मुख्यमंत्री ने राज्यों पर हावी होने की कोशिशों के लिए केंद्र सरकार की आलोचना की

चंडीगढ़ (द स्टैलर न्यूज़)। किसानों और आढ़तियों के लिए अपना पूरा समर्थन दोहराते हुए पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने सोमवार को भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार की राज्यों पर हावी होने की कोशिश के अंतर्गत उनके हक छीनने के लिए कड़ी आलोचना की। मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार द्वारा ज़बरन कृषि कानून लागू करने और राज्य की किसानी पर सीधी अदायगी जैसे एकतरफ़ा फ़ैसले थोपने के लिए भी केंद्र को आड़े हाथों लिया। मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्यों को पहले कभी भी ऐसीं समस्याओं का सामना नहीं करना पड़ा और भारत सरकार सदियों से चलती आ रही उस प्रणाली को कथित सुधारों, जोकि सम्बन्धित पक्ष को भरोसे में लिए बिना थोपे जा रहे हैं, की आड़ लेकर ख़त्म करना चाहती है जो बीते 100 वर्षों से सभ्यक ढंग से काम करती आ रही है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने आगे कहा कि पंजाब के किसानों और आढ़तियों के सम्बन्ध बहुत पुराने हैं जिनको केंद्र सरकार ख़त्म करने पर तुली हुई है।

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उन्होंने भारत सरकार द्वारा अपनाए जा रहे कड़े रूख और तर्कहीन फ़ैसलों को संघवाद की मूल भावना के खि़लाफ़ बताया। उन्होंने आगे कहा कि अपने पहले कार्यकाल के दौरान पंजाब से सम्बन्धित किसी भी नीतिगत फ़ैसले /विकास प्रमुख मुद्दे सम्बन्धी उनको पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह का पूरा विश्वास और समर्थन हासिल था। पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी, लुधियाना द्वारा करवाए जा रहे दो दिवसीय किसान मेले का वर्चुअल उद्घाटन करते हुए मुख्यमंत्री ने किसानों की काले कृषि कानूनों के मुद्दे पर पूरी तरह हिमायत की जो कानून केंद्र सरकार द्वारा संविधान के सातवीं अनुसूची का उल्लंघन करते हैं जिसके अनुसार कृषि राज्यों का विषय है। उन्होंने कहा कि केंद्र ने जानबूझकर राज्य के अधिकार छीनने की कोशिश करते हुए लोकतंत्र के मूलभूत ढांचे को खतरे में डाला है। कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने ज़ोर देकर कहा कि केंद्र सरकार को इन विवादास्पद कानूनों को अमली जामा पहनाने से पहले किसानों को भरोसे में लेना चाहिए था। उन्होंने आगे कहा, ’’यदि केंद्र सरकार इस समस्या का हल ढूँढने के लिए ईमानदार होती तो उसके द्वारा या तो पंजाब सरकार या फिर राज्य के किसानों के साथ बातचीत की जाती क्योंकि पंजाब अकेला ही राष्ट्रीय अन्न भंडार में 40 प्रतिशत से अधिक अनाज का योगदान देता है।’’ मुख्यमंत्री ने स्पष्ट तौर पर कहा कि पंजाब, जो कि शुरू में कृषि सुधारों पर बातचीत का हिस्सा भी नहीं था, को सिर्फ़ तब ही उच्च स्तरीय समिति का हिस्सा बनाया गया जब उन्होंने केंद्र को पत्र लिखा। निष्कर्ष के तौर पर वित्त मंत्री मनप्रीत सिंह बादल और उस समय के सचिव (कृषि) के.एस. पन्नू ने इसके बाद हुई दो मीटिंगों में हिस्सा लिया परन्तु इनमें विवादास्पद कृषि कानूनों का कोई भी जि़क्र नहीं हुआ।

