धर्म का अर्थ है सृष्टि के सम्राट का घट में प्रत्यक्ष दर्शन करना: सुश्री राजविंदर

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान की ओर से गौतम नगर आश्रम में धार्मिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें श्री गुरू आशुतोष महाराज जी की शिष्या साध्वी सुश्री राजविंदर भारती ने अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में, प्रत्येक कार्य में धर्म को सम्मुख रखकर चलने वाला मानव जीवन में सदैव उन्नति को प्राप्त करता है। हमारे महापुरूषों का कथन है कि धर्म से विहीन मानव पशु के समान है। अकसर मानव का यह विचार होता है कि अपने सांसारिक कर्तव्यों का ईमानदारी से निर्वाह करो अपनी जिम्मेदारियो को ठीक ढंग से निभाओ यही धर्म है हमें किसी धर्म के निर्वाह की कोई आवश्यकता नहीं। वास्तव में एक मानव के भीतर यह प्रश्न तब उत्पन्न होता है जब वह धर्म के वास्तविक मर्म से अपरिचित होता है।

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आज समाज की कुछ अंध परम्पराओं, रूढिवादी सिद्धातों तथा मान्यताओं को धर्म का नाम दे दिया जाता है। किन्तु वास्तव में धर्म से तात्पर्य सृष्टि के सम्राट ब्रहम भाव ईश्वर का घट में प्रत्यक्ष दर्शन कर लेना है। जब एक मानव उस एक परम स8ाा से जुड़ जाता है तो उसके घट में एक ऐसी विवेक शक्ति उत्पन्न होती है जिस विवेक के आधार पर वह अपने संसारिक कर्तव्यों का निर्वाह ठीक ढंग से करने लायक बन पाता है। यदि हम सोचते हैं कि विवेक के बिना हम संसारिक कर्तव्यों का ठीक ढंग से निर्वाह कर पाएंगे तो यह सर्वदा हमारी बहुत बड़ी भूल है।

धर्म ही हमें सिखाता है कि एक मानव का परिवार के प्रति क्या फर्ज है, देश के लिए क्या कर्तव्य है, समाज के उत्थान तथा विकास में उसकी क्या भूमिका है। धर्म ही तो निजी स्वार्थ से उठकर दूसरों के लिए बलिदान तक दे देना सिखाता है। जैसा बलिदान संत अरबिन्दू, विवेकानंद, जैसे महानपुरूषों ने दिया। आऐं हम भी एक पूर्ण गुरू की शरण को प्राप्त करें जो हमारी दिव्य दृष्टि को खोलकर भीतर में प्रभु की ज्योति का दीदार करवाए ताकि हम भी सच्चे अर्थो में धार्मिक कहला सकें।

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