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कपूरथला (द स्टैलर न्यूज़), गौरव मढ़िया। 29 जून को होने वाली रथ यात्रा के उपलक्ष में रविवार को इस्कान कपूरथला की ओर से सोलहवी संध्या फ़ेरी अशोक विहार से बड़े हर्षो उत्साह से निकाली गई। जिसमें भक्तों का सैलाब देखने को मिला। इससे पता चलता है कि लोगो मे भगवान की रथ यात्रा प्रति उत्साह दिन प्रति दिन बढ़ रहा है। लोगो ने भगवान जगन्नाथ जी की पालकी के समक्ष बहुत ही उत्साह से नृत्य किया। कालोनी वालो ने पुष्प वर्षा के साथ भगवान का स्वागत किया। ये संध्या हरिनाम श्री परवीन गुप्ता ओर शालु गुप्ता जी के निवास स्थान से शुरू हुआ और इस संध्या हरिनाम की समाप्ति आरती श्री संजय गुप्ता जी के निवास स्थान पर जाकर समाप्त हुई।
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भगवान जगन्नाथ जी की कथा का गुणगान करते हुए नीरज अग्रवाल (नकुल दास) ने कहा की एक वैष्णव हमेशा भगवान के बारे मे सोचता रहता है की भगवान को आनंद कैसे दिया जाये। वैष्णव सदैव अकेला भगवद धाम नही जाना चाहता, वो चाहता है की इस संसार के सभी बद्धजीव भगवान के धाम वापिस पहुंच जाएं। वो वैष्णव अकेला भगवान के धाम को जाना उचित नही समझता। वो उन सब को अपने साथ लेकर जाने के लिए हर तरह के प्रयास करता है। एक वैष्णव. उन्हे सिखाना चाहता है की उन सभी जीवो को भगवान कृष्ण की शरण मे लगाया जाये। यही लक्ष्य होता है बस एक वैष्णव. का वो हमेशा शरणगति को बल देता है। क्युकी जब सभी जीव भगवान् को शरणागत हो जायेगे तब उनके सारे दुख ओर रुकावटे दूर हो जायेगी।
अभी हमारी भोतिक संसार की सांसारिक वस्तुओ के प्रति आसक्ति है। यही हमारे बन्धन का कारण है। भोतिक संसार तभी सुख्मयी हो सकता है जब हम इस जगत की सभी वस्तुओ को कृष्ण भगवान के लिए अर्पण कर दे। ताकी जिन वस्तुओ के लिए आज हम आसक्त हुए है उनसे मुक्त हो जाये. भगवान श्री कृष्ण के धाम वापिस जाना ही हमारे जीवन का उद्देश्य है। हम इस भोतिक संसार मे रहते हुये भी भगवान कृष्ण का नाम जप ओर उनकी सेवा कर सकते हैं। भगवान जगन्नाथ जीके नाम का जप करने से हम इस संसारिक जगल की आग से बच सकते हैं।
भगवान् ने भगवदगीता में कहा की जो भी जीव मेरे नाम का प्र्चार करता है वो जीव मुझे अति प्रिय है .लोग संध्या हरिनाम मे हर दिन शामिल हो रहे है क्युकी कल्युग के दुष्ट प्रभाव को नष्ट करने का एक ही तारिका है भगवान के नाम का गुणगान ओर उनके चरणों के दर्शन करना. लोग बहुत उत्साह के साथ हरिनाम मे आ रहे है। भगवान के नाम का कीर्तन किया जाता है ओर उनकी दिव्य लीलाओ का वर्णन किया जाता है।
पद्म पुराण के अनुसार, भगवान जगन्नाथ की बहन ने एक बार नगर देखने की इच्छा जताई. तब जगन्नाथ और बलभद्र अपनी लाडली बहन सुभद्रा को रथ पर बैठाकर नगर दिखाने निकल पड़े. इस दौरान वे मौसी के घर गुंडिचा भी गए और यहां सात दिन ठहरे. तभी से जगन्नाथ यात्रा निकालने की परंपरा चली आ रही है। स्कंद पुराण में स्पष्ट कहा गया है कि रथ-यात्रा में जो व्यक्ति श्री जगन्नाथ जी के नाम का कीर्तन करता हुआ गुंडीचा नगर तक जाता है, वह पुनर्जन्म के बंधन से मुक्त हो जाता है. जो व्यक्ति भगवान के नाम का कीर्तन करता हुआ रथयात्रा में शामिल होता है, उसकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैँ।
प्रभु जी ने आगे बताते हुये कहा की जब भगवान वरिन्दावन को छोड़ कर जाने लगे तो गोपिया उनके रथ के आगे लेट गयी क्युकी वो सभी भगवान को अपने से दूर नही देखना चाहती थीं। जब भगवान् कुरुक्षेत्र में स्नान करने के लिए आये, तब उन्होने बल्रराम जी सुभद्रा माता ओर भगवान को एक रथ मे विराजवान किया ओर रथ से घोड़ों को निकाल कर खुद रथ को खिचने लगी ये होता है भगवान के प्रति शुद्व भाव। जो हम लोगो ने भी अपने अंदर लेकर आना है तभी हम सही मे भगवान की शुद्व भक्ति ओर सेवा कर पायेगे। अभी हम लोगो मे वैर, विरोध, तेरा मेरा, एक दूसरे से द्वेष भरा पड़ा है। जिससे हमारे हृदय अशुद्ध हो चुका है। आगे बताते हुये नकुल दास जी ने कहा की 29 जून को सभी शहर निवासियो के सहयोग के साथ भगवान की दिव्य रथ यात्रा निकाली जायेगी। इन हरिनाम संध्या फेरिओं से हम सभी का हृदय शुद्ध करने का प्रयास कर रहे हैं ताकि भगवान् हमारे हृदय में प्रवेश कर सकें।जिसके लिये हर दिन संध्या हरिनाम निकाल कर लोगो को भगवान के हरिनाम मे शामिल होने के लिए कहा जाता है ताकि उनका मनुष्य जीवन व्यर्थ न हो जाये।
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