गुटबाजीः…कहीं घातक साबित न हो जाए जिला टीम की नवज समझने में कांग्रेस उम्मीदवार की देरी

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), संदीप डोगरा। कांग्रेस की तरफ से लोकसभा होशियारपुर के लिए उम्मीदवार की घोषणा किए जाने के बाद से ही पार्टी में उठा उबाल ठंडा होने का नाम नहीं ले रहा है। पार्टी सूत्रों की माने तो एक तरफ जहां गुटों में बटी कांग्रेस का एक गुट उम्मीदवार यामिनी गौमर को अपनी तरीके से चलाने के प्रयास में ही वहीं जिला कांग्रेस से यामिनी की दूरी से राजनीतिज्ञों का कयास है कि जिला कांग्रेस की नवज़ पढ़ने में यामीनि की देरी कांग्रेस की प्रर्फार्मैंस के लिए घातक साबित न हो जाए। जिसके चलते पार्टी को भारी नुकसान झेलना पड़ सकता है।

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चर्चा है कि कांग्रेस में पिछले कई सालों से दो गुट अपना-अपना प्रभाव दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ रहे तथा पूर्व कैबिनेट मंत्री सुन्दर शाम अरोड़ा के भाजपा में शामिल होने के बाद से कांग्रेस की गुटबाजी नया ही रुप धारण कर गई थी तथा इसके पीछे कहीं न कहीं पूर्व मंत्री की मंशा का भी हाथ बताया जाता रहा है ताकि कांग्रेस में भी उनके समर्थक उनके लिए उनकी वापसी का द्वार खोले मिलें। इसी सब के चलते एक गुट के विरोधी सुरों के कारण ही कांग्रेस के मेयर सुरिंदर कुमार व उनके साथियों को आप में जाने को विवश होना पड़ा था। मौजूदा समय में जिला कांग्रेस की बात करें तो सभी पूर्व विधायकों एवं पदाधिकारियों की एकजुटता के चलते पार्टी का आधार पहले से काफी बढ़ा है, कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा तथा इसे लेकर भी दूसरे पक्ष को काफी निराशा का सामना करना पड़ता है और किसी न किसी नेता के उकसावे के चलते उन्हें अपना अस्तित्व खतरे में नज़र आने लगा है, जिस कारण वह एक नेता के साथ खड़े होने का दिखावा तो करते हैं, लेकिन कोई बात होने पर बड़े ही राजनीतिक ढंग से किनारा भी कर जाते हैं।

जिस कारण कांग्रेस में अच्छी खासी पकड़ रखने वाले उस नेता को नामोशी का सामना करना पड़ रहा है। कहा जाता है कि यह गुट अकसर चुनाव के दिनों में अधिक सरगर्म हो   जाता है और बनी बनाई मेहनत पर पानी फेरने के बाद फिर से गहरी नींद में सो जाता है। मौजूदा समय में भी कांग्रेस के हालात कुछ एसे ही नजर आ रहे हैं और कांग्रेस उम्मीदवार की जिला कमेटी से दूरी भी चर्चा का विषय बनी हुई है। भले ही अपने-अपने स्तर पर नेता एवं पदाधिकारी जनता के बीच पहुंचकर पार्टी पक्ष में काम कर रहे हैं, लेकिन लोगों में आम धारणा है कि जिन चेहरों को वो अकसर कांग्रेस की जिम्मेदारी पूरी मेहनत से निभाते हुए देखते हैं, वह चुनाव के दिनों में आखिर पीछे क्यों कर दिए जाते हैं। राजनीतिक माहिरों की माने तो इस समय में किसानों द्वारा आप और भाजपा का विरोध जोरों से किया जा रहा है तथा अकाली दल की स्थिति भी कुछ बेहतर नहीं कही जा सकती, जिसका लाभ कांग्रेस को मिलता हुआ नज़र तो आता है, लेकिन आपसी फूट के कारण यह अवसर भी धूमित होता हुआ दिखाई देने लगा है।

उनका कहना है कि परिस्थितियों को अनूकूल बनाए रखने की सबसे बड़ी जिम्मेदारी उम्मीदवार की होती है और उसे समझना चाहिए कि जो पिछले लंबे समय से कांग्रेस को चला रहे हैं उनकी भी समाज में एक पहचान है और वह ही हैं जो हारी हुई बाज़ी को जीत में बदलने का दम रखते हैं। इसलिए पार्टी हाईकमांड और उम्मीदवार को सभी के साथ समन्वय बनाकर चलने की पहल खुद करनी होगी ताकि कोई अनहोनि टाली जा सके। अह देखना होगा कि इस विषय को लेकर पार्टी हाईकमांड और जिला टीम का क्या प्रतिक्रिया रहती है तथा पार्टी उम्मीदवार सभी को साथ लेकर चलने में कितनी सक्षम एवं सफल हो पाती हैं।

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