स्थिति स्पष्ट करते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि किसान आंदोलन के दौरान अब तक 144 किसानों की मौत हो चुकी है और उनकी सरकार मारे गए किसानों के वारिसों को नौकरी और 5 लाख रुपए दे रही है। उधर, दूसरी तरफ़ केंद्र सरकार को किसानों का दर्द नजऱ नहीं आ रहा। अपने संबोधन के दौरान सतही (नहरी) और भूजल के घटते स्तर की समस्या पर ध्यान केंद्रित करते हुए मुख्यमंत्री ने किसानों को बड़े स्तर पर बूंद सिंचाई प्रणाली अपनाने का न्योता दिया जिससे राज्य को भविष्य में मरूस्थल बनने से बचाया जा सके। उन्होंने आगे कहा कि घटते जा रहे पानी के स्तर, जिसका कारण पिघल रहे ग्लेशियर हैं, ने राज्य के सामने बड़ी चुनौती पेश की है जिसका एकमात्र समाधान धान और गेंहू के चक्कर में से निकलना है जिससे पानी जैसी कीमती रहमत बचायी जा सके। मुख्यमंत्री ने किसानों को बूंद सिंचाई तकनीक के अलावा पानी के कम उपभोग वाली फसलों जैसे कि सब्जियों और फलों आदि की तरफ ध्यान देने के लिए कहा। उन्होंने आगे जोर देकर कहा कि बागबानी फसलों को अपनाने की कोशिशें करनी चाहिये हैं क्योंकि इनकी विश्व मंडी में फायदे की बड़ी संभावनाएं हैं। मुख्यमंत्री ने आने वाली नस्लों के लिए पानी बचाने की जरूरत पर जोर देते हुये कहा कि इसकी संभाल करना हर पंजाबी का नेक फर्ज बनता है। पहली पातशाही श्री गुरु नानक देव जी की तरफ से इस अनमोल संसाधन की महत्ता को सराहा गया है। उन्होंने बूंद सिंचाई संबंधी अपने तजुर्बे भी सांझे किये जो उन्होंने इजराइल के दौरे के दौरान हासिल किये थे जहाँ पौधे लगाने के अलावा नीबू जाति के फलों की काश्त बूंद सिंचाई के साथ की जाती है। मुख्यमंत्री ने किसानों को पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के माहिरों की सिफारिशों के अनुसार कम से कम कीड़ेमार दवाएँ और कीटनाशकों का कम से कम प्रयोग करने की भी अपील की क्योंकि इनकी लापरवाही के अधिक प्रयोग से न सिर्फ सेहत के लिए खतरनाक है बल्कि यह अनाज खास कर बासमती चावलों के रद्द करने का कारण भी बनती है जिससे किसानों को वित्तीय नुकसान भी बर्दाश्त करना पड़ता है। कृषि अनुसंधान और नये तरीकों की शुरुआत के लिए पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के दिग्गजों के योगदान की सराहना करते हुये कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि इस यूनिवर्सिटी के पूर्व वाइस चांसलर जैसे कि डा. खेम सिंह गिल, डा. किरपाल सिंह औलख, डा. गुलजार सिंह कालकट को सदा सभीयाद करते हैं जिन्होंने भारत को अनाज पैदावार में आत्म निर्भर बनाने के लिए हरी क्रांति लाई और पी.एल. -480 मांगने के लिए होते अपमान से बचाया। बिजली उत्पादन के लिए धान की प्रणाली के प्रयोग के लिए एक अनुप्रयुक्त प्रौद्यौगिकी को विकसित करने की जरूरत पर जोर देते हुये कैप्टन अमरिन्दर सिंह ने कहा कि राज्य में ईधन के प्रयोग के लिए ईटों के उत्पादन और धान की पराली से बिजली पैदा करने के लिए छोटे यूनिट स्थापित करने से इस सम्बन्धी शुरुआत हो गई है परन्तु अभी और करना बाकी है। पशुधन की गुणवत्ता में सुधार के लिए गुरू अंगद देव वैटरनरी और एनिमल सायंसेज यूनिवर्सिटी, लुधियाना की भूमिका की भी सराहना करते हुये मुख्यमंत्री ने यूनिवर्सिटी को मुरराह, साहिवाल नसल की उच्च कोटी की भैंसों और थारपारकर नसल की गाओं के लिए भूण संचार प्रौद्यौगिकी विकसित करने के लिए अनुसंधान करने के बारे जोर दिया। हाल ही में आए कोविड -19 के दूसरे शिखर संबंधी लोगों को जागरूक करते हुये मुख्यमंत्री ने कहा कि लापरवाह होने की जरूरत नहीं और कोविड प्रोटोकोल के अनुसार मास्क पहने, निरंतर हाथ धोएं और सामाजिक दूरी कायम रखने के सभी जरुरी एहतियात इस्तेमाल करने चाहिएं। इसके अलावा जो योग्य हैं, वह टीका लगाएं। उन्होंने राज्य में कोविड-19 की स्थिति बताते हुये कहा कि कल 2200 के करीब केस आए और 67 मौतें हुई जोकि चिंता का विषय है। वह मुंबई जैसी स्थिति नहीं बनने देंगे जहाँ रोजमर्रा के 34000 केस आते हैं। इस मौके पर अन्यों के अलावा अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास अनिरुद्ध तिवाड़ी, पंजाब कृषि यूनिवर्सिटी के वाइस चांसलर डा. बलदेव सिंह ढिल्लों और गुरू अंगद देव वैटरनरी और एनिमल सायंसेज यूनिवर्सिटी लुधियाना के वाइस चांसलर डा. इन्द्रजीत सिंह भी उपस्थित थे।

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