विश्लेषण: भाजपा की फूट और कांग्रेस की एकजुटता से शिमला में मुरझाया कमल का फूल

शिमला (द स्टैलर न्यूज़), रजनीश शर्मा। हमीरपुर: करीब पांच महीने पुरानी हिमाचल की सुक्खू सरकार अपने पहले लिटमस टेस्ट में पास हो गई है। शिमला नगर निगम का चुनाव कांग्रेस ने भारी बहुमत से जीतकर भाजपा को धूल चटा दी है। 34  सीटों में से 24 में कांग्रेस को हाथ का साथ मिला है और भाजपा के हाथ केवल नहला लगा है। लाल सलाम को केवल एक सीट मिली है। कांटे की टक्कर देने का दावा करने वाली भाजपा को शिमला में नुकसान हुआ है और सुखविंदर सिंह सुक्खू के नेतृत्व में कांग्रेस ने भाजपा से एमसी छीन बड़ी जीत हासिल की है।

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भाजपा अपनी धड़ों में बंटी फूट के कारण हारी। बिंदल, अनुराग और जय राम की तिकड़ी अपना प्रभाव शिमला के करीब 93 हजार वोटरों पर न छोड़ पाई। दूसरी तरफ कांग्रेस ने सुक्खू, मुकेश और विक्रमादित्य के नेतृत्व में एकजुट होकर चुनाव लडा और अप्रत्याशित जीत हासिल की। कर्मचारियों को मिली ओल्ड पेंशन स्कीम ने शिमला नगर निगम चुनावों में फिर से असर दिखाया और सुक्खू सरकार को कर्मचारियों का फिर से समर्थन एमसी चुनावों में मिला। मुख्यमंत्री सुखविंद्र सिंह सुक्खू ने शिमला एमसी चुनाव जीतकर कांग्रेस हाई कमान के सामने भी अपनी पैठ बनाई है। 

भाजपा की फूट पड़ी भरी

शिमलानगर निगम  प्रदेश की तीन विस क्षेत्रों में फैला है। इन तीनों में भाजपा का एक भी विधायक नहीं है। कांग्रेस के दो मंत्री शिमला नगर निगम क्षेत्र से ही संबंधित है। ऐसे में कांग्रेस एकजुट रही और भाजपा धड़ों में बंटी रही। चुनाव प्रचार में भी भाजपा दिग्गज अपना प्रचार ज्यादा और प्रत्याशी का प्रचार अधिक करते नजर आए। भाजपा ने जो 9 सीटें जीती हैं वह प्रत्याशी के व्यक्तिगत रसूख के कारण जीती पाई है।  भाजपा अब हार का ठीकरा एक दूसरे के सिर पर फोड़ती नजर आ रही है।

बिंदल को लगा झटका

शिमला नगर निगम चुनावों की घोषणा के बीच ही भाजपा ने सांसद सुरेश कश्यप को हटा नाहन से हारे हुए विवादित व्यक्ति राजीव बिंदल को हिमाचल भाजपा का अध्यक्ष बना दिया। इससे आरक्षित वर्ग नाराज हुआ , और भाजपा का ही आरक्षित वर्ग का वोटर कांग्रेस प्रत्याशियों के समर्थन में खिसक गया। उधर भाजपा की चुनावी घोषणाएं हवा में तीर नजर आई और शिमला की प्रबुद्ध जनता ने जुमलों पर विश्वास ही नहीं किया।

शिमला जीत का अर्थ

कांग्रेस ने 34 में से 24 सीटें जीतकर शिमला एमसी पर कब्जा किया है। इसका अर्थ हुआ कि पांच माह में सुक्खू सरकार के निर्णयों पर शिमला की जनता ने मोहर लगा दी है। ठीक एक वर्ष बाद लोकसभा चुनाव है। ऐसे में कांग्रेस को इन चुनावों में उतरने के लिए टॉनिक मिला है और कांग्रेस का आत्मविश्वास भी बढ़ा है। दूसरी और भाजपा को धड़ेबंदी छोड़ एकजुटता से स्थानीय मुद्दों पर फोकस कर चुनाव में उतरने की नसीहत शिमला के वोटरों ने दे डाली है।

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