होशियारपुर, 31 अगस्त: दिव्य ज्योति जागृति संस्थान के गौतम नगर आश्रम में धार्मिक कार्यक्रम करवाया गया। अपने प्रवचनों में श्री आशुतोष महाराज जी कि शिष्या साध्वी श्वेता भारती जी ने कहा कि आधुनिक प्रवृति के लोगों के लिए अध्यात्म एक कठिन विषय है, क्योंकि उनकी शिक्षा भौतिक विज्ञान के आधार पर हुई है। वे कोरे तर्क, विश्लेषण तथा कार्य-करण पर भरोसा करते हैं। इसलिए कभी-कभी अध्यात्म से वंचित रह जाते हंै। वास्तव में अध्यात्म है क्या। अध्यात्म से तात्पर्य स्वआत्मा का अनुभव करना, जोकि ईश्वरीय स्वरूप ही है। अध्यात्म हमारे सबसे निकट मूल्यों का आधार है। हमारी आस्था और श्रद्धा का अधिष्ठान है। यह जीवन को प्रयोजन और अर्थ देता है। जैसे-जैसे यह हमारे अन्दर विकसित होता है, हमें प्रज्ञा एवं प्रेम से भर देता है। हम दिव्यत्म के प्रति गहरे आदर से भर जाते हैं। जब हमारा अध्यात्म-ज्ञान विकसित एवं स्फू र्त हो जाता है, तो हम सभी प्राणियों तथा स्वयं परमात्मा से संयुक्त हो जाते हैं। हमारा हृदय सभी के प्रति दयाभाव से भर जाता है। अध्यात्म भौतिक जगत के प्रमाणों से परे है। ईश्वर का कोई स्थूल प्रमाण नही दे सकता है। लेकिन ईश्वर को प्रत्यक्ष अनुभव किया जा सकता है। अध्यात्म सभी सम्प्रदायों से भिन्न है। यद्यपि ये एक दूसरे से सम्बन्धित हैं, लेकिन एक नहीं हैं। किसी कौम या संप्रदाय का सदस्य बने बिना भी एक व्यक्ति अध्यात्म का अनुभव कर सकता है। संप्रदायों के बोझिाल नियमों के कारण आज लोग शुद्ध अध्यात्म के आनन्द से वंचित रह जाते हैं। अत: किसी ने सही ही कहा है कि संप्रदाय जब संकीर्ण मतों पर भोर डालता है, तो वह अपने अनुयायियों को ईश्वर से जुङने के भाव से ही वंचित कर देता है। इसलिए सच्चा धर्म, सच्चा संप्रदाय वही है जो हमारे भीतर शुद्ध आध्यात्मिकता को विकसित करे। हमें हमारे वास्तविक लक्ष्य ईश्वर का साक्षात्कार कराए। हमारे धार्मिक ग्रंथों के अनुसार अध्यात्म एक इंसान के जीवन में श्रोत्रिय ब्रह्मनिष्ठ सतगुरू की कृपा से ही उतर पाता है। पूर्ण सतगुरू ही ईश्वर का दर्शन करवाने की सामथ्र्य रखता है।