नियमों की अवहेलना न करके संवैधानिक अधिकारों के प्रति होना चाहिए जागरूक: साध्वी राजविंदर

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से गणतंत्र दिवस के उपलक्ष्य में एक धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन स्थानीय आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में किया गया। जिसमें श्री आशुतोष महाराज जी शिष्या साध्वी सुश्री राजविंदर भारती जी ने बताया कि हमें ये आजादी बहुत मुश्किल से मिली है। हमें अपने संवैधानिक अधिकारों के प्रति जागरूक रहना चाहिए और नियमों की कभी अवहेलना नहीं करनी चाहिए।

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आगे साध्वी जी ने बच्चों को देश की नींव नैतिक मुल्यों और देश प्रेम का संदेश दिया और बच्चो को संविधान के बारे में समझाते हुए कहा कि प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी संपूर्ण भारत में गणतंत्र दिवस बड़े हर्षोल्लास से मनाया गया है। हमें गर्व है कि इसी दिन स्वतंत्र भारत में हमारा अपना संविधान लागू हुआ था। वो नियम और कानून निर्धारित किए गए थे, जिनपर चलकर भारत उन्नत व सुव्यवस्थित हो सकें। हिंसा, भ्रष्टाचार व अपराधों से पूर्णरूपेण मुक्त हो सके। हमें खुशी है कि इस संविधान के तहत भारत ने चहुंमुखी विकास किया है, परन्तु वहीं एक अन्य तथ्य भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। आज हर तरफ भ्रष्टाचार, आतंक और अपराधों का बोलबाला है। दिन प्रतिदिन मनुष्य का जीना दूभर होता जा रहा है।

कारण एक कि हमें भौगोलिक स्वतंत्रता तो मिल गई परन्तु अभी वास्तविक स्वतंत्रता मिलना शेष है। नि:संदेह हमने महान संघर्षों एवं बलिदानों के बाद सदियों की राष्ट्र गुलामी से राहत पाई है। परन्तु राष्ट्रीय स्वाधीनता से कुछ नही होगा। चूँकि राष्ट्र व्यक्तियों का संगठित समुदाय होता है। इसलिए वास्तविक स्वतंत्रता तो तब ही मानी जाएगी जब उसमें रहने वाला प्रत्येक नागरिक स्वतंत्र होगा, जब उसके भीतर स्व का तंत्र अर्थात् उसकी आत्मा का शासन लागू होगा। परन्तु आज हम देखें कि हमारे आंतरिक साम्राजय में तो बहुत गड़बड़ी मची हुई है। आत्मा के स्थान पर मन का शासन है। यूँ तो आत्मा शरीर रूपी राज्य का राजा है।

परन्तु मन की अनंत वासनाओं की पूर्ति के लिए हम अनेक दुष्कर्म करने को मजबूर हो जाते है। 1या यह परतंत्रता नही। इसलिए वास्तविक स्वतंत्रता के लिए तो आवश्यक है कि मन के इस तानाशाही शासन को जड़ से उखाड़ फैं का जाए और आत्मा को सम्मान सदा रूढ़ किया जाए। यह तभी संभव होगा जब एक व्यक्ति ब्रह्मज्ञान द्वारा अपनी आत्मा का साक्षात्कार कर लेगा तभी उसके भीतर स्व का तंत्र लागू होगा और ऐसा ही स्वतंत्र व्यक्ति फि र आत्मा के संविधान व नियमों का पालन करता हुआ पूर्णरूपेण व्यविस्थत हो पाएगा। ऐसे ही व्यवस्थित नागरिक मिलकर एक व्यवस्थित राष्ट्र का निर्माण करते है, क्योंकि भीतर से व्यवस्थित होने के कारण ये ब्रह्मज्ञानी मानव राष्ट्रीय संविधान के नियमों का भी सादर पालन करते हैं।

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