क्या राजनीति सच्च में सेवा के लिए है?: राकेश भार्गव

होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज)। अक्सर आप देखते हो कि जब भी चुनाव का समय नजदीक आता है तो राजनीतिक नेताओं को आम लोगों की चिंता कुछ ज्यादा ही होने लगती है। बाद में सत्ता हाथ आई नहीं कि मैं कौन, तू कौन। चुन चुन कर बदले लेने का सिलसिला शुरू हो जाता है। उक्त विचार राकेश कुमार भार्गव सेवा मुक्त अधीक्षक प्रशासक ग्रेड-1 ने करते हुए कहा कि विपक्ष से संबंधित एमपी, एमएलऐ की तो बात ही छोडि़ए, मेयर, पार्षद, गांव के सरपंच अपने क्षेत्र के विकास के लिए ग्रांट की मांग करते करते निराश एवं हतोत्साहित होकर बैठ जाते हैं। उस क्षेत्र के लोग फिर पांच बर्ष की प्रतीक्षा करते हैं और फिर वही चक्र।

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आखिर कव तक चलेगा यह सब कुछ ? तो क्या सच्च में राजनीति सेवा के लिए है? इसका साफ और स्पष्ट उत्तर पिछले दिनों हम सभी ने सुना और आंखों देखा कि सेवा सिर्फ अपनी, अपने पारिवारिक सदस्यों की तथा अपने परिचितों की। भारतीय राजनीति में इतनी गिरावट शायद ही पहले कभी आई हो। नित्य प्रति पाले बदलते हुए लोग। उन्होंने कहा कि आम लोगों का ध्यान असली मुद्दों से हटा कर, आखिर यह राजनीतिक लोग हमें कहां ले कर जाना चाहते हैं? टिकट नहीं मिलने पर, वही पार्टी जहर लगने लगती है, जिसके नाम पर पिछले वर्षों में बड़ी बड़ी सल्तनतें खड़ी की हैं। यदि राजनीति सेवा है तो क्या एक ही परिवार ने सेवा का ठेका ले रखा है? ऐसे समय आम नागरिक का भी तो हक्क है कि वोह उम्मीदवार को पूछे कि ऐसे कौन से कारण हैं,कि अपनी मत्त का दान उसे किया जाए? पहले से सत्तारूढ़ रहे उम्मीदवार को क्या अपना रिपोर्ट कार्ड जनता के बीच लेकर नहीं आना चाहिए? ऐसे कई प्रश्नों के उत्तर अब वोटर चाहने लगा है।

यदि दूसरे पृष्ठ की बात करें तो जब कार्यकर्ताओं के ऊपर ऐसे दलवदलू को ठोंसा जाता है,जिनका सारी उम्र उससे ईंट कुत्ते का बैर रहा है तो दिलों का मिलन इतना भी आसान नहीं होता है। टूटी रस्सी को जोडऩे पर गांठ न पड़े,यह कैसे हो सकता है? फिर यही गांठें विकास के रास्ते पर रोड़ा बन जाती हैं। जो कुछ पिछले दिनों देखने, सुनने को मिला, उसे गंभीरता से न लिया गया तो यह भविष्य में एक नासुर बन सकता है। न्यायालय के कार्यों में हस्तक्षेप, न्यायालय द्वारा भेजे गए सम्मनों की प्रवाह न करना अच्छा नहीं कहा जा सकता है।

ईमानदारी से की गई कमाई की पड़ताल करवाने में क्या मुश्किल हो सकती है? जनमानस के मन की बात को कोई सुनने को तैयार ही नहीं है। राकेश भार्गव ने कहा कि मेरी प्रधानमंत्री जी से करबद्ध प्रार्थना है कि वोह अपने कार्यक्रम मन की बात में यदि यह कह दें कि पांच बर्ष के बाद सभी एम पी,एम एल ए की प्रापर्टी आम लोगों में बांट दी जाया करेगी तो फिर देखते हैं कि कितने लोग हैं,जो पार्टियां बदल कर इधर उधर जाते हैं। फिर शायद सच्चमुच्च राजनीति खुद ही सेवा के लिए हाजर हो जाएगी।

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