होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: गुरजीत सोनू। 2 अप्रैल को देश में आंदोलन के नाम पर जो हुआ उसने मानवता को शर्मसार किया है। सभी को अपनी बात रखने का हक है लेकिन उस चक्कर में किसी की जान चली जाए यह बिल्कुल भी ठीक नहीं है। आरक्षण आंदोलनों की आढ़ में हर बार न जाने कितने ही बेकसूर मारे जाते हैं।
अब इस आंदोलन के विरोध में सामान्य वर्ग की ओर से 10 अप्रैल को सोशन मीडिया पर आंदोलन का आह्वान किया गया है जिससे स्थिति और भी भयावह हो जाएगी। समझ से परे हैं कि विकासशील देश के लोग अब किस दिशा में आगे जा रहे हैं। कहीं न कहीं यह हमारे शूरवीर सैनिकों की शहादत का अपमान है जिन्होंने देश की अंखडता के लिए अपने प्राणों की आहूति दे दी और आज उसी देश के लोग अपने जातिगत मसलों के लिए अपने ही लोगों की जान ले रहे हैं।
-आंदोलन की आढ़ में हिंसा को बढ़ावा न दे संगठन
जारी प्रैस विज्ञप्ति में एक ईंट शहीद के नाम अभियान के संयोजक संजीवन राणा ने कहा कि वे 10 अप्रैल को भारत बंद के आह्वान का भी सर्मथन नहीं करते क्योंकि इस तरह के आंदलनों से जातिगत हिंसा ही भडक़ती है। श्री राणा ने कहा कि मेरे ख्याल में ज्यादातर आंदोलनकारियों ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले को भी सही ढंग से नहीं पढ़ा है। माननीय अदालत ने किसी के हक को नहीं मारा बल्कि किसी कानून की आढ़ में कुछ गलत न हो उस सिस्टम को सुधारने पर अपना फैसला रखा है।
– शहीदों के सम्मान में बढ़चढ़ कर आगे आएं सब लोग
समाज में हर वर्ग को उसका बनता हक मिलना चाहिए लेकिन शायद हम यह भूल जाते हैं कि हम देश के नागरिक भी है और इस जिम्मेदारी को शायद अभी कोई नहीं निभाना चाह रहा। आंदोलन की आढ़ में जो हजारों करोड़ों की संपत्ति हमने जलाई है वह भी हमारी ही है और हम अपने ही घर में आग लगा कर रोशनी करना चाह रहे हैं , यह कहां की समझदारी है। श्री राणा ने कहा कि सीमा पर व सीमा के अंदर देश के जवान अपनी जान की बाजी लगा कर हमारी रक्षा के लिए खड़े रहते हैं लेकिन उनकी शहादत पर हम श्रद्धांजलि देने तक नहीं जाते।
हाल ही में कुछ दिन पहले सीमा पर जवानों ने शहादत देकर देश की सीमा की रक्षा की लेकिन कितने लोग उन जवानों के संस्कार व उन्हें श्रद्धांजलि देने पहुंचे। यह सवाल अपने आप से पूछना जरुरी है क्योंकि अपने जातिगत मुद्दों को लेकर हम इतने गुस्साए हुए हैं कि हम देश के बारे में सोचना ही बंद कर देते है। इस लिए इन मुद्दों ने उठकर राष्ट्र विकास कैसे हो इस पर सोचना चाहिए। हक के लिए आंदोलन भी जरुरी है लेकिन शांतिप्रिय ढंग से।