देशभर में पेशेंट एजुकेशन प्रोग्राम चलाएगी आई.एम.ए.: डा. वानखेड़ेकर

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होशियारपुर (द स्टैलर न्यूज़)। मरीजो, उनके तीमारदारों और डाक्टरों के बीच होने वाले अधिकतर विवादों की वजह संवाद की कमी होता है। कम्युनिकेशन गैप की वजह से अकसर मैडिकल एक्सीडेंट (दुर्घटना) और मेडिकल कॉम्प्लिकेशन (जटिलता) को भी लोग मैडिकल नेगलिजेंस (लापरवाही) करार दे देते हैं, जिससे कई तरह की समस्याएं पेश आती हैं। इनसे निपटने के लिए इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आई.एम.ए.) की तरफ से देशभर में पेशेंट एजुकेशन कार्यक्रम चलाया जाएगा ताकि कम्युनिकेशन गैप (संवाद रिक्ती) की वजह से होने वाली समस्याओं से बचा जा सके।

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देशभर में विभिन्न रोगों को उपचार को लेकर गैर प्रशिक्षित लोगों की ओर से इलाज के बड़े-बड़े दावे किए जाने का भी आई.एम.ए. ने कड़ा संज्ञान लिया है और उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए आई.एम.ए. कदम उठा रही है।

यह जानकारी आई.एम.ए. के राष्ट्रीय अध्यक्ष डा. रवि वानखेड़ेकर ने पत्रकारवार्ता में दी। वह यहां आईएमए पंजाब की 70वीं सालाना कांफ्रैंस पिमाकॉन-2018 के उद्घाटनी समारोह में शामिल होने आए थे।

वित्र मंत्री को पत्र लिखकर मांग की कि स्वास्थ्य के लिए आबंटन 3-4 फीसदी हो- स्वास्थ्य के अधिकार को भी मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाना समय की मांग

एक सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि स्वास्थ्य क्षेत्र में बढ़ता कार्पोरेट दखल एक खतरनाक ट्रेंड है क्योंकि इसके चलते आम लोगों से सेहत सेवाएं पहुंच से दूर होती जा रही हंै। उनका कहना था कि कार्पोरेट हेल्थ सेक्टर में बड़े-बड़े सुपर स्पेशिएलिटी अस्पताल बन रहे हैं लेकिन असल में केवल 12 से 15 प्रतिशत मरीजों के ही इस प्रकार की टर्शरी केयर (तृतीयक देखभाल) की जरूरत होती है। मरीजों के लगभग दो तिहाई हिस्से को तो सेकेंडरी और करीब 15-20 प्रतिशत को प्राइमरी हेल्थ फेसिलिटीज़ (प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाओं) की जरूरत रहती है तथा यह सुविधाएं लोगों के करीब के छोटे अस्पतालों व स्वास्थ्य केंद्रों और फैमिली डाक्टर्स ही प्रदान करते हैं।

सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर पूछे गए सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि यह दुखद है कि श्रीलंका और बांग्लादेश जैसे छोटे-छोटे देश तो अपने जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) का 3 फीसदी स्वास्थ्य क्षेत्र में लगा रहे हैं पर हमारे देश में पिछले 70 सालों में स्वास्थ्य के लिए जीडीपी का महज एक-डेढ़ फीसदी ही सरकार आबंटित करती है। देश के प्राइमरी हेल्थ सेक्टर और सरकारी स्वास्थ्य तंत्र को मजबूत बनाने के लिए जरूर है कि इसे बढ़ा कर 3 से 4 फीसदी किया जाए।

उन्होंने कहा कि आईएम ने से इस संबंध में देश के वित्त मंत्री को पत्रभेज कर यह मुद्दा उठाया है। उनका कहना था कि जरूर है कि स्वास्थ्य के अधिकार को भी मौलिक अधिकारों में शामिल किया जाए क्योंकि इससे न सिर्फ लोगों को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं देने के प्रति सरकार की जवाबदेही बढ़ेगी बल्कि स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए अधिक धन के आबंटन में भी सरकार को सहूलियत होगी। इस दौरान उपाध्यक्ष डा. पी.एस. बख्शी, महासचिव डा. आर.के. टंडन, आईएमए प्रदेश अध्यक्ष डा. राजिंदर शर्मा, पूर्व स्टेट प्रेसिडेंट डा. कुलदीप भी उनके साथ मौजूद थे।

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