-आफीशिएटिंग प्रिंसिपल ने कहा, जो बच्चे फेल हुए हैं उनको वापस किए जा रहे हैं पैसे या री-एडमीशन में किए जा रहे हैं एडजस्ट-
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। सरकारी सहायता प्राप्त स्कूल अकसर ही फीसों को लेकर चर्चाओं में रहते हैं, हालांकि इन स्कूलों पर भी सरकारी स्कूलों के नियम लागू होते हैं बावजूद इसके स्कूल प्रबंधक खर्चों की दुहाई देते हुए चोरी-छिपे बच्चों से पैसे उगाहने का कोई न कोई फंडा अख्तियार करते रहते हैं और दाखिलों के समय अकसर ही समाचारपत्रों द्वारा ऐसे समाचारों में फीसों का मामला सुर्खियों में रहता है, जबकि सरकार इन स्कूलों को 95 प्रतिशत ग्रांट जारी करती है तथा शेष शेयर प्रबंधक कमेटी द्वारा डाला जाता है तथा स्कूल प्रबंधन कैसे करना है इसकी जिम्मेदारी भी प्रबंधकीय सभा की होती है।
शहर के कनक मंडी चौक के समीप स्थित एस.डी. स्कूल प्रबंधकों द्वारा दसवीं कक्षा के परिणाम से पहले ही बच्चों
को ग्याहरवीं कक्षा में करने के नाम पर सरकार द्वारा तय फीस से अधिक रुपये वसूलने का मामला प्रकाश में आया है तथा अब परिणाम आने के बाद जो बच्चे फेल हो गए हैं, उन्हें या तो पैसे वापस ही नहीं किए जा रहे या फिर पुन: दाखिले के नाम पर एडजस्ट करने को कहा जा रहा है। जबकि अगर सरकार द्वारा तय फीसों पर नजऱ दौड़ाई जाए तो फीस नाममात्र ही है ताकि आर्थिक पक्ष से कमजोर शिक्षा से वंचित न रह सके। इस बात में भी कोई दो राय नहीं है कि अकसर स्कूलों द्वारा दसवीं में पढऩे वाले बच्चों की परीक्षा खत्म होते ही उनका अगली कक्षा में दाखिला कर दिया जाता है, परन्तु हैरानी की बात है कि सरकार से ग्रांट मिलने के बावजूद स्कूल द्वारा नियमों की पालना यकीनी बनाई जानी जरुरी नहीं समझी जाती और बच्चों से मोटी रकम वसूल कर दाखिले किए जा रहे हैं। मिली जानकारी अनुसार सरकार द्वारा तय फीसों के अनुसार दसवीं से ग्याहरवीं कक्षा में जाने वाले बच्चे से 300 रुपये एमैलगामेटड फंड (साल में एक बार), लडक़ों से 85 रुपये प्रतिमाह और लड़कियों की 40 रुपये प्रतिमाह फीस ली जाती है।
उक्त स्कूल में पढऩे वाले कुछेक विद्यार्थियों के अभिभावकों ने बताया कि उनका बच्चा एस.डी. स्कूल में पढ़ता था तथा दसवीं कक्षा में वे फेल हो गया। नाम न छापने की शर्त पर उन्होंने बताया कि स्कूल वालों ने दसवीं का परीक्षा परिणाम आने से पहले ही अगली कक्षा में बच्चों का दखिल करने के नाम पर 2500 से 3000 रुपये लिए। जबकि सरकार सरकारी व सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों में बच्चों को मुफ्त में पढ़ाने व कम सम कम फीस में पढ़ाने के दावे करती है। अभिभावकों ने बताया कि अब जबकि उनका बच्चा फेल हो गया तो स्कूल प्रबंधकों द्वारा रुपये वापस नहीं किए जा रहे। अगर वापस किए भी जा रहे हैं तो उनमें से भी कम से कम आधा पैसा काट कर वापस किए जा रहे हैं। इतना ही नहीं बारहवीं कक्षा में जो बच्चा फेल हो गया है उसे पुन: दाखिला लेने के लिए भी नाको लकीरे काटने को मजबूर होना पड़ रहा है। जबकि सूत्रों की
माने तो स्कूल द्वारा दूसरे स्कूल से आया फेल बच्चा तो लिया जा रहा है, मगर अपने ही स्कूल में पढ़े बच्चे का पुन: दाखिला किया जाना जरुरी नहीं समझा जा रहा। अभिभावकों ने कथित तौर पर आरोप लगाया कि इस बारे में बात करने के बावजूद कोई सुनवाई नहीं है तथा न ही कभी शिक्षा विभाग ने स्कूलों की मनमर्जी को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने जरुरी समझे हैं। जिसके चलते विद्यार्थियों व उनके अभिभावकों के आर्थिक शोषण को बढ़ावा मिल रहा है। उन्होंने शिक्षा मंत्री, जिलाधीश व जिला शिक्षा अधिकारी से मांग की कि सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों द्वारा बच्चों से तय नियमों के विपरीत वसूली जा रही फीसों की जांच करवाकर आरोपी स्कूल प्रबंधकों के खिलाफ कार्रवाई की जाए ताकि सरकारी सहायता प्राप्त करने के बावजूद शिक्षा के किए जा रहे व्यापारिकरण पर रोक लग सके।
इस संबंध में स्कूल के आफीशिएटिंग प्रिंसिपल शक्ति नंदन ने बताया कि जिन बच्चों से फीस ली गई है उसे या तो वापस किया जा रहा है या फिर अगली कक्षा की फीस में एडजस्ट किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि अगर किसी बच्चे या अभिभावक को कोई परेशानी है तो वे उनसे आकर मिल सकता है। उन्होंने बताया कि अपने स्कूल बारहवीं कक्षा के फेल विद्यार्थियों को दाखिला दिया जा रहा है तथा बाहर के स्कूलों से आने वाले विद्यार्थियों को टैस्ट लेने उपरांत ही दाखिला दिया जाता है।