माइनिंग: सरकार के दावे फेल: भट्ठे के परमिट पर प्राइवेट भर्ती का खेल, सरकार को लाखों का चूना

अवैध माइनिंग को रोकने के लिए भले ही प्रदेश सरकार बड़े-बड़े दावे करती न थकती हो तथा खड्डों की बोली की जा चुकी हो, लेकिन राजनेताओं की छत्रछाया में अवैध माइनिंग के साथ-साथ ओवरलोडिंग और भट्ठे के परमिट पर प्राइवेट भर्ती डाले जाने का कार्य जोरों से चल रहा है। जिसके चलते परमिट की आड़ में सरकार को लाखों रुपये का चूना लगाया जा रहा है। इस मिलीभगत के खेल में जहां कुछ राजनेता मालामाल हो रहे हैं वहीं सरकार की सख्ती के बावजूद कुछेक अधिकारियों के जीभ को लगे खून का रंग और भी गाढ़ा होता जा रहा है। इतना ही नहीं सियासी आका के कुछ चहेते भी इस खेल में खूब मालामाल हो रहे हैं।
ताजा जानकारी अनुसार होशियारपुर के आसपास के क्षेत्रों में धड़ल्ले के साथ माइनिंग चल रही है।

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क्योंकि, अब तो सरकार ने भी माइनिंग हेतु खड्डों की बोली कर दी है। इसके साथ-साथ भट्ठों को मिट्टी सप्लाई करने के परमिट भी जारी किए जा रहे हैं, ताकि भट्ठा इंडस्ट्री को किसी तरह की परेशानी का सामना न करना पड़े। लेकिन, इस परमिट की आड़ में कुछ लोग प्राइवेट स्थानों पर भर्ती डालने से परहेज नहीं कर रहे। जिसके चलते सरकार को लाखों रुपयों का चूना लगाया जा रहा है। आलम ये है कि मिलीभगत के खेल में कई लोग मालामाल हो रहे हैं। एक सियासी आका के आशीर्वाद से चल रहे इस खेल में उनके कुछेक नजदीकी भी ‘खट्टी’ कर रहे हैं। अब खट्टी का अर्थ तो आप समझ ही गए हों।

अकसर देखने में आता है कि जिस खड्ड की बोली की गई हो वहां पर नियमों के तहत काम होना चाहिए। लेकिन जब अंदर से ओवरलोडिंग ट्रालियां या ट्राले भर के निकलते हैं तो उन्हें संबंधित विभाग द्वारा अंदर ही क्यों नहीं रोका जाता। परन्तु जब वे वाहन बाहर सडक़ पर निकलते हैं तो उन्हें कभी आरटीए तो कभी पुलिस द्वारा रोककर चालान काट दिए जाते हैं। चालान भी इतना मोटा कि माइनिंग से जुड़ा काम करने वाले उसे चुकाने के लिए करजाई हो जाएं। इसमें में कथित मिलीभगत का खेल खेला जा रहा है।

जिनकी सैटिंग हैं उनकी गाडिय़ों को रोका नहीं जाता तथा खासकर बड़े टिप्पर जब ओवरलोडिंग होकर चलते हैं तो उनमें से बहुत कम को रोककर उनका लोड चैक किया जाता है। दूसरे शब्दों में कहें तो कार्यवाही का डंडा मातड़ साथी पर ही चलता है। मिलीभगत या पहुंच वाले तो दबके से काम कर रहे हैं और यह सिलसिला सरकार की सख्ती के बावजूद जारी है। जिसके चलते लोग यहां तक भी कहने लगे हैं कि ये भी हाथी के दांत हैं, खाने के और तथा दिखाने के और। परन्तु अब ये भट्ठे की मिट्टी के परमिट पर प्राइवेट स्थान पर भर्ती डाले जाने का मामला प्रकाश में आ रहा है तो उसे रोकने के लिए विभाग या सरकार क्या कदम उठाते हैं ये तो समय ही बताएगा। हमारा काम था ‘बैल’ बजाना, जो हमने बजा दी।

क्या, कौन से भट्ठे पर मिट्टी डालने का परमिट है, कौन ठेकेदार है? क्या, सियासी आका कौन है? ऐसे सवाल संबंधित विभाग या मिलीभगत करने वाले अधिकारियों से पूछें भाई। हमें ऐसे झंझटों से दूर ही रखें। अब यहां बैठकर लिख रहा हूं तो बात भी होशियारपुर व इसके आसपास के इलाके की ही होगी न। थोड़ा लिखे को ज्यादा समझें। अब मुझे दें इजाजत। जय राम जी की।

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