अमृतसर (द स्टैलर न्यूज़)। पूरे भारत में आज बहुत खुशी का दिन है कि दीवाली के दिन से फसे हुए मजदूर सुरंग से बाहर लाए जा रहे हैं। इसमें देश के वैज्ञानिकों, इंजीनियरों और भारत सरकार की मेहनत का यह फल है कि 41 श्रमिक बाहर आ रहे हैं, लेकिन याद रखना होगा कि गुलामी का स्वर्ग भी आजादी के नर्क से बुरा होता है। याद रखिए जब हम अंग्रेजों के गुलाम थे तब अकाल पड जाए, प्लेग या हैजा फैल जाए, बाढ आ जाए तो लाखों लोग बिना किसी सरकारी सहायता के मर जाते थे। 1897 में महाराष्ट्र में जब अकाल पड़ा तब सरकारी बेरुखी के कारण ही चाफेकर बंधुओं ने अंग्रेजों पर गोली चलाई थी। आज हमारा देश स्वतंत्र है, इसलिए एक एक नागरिक की चिता पूरा देश कर रहा है।
आजादी और गुलामी में यही अंतर होता है, यह सभी देशवासियों को जानना चाहिए, सदा याद रखना चाहिए। जिन लोगों की मेहनत, बुद्धि कौशल और हिम्मत के कारण सुरन में फसे श्रमिक बचाए जा रहे हैं अगर कोई पद्म पुरस्कार या राष्ट्रीय पुरस्कार देना है तो इन लोगों को देना चाहिए, केवल राजनीति करने वालों को और कभी कभी देश के विरुद्ध भी राजनीतिक दुकान चलाने वालों को तो ये पुरस्कार दिए गए। आाज अगर देशवासियों से पूछा जाए कि एक स्वर से कहेंगे कि जिन्होंने सुरंग में फसे मजदूरों को पताल से बाहर निकाला है वही राष्ट्रीय पुरस्कारों के अधिकारी हैं।