स्वतंत्र भारत में लाल कार्पेट और काले गाऊनों की गुलामी कब तक?: लक्ष्मीकांता चावला

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अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़)। भाजपा नेता व पूर्व मंत्री प्रो. लक्ष्मीकांता चावला ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत की स्वतंत्रता का अमृत महोत्सव मना लिया। अब तो स्वतंत्रता के 76 वर्ष पार हो गए, पर अभी भी हम अंग्रेजों की गुलामी और उनके सम्मान चिन्ह छोड़ने को तैयार नहीं। बंग भंग आंदोलन जब पूरे यौवन पर था, तब लार्ड हार्डिंगे ने दिल्ली को राजधानी बनाने के लिए दिल्ली में अपना केंद्र बनाया। पहली बार लार्ड हार्डिंगे के दिल्ली आने पर लाल कार्पेट बिछाकर उसका स्वागत किया गया। 1911 से 2023 में पहुंच गए और हार्डिंगे के साम्राज्यवादियों को इस देश से विदा हुए 76 वर्ष से ज्यादा हो गया। अब भी अपने देश के नेता, अभिनेता, सत्तापति जहां पहुंचते हैं वहां उनके स्वागत में लाल कार्पेट ही बिछाए जाते हैं और रेड कापेट स्वागत बड़े आदर की बात मानी जाती हैं। आजाद भारत के नेताओं को अपने लिए किसी और रंग का गलीचा नहीं मिला। वैसे तो अब गलीचे नहीं लाल रंग के टाट बिछाए जाते हैं, पर क्या यह जरूरी है।

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हम अंग्रेजों से अलग कहां हुए? एक नेताजी तो जब कुरुक्षेत्र में ब्रह्म सरोवर आरती करने गए तो सड़क से लेकर सरोवर तक भी यही लाल टाट बिछाए गए। दूसरा प्रश्न यह है कि अंग्रेज जब ग्रेजुएट की डिग्री देते थे तब काले रंग के गाऊन पहनाते थे। आज भी आधे भारत से ज्यादा कालेजों और विश्वविद्यायलों में दीक्षांत समारोह काले गाऊनों के साथ ही होते हैं। मेरा देश के बुद्धिजीवियों, शिक्षविदों और भारत सरकार से यह सवाल है कि स्वतंत्र भारत में अंग्रेजों की जूठन काले गाऊन और लाल कार्पेट अभी तक क्यों गले लगाए बैठे हैं। गुलामी के चिन्हों से कब छुटकारा पाओगे। अच्छा हो देश के बेटे बेटियां विश्वविद्यालयों में पूरी तरह गाऊन पहनने से इंकार कर दें।

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