कहानी “समय”

अजी आप अपना टिफिन तो लेते जाओ दोपहर को खाना कहां से खाएंगे साक्षी ने अपने पति शेखर को पीछे से आवाज लगाते हुए कहा, अरे साक्षी तुम्हारा पीछे से आवाज लगाना जरुरी था क्या? तुम्हे तो पता है कि मेरा आज दफ्तर में पहला दिन है। ओ..हो आप तो ऐसे कह रहे है जैसे आप पहली बार काम पर जा रहे हो शेखर ने टिफिन लिया और दफ्तर चला गया तथा साक्षी भी अपने कमरे में बिखरा सामान समेटने लगी। शेखर गाड़ी चलाकर दफ्तर जाने लगा। शेखर जिसकी उम्र 35 तक की थी वो अभी-अभी जयपुर में उसका तबादला हुआ था। शेखर वन-विभाग में काम करता था। वह हैड आफ फारेस्ट की पोस्ट में काम करता था वो अभी जयपुर शहर नया था। शेखर गाड़ी चला रहा था कि अचानक उसकी गाड़ी रुक गई उसने जब गाड़ी की जांच की तब उसे कुछ समझ नहीं आया फिर जैसे-तैसे उसने आस-पास के लोगों से पूछकर गाड़ी को गिराज के पास ले गया और वहां के मालिक को गाड़ी दिखाई। दुकानदार ने कहा सर गाड़ी काफी दिनों से बंद थी इस लिए चलते-चलते रुक गई।

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शेखर ने दुकानदार को उसकी बात का जवाब हां में दिया। शेखर ने कहा आप प्लीज गाड़ी को जल्दी ठीक कर देना मेरा दफ्तर में आज पहला दिन है और मैं पहले दिन ही देर से पहुंचा तो बाकी कर्मचारी मेरे बारे में क्या सोचेंगे सर आप फिक्र मत करें मैं खुद आप की गाड़ी ठीक करुगा पर.. पर क्या मुझे लगता है कि शायद एक घंटा गाड़ी ठीक होने को लग जाये। आप कृप्या थोड़ी प्रतीक्षा करे। शेखर खुद को कोसते हुए मन ही मन से बात करता हुआ अरे बाबा- आज का तो दिन ही खराब है चलो जब तक सामने वाली दुकान से एक कप चाय पी लू। शेखर सामने वाली दुकान की ओर जाने लगा। उसने सबसे पहले सडक़ पार की और फिर सडक़ पार करके चाय वाली दुकान के पास पहुंचा। दुकान का नाम बंसी चाय वाला था। दुकान काफी छोटी थी। दुकान के अंदर तकरीबन चार-पांच मेज थए जिसके चारों तरफ कुर्सियां थी।

शेखर ने अपनी लिए एक चाय का कप मंगवाया और दुकान के चारों तरफ देखने लगा। उसने देखा कि दुकान में सिर्फ दो ही लोग है एक चाय बना रहा है और दूसरा बर्तन साफ कर रहा है तथा साफ-सफाई कर रहा है। उसने देखा की चाय के साथ ये लोग समोसे और मीठे में बेसन की छोटी-छोटी दुकडिय़ां दे रहे थे। अचानक उसे ख्याल आया कि वह पहले अपने किसी कर्मचारी को अपने देरी से आने की सूचना दे। फिर उसने अपने किसी कर्मचारी को फोन कर अपने देरी से आने का कारण बताया और फोन बंद कर दिया। अब पीछे से उसे आवाज आई। अरे गोपी टेबल नंबर चार पर एक कप गर्म चाय भेजना। उसने जैसे ही पीछे मुडक़र देखा तो वह हैरान और खुश हुआ। शेखर इससे पहले कुछ बोलता तो लडक़ा शेखर के पास आ गया और बोला अरे साहिब आपने क्यों तकलीफ की मैं अभी चाय भिजवाता हूं। शेखर मुस्कराया और बोला अरे चाय तो मैं पी ही लूंगा। तुम गले तो मिलो पहले मेरे गिरी। गिरिधर ने जैसे ही अपना छोटा नाम सुना क्योंकि उसका पूरा नाम गिरिधर था और गिरी तो उसके दोस्त ही उसे बुलाते थे। खासकर उसका शेखू दोस्त। पर ये साहिब उसे कयों और कैसे जानते है.. .. .. शेष भाग

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