योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में गुरु माता राजरानी जी का जन्मोत्सव श्रद्धापूर्वक मनाया गया

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। योग साधन आश्रम मॉडल टाउन में गुरु माता राजरानी जी का जन्मोत्सव श्रद्धापूर्वक मनाया गया। इस मौके पर गुरु माता को श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए आश्रम के मुख्य आचार्य चंद्र मोहन जी ने कहा कि जो पूर्व जन्म में योग मार्ग पर चलते हुए अपना शरीर छोड़ जाते हैं उनका जन्म बाद में योगी के घर होता है तथा वह अपनी अधूरी साधना को पूरा करके मुक्ति को प्राप्त करते हैं। उन्होंने कहा कि गुरु माता जी ने संसार का ज्ञान हासिल नहीं किया परंतु हमें यह संदेश दिया की मुक्ति गुरु के द्वारा ही संभव है। अपना प्रयास काफी नहीं होता। गुरु माता एक अच्छी प्रशासक थी। उनका एक ही सिद्धांत था कि अपने पर यकीन करो कि हम ठीक हैं और फिर बिना कुछ सोच आगे बढ़ते जाओ। वह आश्रम में आने वाले हर एक जीव को अपने बच्चों के समान प्यार देती थी।

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ईश्वर के प्रति उनका अटूट विश्वास था। ईश्वर प्रणिधान के माध्यम से संसार से मुक्त होने को वह सबसे अच्छा साधन समझती थी। उन्होंने योगाचार्य सदगुरु देव चमन लाल जी महाराज जो उनके पति थे को ईश्वर के स्वरूप में देखा। कई बार वह आरती में आते हुए समाधि में चली जाती थी। अपने महाप्रस्थान से पहले उन्होंने योगाचार्य सदगुरुदेव चमन लाल जी महाराज को उनका वादा याद करवाया कि अब उनकी मुक्ति का ध्यान उन्होंने रखना है। इसीलिए गुरु माता जी के महाप्रस्थान के बाद गुरु महाराज ने यह बचन कहे थे कि गुरु माताजी मुक्त हो गई। उन्होंने कहा कि वह सुख-दुख में एक समान रहती थी। लेकिन हम लोग सुख की स्थिति में तो भगवान को याद करते हैं लेकिन दुख में डोल जाते हैं। वास्तव में सुख तो इंद्रियों को मिलता है।

दुख के समय हम ईश्वर को अपना साथी नहीं मानते और अपना प्रयास करना शुरू कर देते हैं। अप्रिय घटना होने पर ईश्वर को कोसते हैं क्योंकि हम दुख को स्वीकार ही नहीं कर सकते। उन्होंने कहा कि समुद्र में बहुत सी नदियां गिरती हैं।कई नाले गिरते हैं। लेकिन समुद्र अपनी मर्यादा में रहता है कभी शोर नहीं करता। गीता कहती है कि जीवन में दो मार्ग है। एक संसार की माया और दूसरा गुरु का धाम। दूसरे मार्ग पर चलकर हम मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं। ईश्वर तो कर्मों का फल देता है। लेकिन गुरु कर्म बंधन को भी तोड़ देते हैं। संसार का रास्ता सुख-दुख, मान अपमान,जीत हार, लाभ हानि, काम क्रोध, राग द्वेष की तरफ ले जाता है। लेकिन प्रभु का धाम हमें सच्चे सुख की प्राप्ति करवाता है और हमें आवागमन से छुटकारा दिलाता है।

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