समाज में भाईचारा बढ़ाने वाले अग्रगण्य संत हैं गुरु रविदास जी: राम लाल

दातारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। भारत के कई संतों ने समाज में भाईचारा बढ़ाने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दातारपुर में रिटायर्ड चीफ इंजीनियर  मेंम लाल संधु ने महान संत रविदास जी की जयंती पर चर्चा करते हुए कहा कि  ऐसे संतों में महान संत रविदास का नाम अग्रगण्य है। ऐसे महान संत का जन्म सन् 1398 में काशी (उत्तरप्रदेश) हुआ था। वे बचपन से समाज  में व्याप्त बुराइयों को दूर करने के प्रति अग्रसर रहे। रवि दास की ख्याति से प्रभावित होकर सिकंदर लोदी ने इन्हें दिल्ली आने का निमंत्रण भेजा था। राम लाल संधु तथा सेवक दिलबाग सिंह ने कहा कि मध्ययुगीन साधकों में उनका विशिष्ट स्थान है। कबीर की तरह गुरु रविदास भी संत कोटि के प्रमुख कवियों में विशिष्ट स्थान रखते हैं।  कबीर ने ‘संतन में रविदास’ कहकर इन्हें मान्यता दी है। रामलाल संधु तथा दिलबाग सिंह ने कहा कि  वह व्यक्ति की आंतरिक भावनाओं और आपसी भाईचारे को ही सच्चा धर्म मानते थे। गुरु रविदास ने अपनी काव्य-रचनाओं में सरल, व्यावहारिक ब्रजभाषा का प्रयोग किया है, जिसमें अवधी, राजस्थानी, खड़ी बोली और उर्दू-फ़ारसी के शब्दों का भी मिश्रण है। रैदास को उपमा और रूपक अलंकार विशेष प्रिय रहे हैं।
 

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सीधे-सादे पदों में संत कवि ने हृदय के भाव बड़ी स़फाई से प्रकट किए हैं। उन्होंने कहा इनका आत्मनिवेदन, दैन्य भाव और सहज भक्ति पाठक के हृदय को उद्वेलित करते हैं। गुरु रविदास के चालीस पद  पवित्र धर्मग्रंथ ‘गुरुग्रंथ साहब’ में भी सम्मिलित हैं। कहते हैं मीरा के गुरु रविदास ही थे उनके जीवन की छोटी-छोटी घटनाओं से उनके विशिष्ठ गुणों का पता चलता है। उन्होंने अपनी अनेक रचनाओं के माध्यम से समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर करने में महत्वपूर्ण योगदान किया। उनकी लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है। उन्होंने समाज में फैली छुआ-छूत, ऊँच-नीच दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बचपन से ही गुरु रविदास का झुकाव संत मत की तरफ रहा। राम लाल संधु तथा दिलबाग सिंह ने कहा वे सन्त कबीर के गुरूभाई थे। ‘मन चंगा तो कठौती में गंगा’ यह उनकी पंक्तियाँ मनुष्य को बहुत कुछ सीखने का अवसर प्रदान करती है। ‘रविदास के पद’, ‘नारद भक्ति सूत्र’ और ‘रविदास की बानी’ उनके प्रमुख संग्रहों में से हैं। एक समय जब एक पर्व के अवसर पर पड़ोस के लोग गंगा-स्नान के लिए जा रहे थे। गुरु रविदास के शिष्यों में से एक ने उनसे भी चलने का आग्रह किया तो उन्होंने अपने शिष्‍य से कहा- गंगा-स्नान के लिए मैं अवश्य चलता किन्तु एक व्यक्ति को जूते बनाकर आज ही देने का वचन मैंने दे दिया है।
 

यदि मैं उसे आज जूते नहीं दे सका तो मेरा वचन भंग हो जाएगा। गंगा स्नान के लिए जाने पर मन यहाँ लगा रहेगा तो पुण्य कैसे प्राप्त होगा? मेरा मानना है कि अपना मन जो काम करने के लिए अन्त:करण से तैयार हो वही काम करना उचित है।  अगर मन सही है तो इस कठौते के जल में ही गंगा स्नान का पुण्य प्राप्त हो सकता है। ऐसे मानवता के उद्धारक गुरु रविदास का संदेश दुनिया के लिए बहुत कल्याणकारी है। दुनिया भर में उनको भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। उक्त दोनों महानुभावों ने कहा कि  ऐसे महान संत की गणना केवल भारत में ही नहीं अपितु विश्व के महान संतों में की जाती है। जिन्हें संत शिरोमणि गुरु रविदास से नवाजा गया है। संत रविदास की वाणी के अनुवाद संसार की विभिन्न भाषाओं में पाए जाते हैं। ऐसे महान संत को शत् शत् नमन।

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