अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़)। पंजाब में चार बड़ी पार्टियों समेत सैकड़ों प्रत्याशी संसद के लिए चुनाव लड़ रहे हैं, पर अफसोस की बात है कि एक भी राष्ट्रीय या क्षेत्रीय पार्टी उनकी चर्चा नहीं कर रही जिनको आतंकवाद के काले दिनों में ऐसे जख्म दिए गए हैं जो कई पीढ़ियां नहीं भूल सकतीं और जो चोट उनको आतंकवाद ने दी है उन परिवारों को पुन: अपना जीवन स्तर सुधारने में भी आधी सदी लग जाएगी। अफसोस की बात है कि केंद्र सरकार समेत पंजाब की राजनीतिक पार्टियों में एक बार भी उन लोगों के घावों पर मरहम लगाने की चर्चा नहीं की गई जो पूरी तरह उजड़ गए जिनके परिवार के सारे पुरुष सदस्य मार दिए गए। बेटियों की इज्जत लूटी गई। जिनकी जमीनें जबरदस्ती आतंकवादियों ने छीन ली। जिन्हें अपना घर और परिवार छोड़कर पलायन करना पड़ गया। जो बसों से निकाल निकाल कर गोलियों से भून दिए गए। याद रखना होगा इतना दिल्ली में गैर इंसानी काम हुआ उतना ही पंजाब में भी हुआ, लेकिन देश के शासकों को और पंजाब के भी बहुत से नेताओं को यह याद ही नहीं कि पंजाब के कितने लोग बसों से निकालकर मारे गए।
घरों से उठाकर अपहरण किया गया। पूरे के पूरे परिवार बच्चों के सामने ही गोलियों से भून दिए गए। और कहीं कहीं तो परिवार के बच्चों को भी मार दिया गया। कौन नहीं जानता कि हरिके पत्तन में एक छह माह की बेटी आतंकियों ने जूतों तले कुचल दी थी और एक गर्भवती महिलाओं को भी गोलियों से भूना था। देश के नेता याद रखें कि दिल्ली में गैर इंसानी काम हुआ और पंजाब में भी, पर पंजाब में लोग लोग जुल्म का शिकार हुए उनकी आवाज उठाने वाला कोई नहीं। अगर चुनाव के दिनों में ही चिंता नहीं की जा रही तो बाद में कौन करेगा। पीड़ित परिवार यह सोचने को विवश हैं। जहां आतंकवाद पीड़ितों के नाम पर बड़े बड़े नेताओं के पुत्र पोतों को भी उच्चाधिकारी बनाया जा रहा है उसके विपरीत जिन परिवारों के सारे ही पुरुष सदस्य मार दिए गए उनके बच्चे आज तक चपरासी, क्लर्क या सिपाही बनकर किस्मत को कोस रहे हैं। अफसोस तो यह है कि लुधियाना से स्व. बेअंत सिंह के पोते को तो याद ही नहीं रहा कि उनके दादाजी समेत 11 लोगों को आतंकवादियों ने मारा था। मेरा उनसे निवेदन है जिस दवा से उनके जख्म भरे है वह दवाई सारे आतंकवाद पीड़ितों में बांट दें।