धैर्य से ही किया जा सकता है कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना: सौरव पंडित

इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि समय और परिस्थितियां हमेशा एक जैसी नहीं होती है। हर व्यक्ति के जीवन में कभी अच्छा समय आता है, तो कभी बुरे दौर से उसे गुजरना पड़ता है, लेकिन ऐसा माना जाता है कि व्यक्ति की पहचान उसके बुरे दौर में ही होती है। ऐसा कहने के पीछे सबसे बड़ा कारण यही है कि जीवन के अच्छे दौर में तो सामान्य से सामान्य व्यक्ति भी सही फैसला करने में सक्षम होता है लेकिन जब स्थिति प्रतिकूल हो, तो उस समय व्यक्ति की सही प्रतिभा का आकलन किया जाता है।

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उक्त बात बुल्लोवाल से समाज सेवी पंडित सौरव ने करते हुए कहा कि प्रतिकूल परिस्थितियों में सही निर्णय लेने वाला व्यक्ति ही सफलता की ओर अग्रसर होता है और जो व्यक्ति ऐसे समय में अपने को नहीं संभाल पाता उसे विफलता हाथ लगती है। आखिरकार प्रतिकूल समय में सही निर्णय लेने के लिए सबसे महत्वपूर्ण गुण क्या हो सकता है। कठिन परिस्थितियों के समय व्यक्ति को किसकी सबसे अधिक आवश्यकता होती है।

अगर गंभीरता से विचार करें तो प्रतिकूल परिस्थितियों में व्यक्ति के अंदर सबसे पहले घबराहट उत्पन्न होता है और उस घबराहट में उसे अजीबो गरीब ख्याल आते हैं, उसकी उम्मीदें कमजोर पड़ती जाती है, उसका धैर्य जवाब देने लगता है और ऐसी स्थिति में वह जो भी निर्णय लेता है, उसमें से अधिकांश गलत साबित होते हैं। इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है प्रतिकूल समय में धैर्य को बनाए रखना। धैर्य से ही कठिन से कठिन चुनौतियों का सामना किया जा सकता है। जिस व्यक्ति के पास धैर्य नहीं, वह छोटी से छोटी समस्याओं का सामना भी सही तरीके से नहीं कर पाता है।

आप इसके लिए अपने आसपास घटी अनेकों छोटी-छोटी घटनाओं का उदाहरण ले सकते हैं। पूरी दुनियां में होने वाली सडक़ दुर्घटनाओं में अधिकांश दुर्घटनाएं धैर्य के अभाव के कारण होती है। सडक़ पार करने के समय धैर्य के अभाव में लोग बिना दोनों तरफ देखे हुए जल्दबाजी में सडक़ पार करने का फैसला ले लेते हैं और उनमें से कई लोग सडक़ पार भी कर जाते हैं लेकिन कभी-कभी इसी दौरान कोई गाड़ी से टक्कर हो जाती है और फिर जान तक गंवानी पड़ती है। इसमें संयोग आपके साथ हो भी सकता है और आपके विपरीत भी लेकिन अगर आप धैर्य के साथ सही समय का इंतजार करते हैं और पूरी तरह से आश्वस्त होने के बाद सडक़ पार करने का निर्णय लेते हैं, तो दुर्घटना की संभावना न के बराबर होती है।

कुछ इसी तरह जब आप स्कूल, कॉलेज या फिर किसी भी प्रतियोगिता परीक्षा की तैयारी करते हैं और परीक्षा का समय नजदीक होता है, तो आपके अंदर एक घबराहट उत्पन्न हो जाती है। जैसे-जैसे परीक्षा का समय नजदीक होता है, यह घबराहट तेज होती जाती है। जिन लोगों के पास धैर्य नहीं होता, वे ऐसे समय में पूरी सिलेबस को फिर से पढऩे और जल्दी-जल्दी पढऩे की कोशिश करते हैं। ऐसे में उनके हाथ कुछ नहीं लगता है। लेकिन, जिन लोगों के पास धैर्य होता है, वे शांति के साथ इसके ऊपर विचार करते हैं और फिर उन्हीं सामग्री को गंभीरता से पढऩे की कोशिश करते हैं, जिसके ऊपर उन्हें संशय होता है। ऐसा करके परीक्षा के आसपास के समय का भी वे सदुपयोग कर लेते हैं और यह धैर्य उन्हें सफल बनाने में सहयोगी बन जाता है।

उदाहरण के तौर पर अगर कोई भी व्यक्ति आपको किसी कार्य को करने के लिए उकसाता है और आप उस उकसावे में आकर उसके मुताबिक निर्णय ले लेते हैं, तो यह आपकी कमजोरी को प्रदॢशत करता है और साथ हीं आपके लिए कठिनाइयां पैदा करता है। ऐसे में धैर्यशील व्यक्ति किसी के उकसावे को समझने की कोशिश करता है, थोड़ा ठहरता है और उसके बाद प्रतिक्रिया करता है। धैर्यवान व्यक्ति ही जिंदगी में सफल व्यक्ति कहलाता है।

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