वृद्धाश्रम में रुलता बुढ़ापा हमारी नैतिकता पर प्रश्न: नरेश पंडित

कपूरथला (द स्टैलर न्यूज़) गौरव मढ़िया। तीन रंग नहीं लहबने बीबा-हुस्न, जवानी और मापे के शब्द के अनुसार इन तीनो में मापे शब्द मां और पिता के मेल से बना है। यह अटल सत्य है कि दुनिया में हर चीज की कीमत हो सकती है,लेकिन माता-पिता एक ऐसी अनमोल चीज है जिसकी कीमत खुद को बेचकर भी पूरी दुनिया से नहीं खरीदी जा सकती।आज के विज्ञान के युग में देश में वृद्धाश्रमों का लगातार बढ़ना हमारे समाज के लिए चिंता का विषय है।यह विचार सोमवार को मंदिर धर्म सभा में आयोजित बजरंग दल की बैठक को संबोधित करते हुए बजरंग दल के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेश पंडित ने व्यक्त किए। नरेश पंडित ने कहा कि आज की भागदौड़ भरी जिंदगी में हर कोई पैसा कमाने की चाहत में अपने बड़ों से दूर होते जा रहे हैं, यही कारण है कि वृद्धाश्रमों की संख्या दिन-ब-दिन बढ़ती जा रही है और इन आश्रमों में रहने वाले वृद्धों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है,जो हमारे लिए चिंता का विषय है।उन्होंने कि आज का समय भयंकर दौर से गुजर रहा है।

आज का मनुष्य न तो अपने कर्तव्य को पहचानने का प्रयास कर रहा है और न ही उसे निभाने का।पुराने बड़े बुजुर्गों के चेहरे देखकर बहुत दुख होता है और बेचारे रोते हुए कहते हैं कि हमारे समय में यानी पुराने समय में लोग अपने माता-पिता का दिल से सम्मान करते थे और अपने माता-पिता की सेवा और सम्मान करना अपना पहला कर्तव्य मानते थे। उनकी सोच थी की माता-पिता की सेवा करनी सच्ची सेवा, सच्चा कर्म-धर्म होता है, लेकिन आज के समय में समाज में रहते हुए अगर हम चारों तरफ नजर दौड़ाएं तो पता चलता है आज के समय में लोग किस तरह अपने माता-पिता के प्रति अपने फरजो और कर्तव्य को भूलते जा रहे हैं।पंडित ने कहा कि अगर माता-पिता अपने बच्चों को उनके कर्तव्यों के बारे में जानकारी देते है तो आगे ये युवा अपने कर्तव्य को पहचानने और उनकी बात सुनने के बजाय उन्हें गालियां देते हैं। यहां तक ​​कि उन्हें पीटते भी हैं। आज के समय में लोग अपने माता-पिता को घर पर अतिरिक्त बोझ समझते हैं। बहुत दुख होता है जब ये युवा अपने माता-पिता और उनके साथ झगड़ा कर उन्हें घर से वृद्धाश्रम का रास्ता दिखा देते हैं और फिर कहते हैं कि हमसे बुजुर्गों की देखभाल नहीं होती,अब हमें अपना काम करे यां इन को संभाले।

बड़े-बड़े महानगरों और शहरों में बने वृद्धाश्रमों में रहने वाले बुजुर्ग लोग,जिनके चेहरे अपने बच्चों द्वारा दिए गए कष्टों के कारण मुरझाए हुए दिखते हैं और अपने बच्चों द्वारा दिए गए कष्टों के बदले में भी ये बुजुर्ग लोग उन्हें दुआएं देते नहीं थकते, क्योंकि बेटा भले ही कपूत बन जाएं, फिर भी माता-पिता उनके लिए प्रार्थना करते हैं। पंडित ने कहा कि आज हमे यह गंदी सोच निरंतर गुण की तरह खाती जा रही है। माता-पिता की सेवा करने के स्थान पर हम उन्हें कष्ट दे रहे हैं। कभी-कभी हम सड़कों पर चलते उन अभागी माताओं उन अभागे पिताओं को देखते हैं, जो अपने बच्चों के उत्पीड़न और पीड़ा के कारण ठोकरे खाने को मजबूर है।अगर धर्म के अनुसार देखें तो यह सुनने और पढ़ने को मिलता है कि माता-पिता का एहसान सात जन्म लेकर भी नहीं चुकाया जा सकता। हम अपने माता-पिता को बोझ समझकर घर से बाहर निकाल रहे है, कभी उन लोगों से पूछें और देखें जिन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया है। जो लोग ऐसा करते हैं उन्हें एक बात याद रखनी चाहिए कि आप जो बोएंगे,कल वही काटेंगे जो आप अपने माता-पिता के साथ कर रहे हैं, कल आप की औलाद आपके साथ भी ऐसा जरूर करेगी सोचो समय दूर नहीं है। इस अवसर पर बजरंग दल के प्रदेश नेता संजय शर्मा,जिला प्रभारी बावा पंडित,जिला प्रभारी राजकुमार अरोड़ा, जिला उपाध्यक्ष आनंद यादव, विश्व हिंदू परिषद के जिला अध्यक्ष नारायण दास, शहरी प्रधान चंदन शर्मा, उपाध्यक्ष राकेश वर्मा, अनिल वालिया, इशांत मेहरा आदि मौजूद रहे।

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