बदल गया राज्यसभा का गणित, कांग्रेस में खलबली, क्या पास होगा GST?

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नई दिल्ली। पांच राज्यों में हाल ही संपन्न हुई विधानसभा चुनावों के नतीजों में मिली करारी शिकस्त के बाद कांग्रेस को राज्यसभा चुनाव में भी झटका लगा है। एनडीए की ताकत लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में भी लगातार बढ़ती जा रही है, जबकि यूपीए की स्थिति दोनों सदनों में कमजोर होती जा रही है। शनिवार को संपन्न हुए राज्यसभा चुनाव का असर सिर्फ संसद के ऊपरी सदन में ही नहीं बल्कि राष्ट्रीय राजनीति में देखने को मिलेगा।

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राज्यसभा में हर मुद्दे पर अब तक एक तरह से अपनी वीटो पॉवर का इस्तेमाल कर अड़ंगा डाल रही कांग्रेस अब बैकफुट पर आ गई है और ऊपरी सदन में बीजेपी की बढ़ती ताकत से पार्टी के अंदर खलबली मच गई है। जाहिर है इस चुनाव में सभी पार्टियों के लिए कुछ पाने और कुछ खोने जैसी स्थिति रही, लेकिन कुल मिलाकर इसमें बीजेपी ने बाजी मारी और बेहतर रणनीति का परिचय दिया। आइए देखते हैं इस परिणाम से राष्ट्रीय राजनीति पर क्या होगा असर….

क्या रहा राज्यसभा का चुनावी परिणाम- इस चुनाव में खाली हुई 57 सीटों पर चुनाव हुए हैं जिसमें पहले कांग्रेस और बीजेपी के पास 14-14 सीटें थी।  जबकि सपा की 7, जेडीयू की 5, बीजेडी और एआईएडीएमके की 3-3, बसपा, डीएमके, एनसीपी और टीडीपी की 2-2 और वाइएसआर कांग्रेस,शिवसेना और शिरोमणि अकाली दल की 1-1 सीटें थी। इन 57 सीटों में से 8 राज्यों से 30 सदस्य निर्विरोध चुने गए और 7 राज्यों की 27 सीटों पर चुनाव हुआ, जिसमें बीजेपी ने 11, कांग्रेस ने 6, सपा ने 7, बसपा ने 2 और निर्दलीय ने 1 सीट पर कब्जा किया।

इस चुनाव में राजस्थान की चारों सीटें बीजेपी ने जीत ली, जबकि यूपी में 11 सीटों पर हुई वोटिंग में7 सपा, 2 बीएसपी और 1-1 कांग्रेस और बीजेपी के खाते में गई। झारखंड में बीजेपी दोनों सीटें जीतने में सफल रही। एमपी में भी बीजेपी तीन में से दो ही सीट जीत पाई और कांग्रेस के विवेक तन्खा राज्यसभा पहुंच गए। हरियाणा में उलटफेर के तहत एक सीट बीजेपी के खाते में गई तो दूसरी सीट पर बीजेपी के सपोर्ट से खड़े हुए सुभाष चंद्रा कांग्रेस में फूट का फायदा उठा कर जीत गए।

राज्यसभा की मौजूदा स्थिति

इस समय एनडीए के पास 72 सीटें, यूपीए के पास 66 सीटें और अन्य क्षेत्रीय दलों के पास 107 सीटें है। चुनाव से पहले राज्यसभा में बीजेपी के कुल 49 सदस्य थे और चुनाव के बाद उसे चार सीटों का फायदा हुआ है। यानी अब उसकी खुद की ताकत 53 सीटों की हो चुकी है। वहीं, कांग्रेस के 61 सांसद हैं। उपरी सदन में क्षेत्रीय दलों के 89 सदस्य हो गए हैं। चुनाव के बाद उनकी संख्या में कोई परिवर्तन नहीं आया है। चार सीटों के फायदे के साथ समाजवादी पार्टी के अब 19 सदस्य हो गए हैं जबकि जेडीयू और आरजेडी के संयुक्त सदस्यों की संख्या 12 हो गई है। तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक के सदस्यों की संख्या 12-12 हो गई है जबकि बीएसपी के 6 सदस्य, सीपीआई (एम) के आठ सदस्य, बीजेडी के 7 सदस्य और डीएमके के 5 सदस्य हैं।

चुनाव से किसको कितना फायदा?

