लुधियाना (द स्टैलर न्यूज़)। 5 अक्तूबर 1990 को जन्मे लुधियाना के करनदीप सिंह सैंहबी किसी पहचान के मोहताज नहीं है। बचपन से ही गायन और अभिनय के प्रति अपनी अटूट लगन और समर्पण के साथ, उन्होंने कई स्कूली नाटकों और गायन प्रतियोगिताओं में भाग लिया। उन्होंने लुधियाना के गुरु नानक पब्लिक स्कूल से अपना स्कूल पूरा किया और आई.एन.आई.एफ.डी. (इंटिरियर डिजाईनिंग) से स्नातक की पढ़ाई के लिए चंडीगढ़ चले गए।
उन्हें अपने शुरुआती गायन करियर में पहला ब्रेक तब मिला जब वे लोकप्रिय पंजाबी म्यूजिक शो वॉयस ऑफ पंजाब के फाइनलिस्ट बने। तब से पीछे मुडक़र नहीं देखा था। उन्होंने अपने समन्वयक, राज चन्ना के योग्य मार्गदर्शन में, टी-सीरिज म्यूजिक के साथ रिकॉर्ड ब्रेकिंग ट्रैक बनाने का काम किया।
उनके कुछ प्रसिद्ध गीतों में शामिल हैं, रानी, बॉम्बशेल, फैशन और की ऐ यार। अपना पहला एलबम शॉटलिस्टेड (2013) से संगीत जगत में शुरुआत करते हुए उन्होंने हाल ही में कार्तिक आर्यन और कृति सेनन द्वारा अभिनीत फिल्म लुका छुपी में अपने बेहद हिट गीत फोटो के साथ बॉलीवुड में भी कदम रख दिया है। अब उन्हें मई 2019 में सैट मुराद में देखा जाएगा। द स्टैलर न्यूज़ के साथ सैंहबी ने बातचीत करते बताया कि उनके पड़दादा जी के समय से ही उनका परिवार संगीत क्षेत्र से जुड़ा था। उनके पड़दादा जी राज गायकी में पारंगत थे और उनके बाद दादा व चाचा जी ने परिवार की विरासत को संभाला, हां लेकिन उनके पिता जी ने अलग रास्ता चुना।
बात का एहसास उन्हें पांचवीं कक्षा में ही हो गया था और तभी से स्कूल और कॉलेज स्तर पर संगीत जगत से जुड़े मुकाबलों का सफर शुरु हो गया। रियालटी शो से यहां पहचान मिलती है वहीं, रियालटी शो से अपने हुनर का दिखाना एक बहुत सटीक माध्यम था जिसके कारण वह अपने सपने को ऊंचाईयों तक पहुंचा सकते थे। उन्होंने कहा कि श्रोताओं के दिल में अपनी जगह बनाना कोई आसान बात नहीं होती। पैसे और हुनर के बीच भेद बताते उन्होंने कहा कि पैसे के साथ आप गीत को रिकार्ड तो करवा सकते हो, लेकिन उस गीत की सफलता आपके हुनर पर ही टिकी होती है। शुरुआती सफर की बात करते उन्होंने बताया कि सचिन आहूजा और तेजवंत किट्टू जैसे दिग्गज कलाकारों द्वारा खामियां निकालने व डायरेक्टर प्रमोद शर्मा के सहयोग के कारण ही आज इस मुकाम तक पहुंचे है।
नायकी, अदाकारी व साहित्य को उन्होंने कुदरत की देन मानते कहा कि जब वह अच्छा संगीत सुनते हैं तो कुछ एहसास खुद-ब-खुद जुडऩे लगते हैं, वह उन्हें लिख लेते हैं, और श्रोताओं के समक्ष पेश करते हैं। श्रोताओं का बढिय़ा रिस्पांस ही उनके लिए उत्साह व प्रेरणा का काम करता हैं।