हम नहीं सुधरेंगे: भार ढोने वाली गाडिय़ों में ढोया जा रहा देश का भविष्य

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होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़), रिपोर्ट: संदीप डोगरा: कुछ समय पहले 15 अगस्त 2017 के समीप द स्टैलर न्यूज़ ने भेड़-बकरियों की तरह लाद कर ले जाई जा रही स्कूली छात्रों संबंधी “शर्मनाक: ये भेड़-बकरियां नहीं हमारी “बेटियां” हैं साहिब” नामक शीर्षक से समाचार प्रकाशित किया था। उस समाचार में बताया गया था कि किस प्रकार स्कूल प्रबंधक एवं अधिकारी बच्चों की सुरक्षा को लेकर उदासीन हैं और उनकी उदासीनता बच्चों के भविष्य के साथ कितना बड़ा खिलवाड़ है।

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वैसे तो पुलिस वाले जगह-जगह नाके लगाकर ट्रैफिक नियमों की धज्जियां उड़ाने वालों के चालान काटते दिख जाएंगे, मगर क्या जब बच्चों की सुरक्षा को ताक पर रख कर भार ढोने वाली गाडिय़ों में बच्चों को ले जाया जाता है तो क्या पुलिस की आंखों पर पट्टी बंध जाती है या फिर भी वे जानबूझ कर ऐसे करने वालों पर कार्रवाई नहीं करना चाहती। ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब शायद किसी के पास नहीं तथा इस बारे में जब भी अधिकारियों से बात की जाए तो उनका एक ही रटा रटाया जवाब होता है कि इस संबंधी जांच की जाएगी तथा बच्चों की सुरक्षा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाएगा और इसके लिए जरुरी कदम उठाए जाएंगे। मगर, ये बात भी समझ से परे है कि आखिर वे जरुरी कदम क्या हैं और कब उठाए जाएंगे।

आए दिन होने वाले हादसों से भी सबक लेना जरुरी नहीं समझते प्रशासनिक और शिक्षा अधिकारी – खेल मुकाबलों के नाम पर खानापूर्ति से अधिक कुछ नहीं कर रहा शिक्षा विभाग

शिक्षा विभाग की तरफ से इन दिनों खेल मुकाबले करवाए जा रहे हैं तथा दूर-दराज के स्कूलों से बच्चे खेल मुकाबलों में भाग लेने के लिए एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंच रहे हैं। हैरानी की बात ये है कि बच्चों की सुरक्षा को ताक पर रखकर किस उन्हें भार ढोने वाली गाडिय़ों में आलू-गोभी एवं भेड़-बकरियों व जानवरों की तरह लाद कर खेल मैदानों तक पहुंचाया जा रहा है को लेकर किसी ने भी जरुरी कदम उठाने जरुरी नहीं समझे। जिसके चलते देश का भविष्य जोखिम भरा सफर करने को मजबूर हो रहा है।
कहने को तो बच्चे देश का भविष्य हैं तथा देश के भविष्य के साथ ऐसा खिलवाड़ करने वाले स्कूल प्रबंधकों और जिला अधिकारियों के खिलाफ कार्रवाई बनती है, जो खेलों के नाम पर खानापूर्ति करके अपने फर्ज की इतिश्री करने में लगे हैं।

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अकसर देखा गया है कि अगर कोई सरकारी रैली हो तो प्रशासन द्वारा बगार पर बसों को हायर किया जाता है तथा जानकारी अनुसार बसों को केवल डीजल खर्च ही दिया जाता है। मगर जब भी बच्चों की बात आती है तो स्कूल प्रबंधक तथा जिला अधिकारी फंड होने की बात कहकर जैसे-तैसे प्रबंध करके बच्चों को भेजा जाता है की बात कहकर पल्ला झाड़ लेते हैं। क्या खेल मुकाबलों के लिए बसें हायर नहीं की जा सकती या फिर क्या और किसी सुरक्षित वाहन में बच्चों को खेल के मैदान तक लाया जाना जरुरी नहीं। सूत्रों से पता चला है कि विभाग के पास फंड भी आते हैं और वे बच्चों को लाने-ले जाने के लिए सुरक्षित प्रबंध भी किए जा सकते हैं, परन्तु अधिकारी वर्ग तथा खेल मुकाबलों के आयोजक और स्कूल प्रबंधक इसे लेकर संजीदगी दिखाना जरुरी नहीं समझते।

इतना ही नहीं बच्चों की रिफ्रैशमैंट एवं पीने के पानी का भी उचित प्रबंध किया जाना जरुरी नहीं समझा जाता। इसके अलावा खेल मुकाबलों के दौरान खेल नियमों की पालना भी जरुरी नहीं समझती जाती। जिसके चलते खेल देखने पहुंचे खेल प्रेमियों को खासी निराशा का सामना करना पड़ता है। अभी एक दिन पहले ही होशियारपुर की रेलवे मंडी खेल मैदान में क्रिकेट के मुकाबले करवाए जा रहे थे तथा इस दौरान न तो प्रशिक्षित अम्पायर की व्यवस्था थी तथा न ही नियमों की पालना की जा रही थी।

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इसके अलावा दो-दो लैग अम्पायर, अम्पायरी करते दिखे। इसके अलावा स्कोरर का भी रब्ब ही राखा था, उसे ये ही पता नहीं चल रहा था कि स्कोरिंग कैसे की जाती है तथा थर्ड अम्पायर की तो बात ही न पूछें। खेल मैदान में चल रहे 8-8 ओवरों के मैच को देख ये आभास आसानी से हो रहा था कि ये मैच नहीं फारमैलिटी हो रही है। इसके अलावा कुछेक अन्य खेल मुकाबलों को भी यही हाल था। अगर थोड़ी बहुत कहीं व्यवस्था दिखी तो वे हॉकी के खेल मैदान में देखने को मिल रही थी।

द स्टैलर न्यूज़ की टीम जिलाधीश से मांग करती है कि वे खेल मुकाबलों संबंधी बरती जा रही उदासीनता और लापरवाही की जांच करवाएं और संबंधित अधिकारियों तथा खेल आयोजन कमेटी के खिलाफ कड़ी से कड़ी कार्रवाई करते हुए बच्चों की सुरक्षा, खेल दौरान खेल नियमों का सख्ती से पालन तथा निष्पक्ष खेल करवाने संबंधी कड़े निर्देश जारी करें।

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