संसद के ऊपरी सदन में पहली बार बीजेपी ने 50 का आंकड़ा पार किया है और कांग्रेस पहली बार 60 सीटों पर सिमट गई है। राज्यसभा में खाली हुई 57 में से 14सीटें बीजेपी के पास थीं और चुनाव के बाद 17 सीटें पार्टी के खाते में आ गई। यही नहीं हरियाणा से सुभाष चंद्रा भी बीजेपी के समर्थन से जीते और उन्हें शामिल करने के बाद बीजेपी को इस बार 4 सीटों का फायदा हुआ।

जहां तक कांग्रेस की बात है तो खाली हुई सीटों में 14 सीटें उसके पास थीं, लेकिन चुनाव के बाद उसे सिर्फ 9 सीटें ही मिलीं। 5 सीटें गंवाने के बाद भी कांग्रेस राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी है। हालांकि मॉनसून सत्र में बीजेपी की ओर से राज्यसभा में आक्रामक रणनीति अपनाने के बाद कांग्रेस ने खासकर चिदंबरम और कपिल सिब्बल को राज्यसभा में भेजा है और इससे पार्टी को अपनी बात रखने में सुविधा होगी। सुब्रमण्यन स्वामी के आने के बाद राज्यसभा का समीकरण बदलने लगा था।

जहां तक गठबंधन की बात करें तो बीजेपी की सहयोगी पार्टियां शिवसेना, अकाली दल, पीडीपी, टीडीपी,  आरपीआई, बोडोलैंड पीपल्स फ्रंट, नागालैंड पीपल्स फ्रंट, और सिक्किम डेमोक्रेटिक फ्रंट को मिलाकर एनडीए के पास राज्यसभा में 72 सीटें हैं, लेकिन यूपीए के पास इस सदन में डीएमके, केरल कांग्रेस और मुस्लिम लीग की सीटें जोड़कर कुल 66 सीटें ही बनती हैं। इस चुनाव में 4 सीटों के फायदे के साथ सपा भी सदन की तीसरी सबसे बड़ी पार्टी बन गई है और उसके पास राज्यसभा में 19सीटें हो चुकी है जबकि मायावती की बसपा ने चुनाव में 4 सीटें गंवा दी।

क्यों विवादों में रहा राज्यसभा चुनाव?

57 सीटों का यह राज्यसभा चुनाव काफी विवादों में भी घिरा रहा। सबसे अधिक विवाद कर्नाटक में कैश फॉर वोट स्टिंग को लेकर रहा तो दूसरी तरफ हरियाणा के उलटफेर ने भी कांग्रेस की नींद उड़ा दी। हालांकि तमाम सवालों के बीच भी चुनाव रद्द नहीं हुए लेकिन मामले के सामने आने से एक बार फिर इस चुनाव पर सवाल उठे। हरियाणा में जहां कांग्रेस के विधायकों ने बगावत की तो यूपी में सपा के बागी नेता गुड्डू पंडि‍त ने आरोप लगाया कि‍ सपा नेता पवन पांडेय ने बैलेट छीनने की कोशि‍श की तो बीजेपी के कई नेताओं ने कहा कि‍ उन्‍हें वोट देने से रोकने की कोशि‍श हुई।

राज्यसभा में लटके विधेयकों का क्या होगा?

जहां तक राज्यसभा की बात है तो बीजेपी अभी भी इस सदन में अल्पमत में है।  जाहिर है संवैधानिक और बहुचर्चित जीएसटी बिल को पास कराना आसान नहीं है। लेकिन बीजेपी का हौसला जरूर बढ़ा है। इसे पास कराने के लिए 245 सदस्यीय सदन में दो-तिहाई वोट यानी कम से कम 164 सीटें चाहिए।

सदन की दो सबसे बड़ी पार्टियां कांग्रेस और बीजेपी के सदस्यों को मिलाकर भी यह आधे से कम है। किसी भी बिल को पास करने का समीकरण दूसरे दलों के पक्ष में हैं। सपा (19), एडीएमके (13), जेडीयू (10), टीएमसी (12) और बसपा (6)  के पास ही 60 सीटें हैं। इसके लिए बीजेपी को इन क्षेत्रीय पार्टियों के सहयोग की जरूरत होगी और ऐसे में ये पार्टियां किंगमेकर की भूमिका निभा सकती है। ये पांचों एनडीए और कांग्रेस की अगुआई वाले यूपीए में भी शामिल नहीं हैं। यहां बीजेपी को कांग्रेस की कमजोरी का फायदा मिल सकता है।

राज्यसभा में जीएसटी बिल पास करवाने के लिए जूझ रही केंद्र सरकार राहत की सांस ले सकती है। ममता बनर्जी पहले ही जीएसटी को लेकर सरकार का समर्थन करने की बात कह चुकी हैं। जीएसटी पर बीजेपी को मायावती और जयललिता का साथ भी सरकार को मिल सकता है। जयललिता और बसपा को लेकर यही कयास लगाए जा रहे हैं कि वह सीधे तौर पर सरकार का समर्थन नहीं भी करेंगी तो वोटिंग के दौरान वॉकआउट कर सकती हैं।

जीएसटी के मुद्दे पर बीजेपी को इन समर्थनों के अलावा उसे सात नॉमिनेटेड, अकाली दल के तीन, टीडीपी के छह, 5 निर्दलीय के अलावा, कई छोटे-छोटे दलों का समर्थन मिल सकता है। यही नहीं, नीतीश कुमार भी जीएसटी बिल को पारित करवाने में सरकार का मददगार बन सकते हैं। राज्यसभा में जेडीयू के 13 सांसद हैं।

courtesy: IBN7

http://khabar.ibnlive.com/news/desh/rajyasbha-election-489584.html

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