जाणदा मैं कौण हां, …..पा आप आ के कराऊ कम्म, नहीं तां फेर। फेर की, हुण आरटीआई ते आरटीआई

श्री गुरु नानक देव जी अपनी वाणी में फरमाते हैं “राजे शीन मुकदम कुत्ते” अब इसका अर्थ मुझसे न पूछिएगा, आप इसकी चर्चा किसी विद्वान से ही करें तो अच्छा होगा। क्योंकि अगर मैं चुटकी में इसका अर्थ समझाने बैठा तो आप समझ सकते हैं कि मर्ची कहां-कहां लगेगी। इसलिए चुटकी में इतना ही। बाकी बाबा नानक जी सभी को सद्बुद्धि दें और नेता जी के चमचे और कथित चाणक्य जी अपना स्वार्थ छोड़ जनता के लिए भी कुछ काम कर सकें।

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लालाजी स्टैलर की चुटकी

मंत्री जी के खास कहते हैं , जाणदा मैं कौण हां, …..पा आप आ के कराऊ कम्म, नहीं तां फेर। अब मंत्री जी ने भी जब कुछ नहीं किया तो, फेर की, हुण आरटीआई ते आरटीआई

आज हम बात करने वाले हैं तथाकथित आरटीआई डालने वाले कुछ लोगों की, जिन्होंने एकाध नहीं बल्कि अधिकतर विभागों में निजी स्वार्थों के लिए आरटीआई का प्रयोग करके विभागों का बोझ अनायास ही बढ़ा रखा है, जिस तरह सरकार को ध्यान देने की जरुरत है। अब बात यहां की करें, तो बात ऐसी है कि इन दिनों शहर में खुद को राजनीति के परोधा और चाणक्य समझने वाले एक नेता जी, जिन्हें एक मंत्री जी भी अपना गुरु ही मानते हैं, की चर्चाओं ने जोर पकड़ रखा है। अधिकारियों और मंत्री को नियमों का पाठ पढ़ाने वाले इस नेता का कारनामा सुनेंगे तो आप भी हैरान हो जाओगे कि अगर कोई अधिकारी आपके कहे अनुसार काम न करे तो या तो मंत्री से कहकर उसका तबादला किए जाने का दवाब बनाया जा रहा है या फिर आरटीआई को अपने निजी स्वार्थ सिद्धी के लिए प्रयोग करके अधिकारियों पर गलत काम करने का दवाब बनाने की रणनीति चली जा रही है।

हालात ये हैं कि एक ही सवाल का जवाब लेने के लिए घुमा-घुमाकर सवाल पूछ कर जवाब लेने की तकनीक ऐसी है कि किसी न किसी जवाब में तो अधिकारी फंसे, एक बार अधिकारी फंसा तो फिर उसकी ऐसी-तैसी फेरने में कौन सी देर लगती है।

एक के बाद एक आरटीआई डालने माहिर ये दलबदलू नेता जी व उनके साथियों ने कई अधिकारियों की नाक में दम किया हुआ है। एक तरफ पंजाब सरकार भ्रष्टाचार पर लगाम लगाए जाने के दाव करती नहीं थकती तो दूसरी तरफ एक मंत्री जी के खास अधिकारियों पर अपना निजी काम गलत ढंग से करवाने का दवाब बनाने के लिए क्या-क्या हथकंडे अपना रहे हैं, ये जग जाहिर है। लेकिन अधिकारियों की मजबूरी है कि मंत्री जी के खास से कौन उलझे।

अब भाई पंजाब कोई 10-20 किलोमीटर में बसा नहीं है, जनाब अगर मंत्री जी को गुस्सा आ गया और 3-4 सौ किलोमीटर की दूरी पर भेज दिया गया तो। अब ये है कि जिस विभाग में जनाब ने आरटीआई डालकर दवाब बनाने का प्रयास किया है, वहां के अधिकारी गलत काम न करने का जहां मन बना चुके हैं वहीं वे इसके दवाब के नीचे काम करने की बजाए यहां से जाने की तैयारी भी किए बैठे हैं।

क्योंकि, मंत्री जी के चहेते का जब काम नहीं होगा तो भाई तबादला तो पक्का है। वैसे एक बात बता दूं कि जो मंत्री या नेता कान व आंखे खोल कर नहीं सोते न (क्योंकि वे जागते नहीं न, अगर जागें तो ऐसे लोगों की क्या मजाल कि बिना बात के कर्मियों या अधिकारियों को तंग करके गलत काम के लिए मजबूर करें), उनकी लुटिया ऐसे लोग ही अकसर डुबो दिया करते हैं।

एक कारपोरेशन है, जहां अगर कुछेक अधिकारियों व कर्मियों के तबादले हुए तो कहानी आपके सामने आ ही जाएगी कि सरकार किसी की भी हो, गलत काम तो करने ही पड़ेंगे, नहीं तो बोरिया बिस्तर बांधों और कभी इस शहर तो कभी उस शहर जाने के लिए तैयार रहो।

अरे हम भी क्या ज्ञान की बातें करने लगे। तो मुद्दा ये है कि आरटीआई जैसे हथियार का इस्तेमाल करके जहां कई लोगों ने कई नेताओं व विभागों द्वारा किए भ्रष्टाचार को उजागर किया है वहीं कुछेक ऐसे भी हैं जिन्होंने इसे निजी स्वार्थ सिद्धी का हथियार बना रखा है।

क्या कौन से नेता जी हैं, कौन का आरटीआई एक्टिविस्ट है या छुटभैया नेता है। अब ऐसे सवाल पूछकर मुझे दुविधा में न ही डालें तो अच्छा है। वैसे एक बात बताऊं कभी इस दर तो कभी उस दर भटकने से अच्छा है कि एक के लड़ लगकर अपना कल्याण करवा लें। अन्यथा एक और कहावत भी चरितार्थ होती नजऱ आने लगेगी। अब मुझे दें इजाजत, जय राम जी की।

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