साध्वी रजनी भारती ने किया श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़),रिपोर्ट: मुक्ता वालिया। दिव्य ज्योति जागृति स्ंास्थान द्वारा गौतम नगर होशियारपुर के स्थानीय आश्रम में श्री कृष्ण जन्माष्टमी के उपलक्ष्य में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें अपने विचारों को रखते हुए संस्थान के संस्थापक एवं संचालक श्री गुरू आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री रजनी भारती जी ने भगवान श्री कृष्ण की महिमा का वर्णन किया।

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भगवान श्री कृष्ण निराकार ब्रहम है, जो अर्धम, पाप व अत्याचार मिटाने के लिए अवतरित होते हैं। अवनारवाद की व्याख्या करते हुए कहा कि जब-जब इस धर्म की ग्लानि होती है तथा अर्धम का अभयुत्थान होता है तब-तब भगवान अपने को इस विश्व में अवतरित करते है। अजन्मा जन्म को स्वीकार कर लेता है, अकत्र्ता कर्तव्य को, अभोक्ता उपभोग को स्वीकार कर लेता हैं, उसी तरह निराकार परमात्मा साकार हो जाता है, समय-समय पर अनेकानेक अवतारों ने भारत की भूमि पर जन्म लिया है। भाारत जिसे विश्व का हृदय भी कहा गया है, क्योंकि ईश्वर सर्वभूत प्राणियों का धाम है। ईश्वर सर्व प्राणियों के हदय में निवास करता है। इसलिए भगवान भारत रूपी हृदय में अवतार धारण करते हैं। द्वापर युग में प्रभु ने इस धराधाम को अपने चरणकमलों से पावन किया।

जब वसुदेव जी ने भगवान की प्ररेणा से अपने पुत्र को लेकर कारागार से बाहर निकलने की इच्छा की, तब द्वारपाल व पुरवासियों की इंद्रिय-वृत्तियों की चेतना हर ली। वे सब संज्ञाविहीन होकर सो गए। बंदीगृह के द्वार अपने आप खुल गए। जिन पर बड़े-बड़े लोहे की जंजीरे और ताले जड़े हुए थे। उनका बाहर जाना भी कठिन था। परंतु जैसे ही प्रभु को सिर पर धारण किया सब दरवाजे अपने-आप खुल गए। ठीक वैसे ही जैसे सूर्योदय होते ही अंधकार दूर हो जाता है, अर्थात जो प्रभु का साक्षात्कार कर लेते है उनके लिए कारागर के द्वार तो क्या मोक्ष के द्वार खुले जाते है। और उनके सभी बंधन टूट जाते हैं। कहने का भाव यह नहीं कि संसार के बंधन छूट जाते है अभिप्राय बंधनो के प्रति जो मोह, आसक्ति खत्म हो जाती है। अन्यथा यह सारा संसार मोह रूपी कारागृह में सोया हुआ है।

प्रभु की कथा ने कितने ही जीवों के जीवन क ो निर्मल किया है। यदि मानव भगवान श्री कृष्ण के चरित्र से प्राप्त शिक्षा व संदेश को जीवन मे धारण कर लें तो नि:संदेह एक आदर्श मानव का निर्माण होगा। जब एक आदर्श मानव का निर्माण होगा तब एक आदर्श परिवार का गठन होगा। यदि एक आदर्श परिवार का गठन होगा तो एक आदर्श समाज, आदर्श राष्ट्र अंत्तागत्वा एक आदर्श विश्व स्थापित होगा, परन्तु विडम्बना का विषय है कि आज कितनी ही प्रभु की गाथांए गाई जा रही है पर समाज की दशा इतनी दयनीय है। मात्र केवल प्रभु की कथा को कह देना या सुन लेना ही पर्याप्त नहीं है। प्रभु श्री कृष्ण के चरित्र से शिक्षा ग्रहण कर उसका जीवन में अनुसरण करना होगा कथा प्रवचनों मे नारी की महिमा पर विचार देते हुए उन्होंनें कहा कि भारतीय नारी ऐतिहासिक एवं पौराणिक दृष्टि से अपना एक विशिष्ट स्थान बनाए हुए है। वैदिक काल में भारतीय नारी का स्थान बहुत ऊंचा रहा है।

विद्या का आदर्श सरस्वती में,धन का आदर्श लक्ष्मी में, पराक्रम का दुर्गा में, पवित्रता का गंगा में पाया जाता था। उन्होंने बताया कि नारी को अबला समझकर उससे जीने का अधिकार भी छीना जा रहा है। परन्तु नारी अबला नहीं सबला है। आज के परिवेश में कन्याओं को जन्म लेने से पहले ही मार रहे हैं। आज दुर्गा के भारत की हालत देखिए जहां नारी देवी की भांति पूजित थी परन्तु आज जन्म लेने से पहले ही मार दी जाती है। नारी भला किस क्षेत्र में पीछे है। हमें अपनी बीमार मानसिकता को बदलना होगा। तभी एक सु-संस्कृत समाज की कल्पना की जा सकती है। क्योंकि सु-संस्कृत एवं सुशिक्षित समाज का आधार सुसंस्कृत एवं सुशिक्षित नारी ही होती है। साध्वी बहनों ने सुमधुर भजनों के गायन किया और सारा पंडाल नंद महोत्सव के कारण गोकुल गांव की भांति लग रहा था। जब नन्हे से कृष्ण कन्हैया को पालने में डाला गया तो सभी श्रद्धा से नतमस्तक हो उठे एवं सारा पंडाल ब्रजवासियों की भांति नाच उठा। उपस्थित भागवत प्रेमियों को आनन्द विभोर किया।

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