रिपोर्ट: विकास स्टैलर
होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। जेम्स कैंब्रिज स्कूल और महिंद्रा पिकअप में हुई टक्कर की घटना ने आज पूरे जिले को हिलाकर रख दिया और हर कोई इसे लेकर दुखी था। परन्तु कुछ ऐसे लोग भी थे जो इस हादसे में भी अपना ही फायदा देख रहे थे ताकि उनके द्वारा बरती जाने वाली लापरवाही से वे बच जाएं। बच्चों से मोटी फीस वसूलने वाले अधिकतर प्राइवेट स्कूल सुविधाओं के नाम पर बच्चों के अभिभावकों से मोटी फीसें वसूलने वाले स्कूल बच्चों की सुरक्षा को गंभीरता से लेना जरुरी नहीं समझते। कुछ ऐसा ही आज के हुए हादसे में देखने को मिला। हालांकि उक्त स्कूल की बसों में नियमों का पालन किया जाता है, परन्तु फिर भी हादसा अपने पीछे कई सवाल छोड़ गया है। हादसों के बाद प्रशासन और स्कूल प्रबंधकों को याद आती हैं बच्चों की सुरक्षा की, परन्तु बच्चों की सुरक्षा को लेकर माननीय न्यायालय के आदेशों के बावजूद स्कूली वाहनों को तय नियमों के तहत चलाया जाना जरुरी नहीं समझा जा रहा। जानकारी मिली है कि आज के हादसे की जांच में यह बात भी सामने आई है कि जहां विपरीत दिशा से आ रही गाड़ी काफी तेज़ थी वहीं बस चालक द्वारा बस को नियंत्रण करने की कोशिशों के बावजूद वाहनों में टक्कर हो गई। भले ही इसमें बस चालक की गलती कम आंकी जा रही है, परन्तु यहां तेज रफ्तार ने चार घरों के चिराग बुझा दिए। जिसकी जिम्मेदारी किसकी है यह सवाल एक पहेली की तरह खड़ा सबके दीमाग में घूम रहा है।
अकसर देखा गया है कि स्कूल पहुंचने की जल्दी भी हादसे के पीछे का कारण बनाती हैं। अधिकतर स्कूल प्रबंधक अपनी गल्ती मानने और तय मानकों के तहत स्कूल बसों का प्रबंध करने का प्रयास नहीं करते और हादसा होने पर मौके पर पहुंचे मीडिया कर्मियों को अपनी सफाईयां देनी शुरु कर देते हैं। यहां तक भी कह दिया जाता है कि उनकी बस तो धीमी थी, गलती दूसरी गाड़ी वाले की होगी। जबकि कई हादसों में बस चालक की जलदी और तेज रफ्तारी हादसे का कारण बनती है।
हमारे संवाददाता अनुसार दसूहा से होशियारपुर के शिवम अस्पताल में लाए गए बच्चों को देखने के लिए जेम्स कैंब्रिज इंटरनैशनल स्कूल के प्रबंधक सजीव वासल जब अस्पताल पहुंचे तो पहले तो वे मीडिया के सवालों से बचते रहे। मगर, पत्रकारों द्वारा जब उनका पक्ष जाना गया तो पहले तो वह यही कहते रहे कि उनकी बस धीमी थी लिखना और दूसरा वाहन तेज़ था यही लिखना, उनके खिलाफ न लिखना। सवालों का जवाब देते हुए उन्होंने घटना पर दुख व्यक्त किया। ऑफ द रिकार्ड वे एक ही बात बार-बार कहते रहे कि यह मत लिखना कि बस तेज़ थी? यहां पर एक बात सभी को परेशान कर रही थी कि अगर उक्त स्कूल की बसों में नियमों का पालन किया गया है तो फिर वे यह क्यों कह रहे थे। जिसे लेकर कई तरह के सवाल खड़े होते हैं। वे ऐसा क्यों कह रहे थे ये तो वे ही जानें। इतना ही नहीं उनकी बातों से ऐसा भी लग रहा था जैसे वे मीडिया कर्मियों को उनकी ड्यूटी क्या लिखना है क्या नहीं इसकी हिदायतें जारी कर रहे हों।
अभिभावकों को सुविधाओं के नाम पर आर्थिक शोषण का शिकार बनाने वाले लगभग अधिकतर प्राइवेट स्कूलों का यही हाल है। उनके लिए बच्चों के अभिभावकों की जेब अधिक महत्वपूर्ण है, बच्चों की सुरक्षा नहीं।
स्कूल प्रबंधक बच्चों से सुविधाओं के नाम पर पाई-पाई वसूलना तो जानते हैं पर उनकी सुरक्षा को लेकर ठोस प्रबंधों के कन्नी कतराते हैं। इतना ही नहीं सडक़ों पर बेलगाम रफ्तार से दौड़ती स्कूल बसों की रफ्तार पर लगाम लगाने के लिए न तो प्रशासन गंभीर दिखाई देता है और न ही स्कूल प्रबंधकों ने कभी ऐसा प्रयास किया होगा, जिससे हादसों पर अंकुश लगाया जा सके। सभी एक-दूसरे पर जिम्मेदारी डाल अपनी फर्ज की इतिश्री करके अपना पिंड छुड़ा लेते हैं। जिसका खामियाजा आए दिन मासूमों को भुगतने को मजबूर होना पड़ रहा है।
शर्मनाक: बस का न लिखना तेज़ थी, दूसरी गाड़ी तेज थी
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