‘रक्षा तैयारी संबंधी आत्मनिर्भरता’ विषय पर एमएलएफ पैनल चर्चा में राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता के महत्व पर डाला गया प्रकाश

चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़)। मिलिट्री लिटरेचर फेस्टिवल 2020 के दूसरे दिन के शाम के सैशन के दौरान ‘रक्षा तैयारी संबंधी आत्मनिर्भरता’ विषय पर दिलचस्प पैनल चर्चा हुई।इस सैशन का संचालन एमवी कोटवाल, सदस्य एलएंडटी बोर्ड ने किया और विष्णु सोम प्रिंसिपल एंकर और एडिटर एनडीटीवी, राहुल बेदी पत्रकार, ब्रिगेडियर सुरेश गंगाधरन, राजीव चंद्रशेखर सांसद और कार्पोरेट क्षेत्र से हरपाल सिंह इसमें शामिल पैनलिस्ट थे।भारत विश्व बाजार में रक्षा उपकरणों के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है। यह ‘मेक इन इंडिया’ की नीति के बिल्कुल विपरीत है, जिसे आज बढ़ावा दिया जा रहा है। मॉडरेटर एमवी कोतवाल ने सभी पैनलिस्टों की सर्वसम्मति से चर्चा का निचोड़ पेश किया कि हर एक तकनीक स्वदेश में ही बनाने में कोई बुद्धिमानी नहीं है लेकिन देश को विकसित होने के लिए जो रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण है को प्राथमिकता देनी चाहिए और अपने विकास पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए। राजनीतिक सोच से ऊपर उठकर प्रमुख क्षेत्रों में निवेश करने की दीर्घकालिक रणनीति सहित राष्ट्रीय सुरक्षा नीति की आवश्यकता इस चर्चा में मुख्य रही।ब्रिगेडियर सुरेश गंगाधरन ने रक्षा उपकरणों के मानकीकरण और मापनीयता की वकालत की।

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उन्होंने सेना, आरएंडडी, शिक्षा और उद्योग के सहज एकीकरण की बात भी की। हरपाल सिंह ने राष्ट्रीय सुरक्षा के नागरिक पहलू को सामने रखा; इस बात पर उन्होंने चिंताएं व्यक्त कि क्या हमारा रक्षा इको-सिस्टम देश को बचाने के लिए स्वतंत्र रूप से हथियार विकसित करने के लिए समर्थ है या हम अभी भी अपनी रक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर हैं। विष्णु सोम ने कहा कि पिछले दस वर्षों में हमने रक्षा निर्माण के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। हम विश्व स्तर की अत्याधुनिक मिसाइलों का निर्माण और डिजाइन कर सकते हैं। लेकिन, हमारे स्वदेशी निर्माण में धारण के संकट का सामना करना पड़ता है, जिससे नकारात्मकता/इंकार पैदा होता है और इस तरह हथियारों के आयात को पसंद किया जाता है। उन्होंने कहा कि प्रोजैक्टों के लिए पर्याप्त वित्त के प्रावधान के साथ-साथ इस पर ध्यान देने की आवश्यकता है, क्योंकि घरेलू हथियार नहीं होंगे, जब तक कि निर्माण का पैमाना विशाल न हो।

राहुल बेदी ने कहा कि रक्षा निर्माण में नीतियों और एजेंसियों की बहुलता से खिचड़ी बनती है और स्वदेशीकरण प्रक्रिया में बहुत भ्रम पैदा होता है। एक सिद्धांत के रूप में आत्म-निर्भरता प्रयास करने के लिए उत्कृष्ट है, लेकिन हमें समग्र रूप से देखने की जरूरत है और लड़ाई निजी क्षेत्र और सार्वजनिक क्षेत्र के बीच नहीं लड़ी जानी चाहिए।राजीव चंद्रशेखर ने सुझाव दिया कि हम प्रयोगशाला के मौजूदा ढांचे से विकास जारी नहीं रख सकते; इसे विचारों का बहुत अधिक जोशपूर्ण इको-सिस्टम होना चाहिये। हमें एक राष्ट्र के रूप एक मिसाल विकसित करने की आवश्यकता है जो उद्देश्यों और आकांक्षाओं के अनुरूप हो।

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