टीपी स्कीमों की डी-मारकेशन न होने से लोग परेशान, पार्क बन रहे निजी मलकीयत, निर्माण में भी परेशानी, कई जगह सडक़ें भी छोटी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। एक तरफ जहां शहर के भीतर एवं आसपास के इलाकों में अधिकतर अवैध कालोनियों का निर्माण तेजी से जारी है वहीं टीपी स्कीम के तहत नोटीफाइड किए गए इलाकों में कुछेक ऐसे इलाके हैं जो पास तो कई साल पहले हो चुके हैं लेकिन उनकी डी-मारकेशन न होने के चलते लोगों को कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इतना ही नहीं कई स्कीमों में तो पार्क के लिए छोड़ी गई जगह पर मालिकाना हक जताते हुए जमीन मालिक द्वारा अब उसे पुन: बेचने एवं हथियाने के हथकंडे भी अपनाए जाने लगे हैं। जिसके चलते वहां पर प्लाट ले चुके या लेने का मन बना रहे लोग ठगा सा पहसूस करने लगे हैं।

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काफी समय पहले पास इन स्कीमों की डी-मारकेशन होनी चाहिए इस बात से कारपोरेशन के अधिकारी भी सहमत हैं, लेकिन अब ये उच्चाधिकारियों व सरकार के हाथ में है कि वो इसे कितनी गंभीरता से लेते हुए डी-मारकेशन करवाने की अनुमति देते हैं। अधिकारिक तौर पर प्राप्त जानकारी अनुसार पुरानी स्कीमों की डी-मारकेशन इसलिए भी जरुरी हो जाती है, क्योंकि स्कीमें लंबे समय बाद शुरु होने या प्लाटिंग देर से शुरु होने के कारण कई बार लोगों को पता ही नहीं चलता कि सडक़ कहां है और प्लाट कहां है तथा पार्क आदि छोड़ा गया है तो उसका कितना भाग है।

रेत का खेल की तरह क्लोनाइजऱों ने भी बदल डाले राजनीतिक आका, अब आका की शरणागत पर हाथ कौन डाले

लेकिन पूंजीपति कलोनाइजऱों द्वारा कथित तौर पर राजनीतिक और अधिकारिक तौर पर मिलीभगत करके प्लाटों की सेल प्रचेज़ का कार्य निरंतर जारी है। ऐसे में क्लोनाइजऱ तो प्लाट बेचकर एक तरफ हो जाता है और बाद में खरीददार को कई प्रकार की दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। इसी धंधे से जुड़े सूत्रों की माने तो अगर कारपोरेशन इन स्कीमों की डीमारकेशन करवाए तो कई खामियां सामने आने की आशंका से इंकार नहीं किया जा सकता। क्योंकि लंबे समय बाद स्कीम आबाद होने की सूरत में सडक़ों एवं प्लाटों के साइज़ आदि में फर्क आ सकता है तथा पार्क आदि कहां है और उसकी क्या स्थिति है को लेकर भी स्थिति उलझी हुई प्रतीत होगी। सूत्रों के अनुसार आकाश नगर के साथ तथा पुरानी बस्सी वाले मार्ग पर पड़ती स्कीमों की डी-मारकेशन करवाई जानी समय की मांग है तथा अगर अधिकारी इस मामले को गंभीरता से लें तो आने वाले समय में लोगों को होने वाली परेशानी से निजात मिल सकती है। पता चला है कि गौतम नगर, आकाश नगर एवं बीरबल नगर के साथ लगते नए बन रहे इलाकों को 1996 में टीपी स्कीम के तहत पास किया गया था तथा उसी नक्शे के आधार पर नक्शे व अन्य औपचारिकतों पूरी की जा रही हैं। लेकिन समस्या तब पैदा होती है जब वर्तमान समय में प्लाट आदि सडक़ के बीच या किसी दूसरे के प्लाट के बीच हिस्सा निकलने की सूरत में परेशानी बढ़ जाती है। इस बात को अधिकारी भी मानते हैं, लेकिन खुलकर बोलने को कोई तैयार नहीं। इसका एक कारण ये भी है कि पहुंच वाले पूंजीपति क्लोनाइजऱों पर हाथ डालने की हिम्मत जुटाए कौन। क्योंकि सरकार भले ही बदल गई हो, लेकिन रेत के खेल की तरह इस धंधे में जुड़ी कुछ बड़ी मछलियों ने भी अपने राजनीतिक आका बदलने में देर नहीं लगाई ताकि कोई उन पर उंगली न उठा सके। कई क्लोनाइजऱों का भी मानना है कि गलतियों में सुधार होना चाहिए और अगर डी-मारकेशन होती है तो इससे कई लोगों को लाभ मिलेगा।

जानकारी अनुसार टीपी स्कीम के तहत पुरानी कालोनी में 30 फिट सडक़ का होना अनिवार्य है तथा इसके साथ ही पार्क आदि के लिए जगह छोडऩा जरुरी होता है। पहले यह 20 व 24 फिट तक थी। इसके साथ ही अगर कालोनी पापरा एक्ट के तहत पास है तो उसमें मुख्य सडक़ 45 फिंट तथा बाकी 35 फिट की होनी चाहिए। लेकिन अगर गौर से कालोनियों में नजऱ दौड़ाई जाए तो टीपी स्कीम के तहत एक-दो कालोनियों को छोडक़र अधिकतर ने सडक़ ही पूरी छोडऩी जरुरी नहीं समझी। जिस संबंधी अगर जांच हो तो पूरे पैसे लेकर प्लाट बेचने वाले सडक़ व पार्क आदि भी खा गए, कई मामले सामने आ सकते हैं। हालांकि पंजाब सरकार जिस प्रकार से भ्रष्टाचार को लेकर सख्ती से कार्य कर रही है, अगर इस तरफ भी ध्यान दिया जाए तो कारपोरेशन को लाखों के राजस्व का लाभ हो सकता है। जिससे कई विकास कार्य करवाए जा सकते हैं।

इस संबंधी बात करने पर डीटीपी लखबीर सिंह ने बताया कि टीपी स्कीम के तहत बस्सी मार्ग एवं आकाश कालोनी व बीरबल नगर के साथ इलाके 1996 के पास हैं। लेकिन इनकी डी-मारकेशन होनी चाहिए थी, अब क्यों नहीं हुई ये तो उनसे पहले यहां रहे अधिकारी ही बता सकते हैं। लेकिन वे इस संबंधी उच्चाधिकारियों के ध्यान में लाएंगे और डी-मारकेशन करवाकर जनता को उनका बनता हक दिलवाया हेतु प्रयास किए जाएंगे। उन्होंने बताया कि पहले जब भी कोई स्कीम काटी जाती थी तो उस समय सडक़ एवं पार्क आदि मालिक के नाम पर ही रहता था, जिसके कारण बाद में कई जगह पर ऐसे केस सामने आए थे कि मालिक कालोनी बनने के बाद उन पर अपना मालिकाना हक जताते लगे थे। ऐसे कई कारणों के कारण सरकार ने खुद स्कीम काटनी बंद कर दी तथा जो कालोनी काटता है इन सब का वही जिम्मेदार होता है। सरकार बनती फीस लेती है।

उन्होंने कहा कि उक्त कालोनियों संबंधी डी-मारकेशन एवं सडक़ों की लंबाई-चौड़ाई संबंधी बात अब उनके ध्यान में आ गई है और वे इस संबंधी बनती कार्यवाही जरुर करेंगे ताकि लोगों के साथ धोखा न हो सके।

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