अध्यात्म भारतीय मस्तिष्क को समझने की कुंजी: साध्वी सुश्री वसुधा भारती

होशियारपुर(द स्टैलर न्यूज़)। दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान आश्रम गौतम नगर होशियारपुर में प्रवचन करते हुए साध्वी सुश्री वसुधा भारती जी ने बताया की भारतीय संस्कृति ही विश्व की प्राचीनतम संस्कृति है। जहा समय की तेज धारयो में यूनान, रोम, सीरिया, बेबीलोन आदि संस्कृति बिखर कर अपना अस्तित्व खो बैठी, वही भारतीय संस्कृति ही ऐसी संस्कृति है जो इन हवाओ के सामने अडिग चट्टान के सामान खड़ी रही। एक समय भारत ने ऐसे युग को देखा व जिया, जब प्रत्येक कर्म में धर्म झलकता था, मनु स्मिर्ती के यह कथन भी सच हो गया था की विश्व के सभी भागो से जिज्ञासु लोग ज्ञान की खोज में भारत आएंगे। देश के महान साहित्य एवं संस्कृति से नैतिक और चरित्र का पथ सीखेंगे। निसंदेह ऐसा हुआ अनेकाएक विदेशियो के जिज्ञासु के कदम इस महान सांस्कृतिक भूमि की और बढ आये यहां उनको समस्त आत्मिक जिगासाओं के समाधान मिले।

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इसीलिए उन्होंने भारत को ज्ञान, संस्कृति, सत्य, नैतिकता, समृद्ध आदि का असीम घोषित किया। इतना ही नहीं सोने की चिडिय़ा कहलाने वाले भारत के व्यपारियो तक एक ईमान की सौगंध खाई जाती थी। उपनिषद में भारतीय सम्राट अश्व्पति कैकय कहा करते है- मेरे राज्य में कोई चोर नहीं है। इस समय भारत ने जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी प्रकाष्ठ को प्राप्त किया था, काव्य प्रतिभा, अद्भुत लेखन शैली, वैज्ञानिक अविष्कार, राजनीति क्षेत्र, आर्थिक क्षेत्र, आयुर्विज्ञान, ज्योतिविज्ञान जैसी विद्याये. ये सभी प्रमाणित करते है की प्रतान कल में भारत सामजिक, वैज्ञानिक, दार्शनिक, आर्थिक आदि सभी क्षेत्रों में पूर्ण विकसित एव समृद्ध था। क्या था ठोस आधार जिस कारण भारत में विकास की ऐसी अपुपम धरा बिखरी यह आधार था अध्यात्म! अध्यात्म ही हमारी संस्कृति का जीवन और प्राण रहा है। भारत के नाम स्वय ही इसमें रची बसी हमारी आध्यातिमक का परिचायक है भा अर्थात प्रकाश, रत अर्थात लीन! वह देश जहा के निवासी सदा परमात्मा प्रकाश में लीन रहते है, तो अंत में साध्वी जी ने कहा की हम अपनी संस्कृति को पहचाने और इसे अपनाये। इस अवसर पर भारी मात्रा में श्रद्धालूगण मौजूद थे।

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