होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में रविवारीय सत्संग के दौरान भक्तों का मार्गदर्शन करते हुए आश्रम के आचार्य चंद्रमोहन अरोड़ा ने कर्मों के बारे में बताते हुए कहा कि पिछले अनेक जन्मों में किए वह कर्म जिन का भुगतान देना अभी बाकी है उन्हें संचित कर्म कहते हैं। इन संचित कर्मों में से जिन कर्मों को हमने बार-बार किया होता है वह हमारी आदत बन चुके होते हैं, इन्हें हम संस्कार कहते हैं। यह संस्कार हमारे इस जन्म में हमारे व्यवहार के रूप में प्रदर्शित होते हैं। अनावश्यक ही गुस्सा आना, झगड़े का स्वभाव, संशय करते रहना, चुपचाप रहना या ज्यादा बोलते रहना, इन जैसे अनगिनत आदतें हमारे इन संस्कारों के कारण होती हैं। इनका प्रभाव हमारे जीवन में इतना गहरा होता है कि इन्हें ठीक करना अथवा बदलना दुर्लभ होता है।
यदि चोरी की आदत हो अथवा झूठ बोलने की प्रवृत्ति हो, बात-बात पर गुस्सा करने का स्वभाव हो, तो भरसक प्रयास करके भी इन्हें बदलना मुश्किल होता है। गीता के अनुसार हमारे जीवन में अनेक बुरे संस्कार हैं जो पिछले जन्मों में बुरे कर्मों के बार-बार दोहराने से पड़े हैं। इसलिए वर्तमान में जब हमें कर्मों के करने की स्वतंत्रता है जिन्हें क्रियमान कर्म कहते हैं हमें बुरे कर्म करते समय विचार करना चाहिए और ऐसे कर्मों को दोहराना नहीं चाहिए। अपने पिछले संस्कारों को ठीक करने तथा वर्तमान जन्म में बुरे संस्कार ना अर्जित करने हेतु हमें योगी सतगुरु की शरण में रहना चाहिए।
योगी सद्गुरु ईश्वर से युक्त होने के कारण अपनी दिव्यता की तरंगे हम पर डालते हैं तथा हमें ज्ञान द्वारा शुभ कर्म करने और बुरे संस्कारों पर काबू पाने की निरंतर प्रेरणा देते हैं। गुरु कदम कदम पर शिष्य का मार्गदर्शन करते हैं तथा उसे भटकने नहीं देते। हमारे द्वारा किए संचित कर्मों के भंडार से जो शुभ या अशुभ कर्म ईश्वर ने हमें निष्पादन करने के लिए भेजा है उसे हमारी किस्मत या प्रारब्ध कर्म कहते हैं। गुरु की शरण में रहकर हम अपने अशुभ कर्मों से प्राप्त दुखों को सुगमता पूर्वक भोग पाते हैं।