीत करने बाले पर प्रभु सदा प्रसन्न रहते हैं तथा उसका जीवन सुखमय हो जाता है। सत्संग में डॉक्टर अमिता ने मुझे ऐसा वर दे दो नित्य ध्यान करूं तेरा भजन गाकर सबको मंत्रमुग्ध कर दिया।

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